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यूक्रेन से लौटते बच्चों को कोसने से पहले एक बार जरूर सोचिए

यूक्रेन से लौटते बच्चों को कोसने से पहले एक बार जरूर सोचिए - Ukraine-Russia War social media and Indian Students
यूक्रेन और रशिया की टकराहट के बीच भारत में लगातार बहुत ही घटिया किस्म की पोस्ट सामने आ रही हैं.... कहीं पर यूक्रेन गए भारतीय छात्र-छात्राएं निशाने पर हैं तो कभी यूक्रेन की संस्कृति, कभी वहां की सत्ता, कभी वहां के लोग, कभी वहां की रूचि, प्रवृति और प्रकृति....
 
समझ में नहीं आता जिन्हें अपनी डिग्री का पता नहीं, जिनके पास अपनी कोई योग्यता नहीं, जिनमें अपनी कोई दक्षता नहीं, जो नहीं जानते कि किन मजबूरियों के चलते विदेशों में पढ़ाई का रास्ता चुना जाता है, कितना कठिन होता है अपने बच्चों को एक विश्वास की डोर पर अपने से दूर विदेशों में भेज देना, कितना दुष्कर है तमाम विषमताओं के बीच उनके सुख-दुख और जीवनयापन का जायजा लेना..कैसे और किस दोराहे पर खड़े होकर फैसले लिए जाते हैं अपने देश से दूर शिक्षा प्राप्त करने के, कोई तह में जाना नहीं चाहता.... 
 
हमारी शिक्षा इतनी महंगी, इतनी भेदभाव वाली, इतनी जटिल इतनी पेंचदार है कि देश की प्रतिभाएं हमारे ही बच्चे पलायन पर मजबूर हैं। अपनी जड़ों को उखाड़कर दूसरी पथरीली और अनजान धरा पर उन्हें अपने आपको रोपना होता है.... खाद-पानी-मिट्टी भी खुद ही देनी होती है, खुद ही खुद को सींचना होता है। लेकिन कितना आसान होता है यह सब जाने बिना उनके लिए अपने सवालिया प्रहार करना.... जो बच्चे आ रहे हैं उनकी मन:स्थिति समझिए...चंद नादान बच्चों की हल्की हरकत के चलते सारे बच्चों को एक ही तराजू पर मत तोलिए..... यह हमारे ही देश की संतान हैं और ऐसा नहीं है कि बचपन से ही विदेश में जाकर रहना, पढ़ना इनका सपना था, इसी देश की मिट्टी से तैयार ये पौधे वहां रोपे जाने से पहले खूब हैरान हुए हैं अपने हिस्से की जमीन और अपने हिस्से का आसमान पाने के लिए...खूब धक्के खाए हैं प्रवेश के लिए लाइनों में लगकर.... कहीं फीस के पैसे कम पड़ गए, कहीं ऊंची पहचान नहीं थी, कहीं खरीदी बिक्री की योग्यता का अभाव था... जब विषमताएं चारों तरफ से घेर रही थी तब जाकर अनजान धरती पर जाने के रास्ते तलाशे गए थे.... 
 
बड़े होते बच्चों के घर में करियर को लेकर कैसी तनाव की तीखी रेखा खींची होती है यह किसी भी अभिभावक को अलग से शब्दों के माध्यम से समझाने की जरूरत नहीं है.... पर कुछ महान 'विदेशी संस्कृति के ज्ञाता' इस आपदा में अवसर तलाशने से बाज नहीं आ रहे हैं.... सारे बच्चों को एक ही नजर से देखकर लताड़ा जा रहा है, एक साथ बकवास की सारी पोटलियां खुल गई हैं...

थोड़ा रूकिए न, थोड़ा समझिए ना, आखिर इतनी भी क्या बेचैनी है अपनी प्रतिक्रिया को यत्र-तत्र प्रसारित करने की... लेकिन ना संवेदना बची है ना मानवता....ना समझदारी ना गंभीरता....  
 
रोती आंखें, भयभीत चेहरे, आशंकित मन और अनिश्चित भविष्य के साथ कितने टूटे सपनों को लेकर लौट रहे हैं ये अपने वतन, एक बार बड़ा दिल रखकर देखिए तो इन्हें...क्या जरूरी है कि इन्हें हर बार राजनीति के शीशे से देखना? क्या जरूरी है इन पर सुनी सुनाई बातें थोपकर जज करना? क्या जरूरी है इन्हें कुछ कृतघ्न बच्चों के वीडियो अपलोड कर गलियाना और कोसना.... 
 
दुख होता है जब सोशल मीडिया के तथाकथित विशेषज्ञों की कुंठा और 'ओवरफ्लो' होते अधकचरे ज्ञान का शिकार होते बच्चों को हम देखते हैं....बिना यह जाने कि हर किसी की सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक और भावनात्मक परिस्थिति एक सी नहीं है, अलग है। 
 
माना कि हर बच्चा मासूम नहीं है पर वह तो यहां पढ़ने वाला भी नहीं है... माना कि विदेशों में कुछ बच्चे अपसंस्कृति की चपेट में आ जाते हैं तो वह तो यहां भी मिल जाएंगे... माना कि ये भारत के प्रति उतने अहसानमंद नहीं दिख रहे हैं पर ऐसे अहसानफरामोश तो यहां भी मिलेंगे... फिर निशाने पर बस घर की मुंडेर पर लौटकर आते ये पंछी ही क्यों?  
 
मन को खुला और खूबसूरत रखिए.... इन्हीं बच्चों में एक बच्ची वह भी है हरियाणा की दादरी की रहने वाली नेहा जिसने यूक्रेन छोड़ने से इसलिए मना कर दिया कि जिस मकान में वह रहती है उसका मालिक युद्ध लड़ने गया है, उसके छोटे बच्चे हैं। अकेली पत्नी है और मुश्किल वक्त में वह उनका ख्याल रखना चाहती है... नेहा के पिता आर्मी में थे अब वह नहीं रहे.... सोचिए बहुत मुश्किल से इंडियन एंबेसी के माध्यम से उसके लौटने का प्रबंध किया गया था पर उसने इंकार कर दिया...

पर सोशल मीडिया के सिलेक्टिव एप्रोच के मदांध लोगों को ऐसे मानवीय उदाहरण रचते बच्चे नहीं दिख रहे हैं....उन्हें दिख रहे हैं बस कैसे भी किसी भी एंगल से अपने एकतरफा एजेंडा को आगे बढ़ाने के हथियार.... युद्ध के हथियार और इन 'जहरीली सोच के हथियार' में क्या फर्क है बताएं जरा. थोड़ा रहम कीजिए....यह टॉक्सिक सोच किसी और को बाद में करेगी पहले आपको ही बर्बाद करेगी....   
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