• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. पौराणिक कथाएं
  4. Story of Narasimha Avatar
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 10 मई 2025 (15:47 IST)

नृसिंह जयंती कथा: जब धर्म की रक्षा हेतु नारायण ने रूप बदला

Shri Narasimha Narsingh Jayanti 2025 kab hai
Shri Narsingh Jayanti Katha : प्रतिवर्ष नृसिंह जयंती व्रत वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 11 मई, रविवार को मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान श्री नृसिंह ने खंभे को चीरकर भक्त प्रह्लाद की रक्षार्थ अवतार लिया था। इसी वजह से यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।ALSO READ: वृषभ संक्रांति के दिन होगा बृहस्पति का राशि परिवर्तन 4 राशियों के लिए शुभ

आइए जानते हैं इस व्रत की पौराणिक कथा के बारे में...
 
नृसिंह अवतार की कथा के अनुसार कश्यप नामक ऋषि एवं उनकी पत्नी दिति को 2 पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। जब हिरण्याक्ष का वध हुआ तो उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुःखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। तप का फल उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने के वरदान के रूप में मिला। वरदान पाकर तो वह मानो अजेय हो गया।
 
हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था। देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। 
 
देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया। उधर दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रह्लाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा। प्रह्लाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था। वह भगवान का परम भक्त था।ALSO READ: श्री नृसिंह जयंती: भय मिटे, विश्वास बढ़े, पढ़ें पूजन के शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि
 
वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था। असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद को दरबार में बुलाया। प्रह्लाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- 'मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?' इस पर प्रह्लाद ने कहा- 'पिता जी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह भाव छोड़ अपने मनको सबके प्रति उदार बनाइए।'
 
प्रह्लाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रह्लाद से कहा- 'रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?' यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा। 
 
उसी समय उस खंभे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षणमात्र में ही नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर दी औा अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: बुद्ध जयंती 2025: गौतम बुद्ध के जीवन की सच्ची घटनाएं, पढ़ें रोचक किस्से कहानियां