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Written By WD

कुंडली में कुंडली मारकर बैठा कालसर्प योग

ईक्कीसवीं सदी का नया अंधविश्वास....

कुंडली में कुंडली मारकर बैठा कालसर्प योग -
-श्रुति अग्रवाल
क्या आपकी कुंडली में बैठे ग्रह आपके जीवन में होने वाली घटनाओं को प्रभावित कर सकते हैं? क्या इन ग्रहों की विशेष स्थिति आपकी जिंदगी में उथल-पुथल मचा सकती है। आप कहेंगे यह सब बकवास है, कोरी बकवास। इनसान का कर्म ही उसका भाग्य निर्धारित करता है, लेकिन विश्वास कीजिए इस इक्कीसवीं सदी में भी ऐसी बातों को मानने वाले लोगों की कमी नहीं है।

इस तरह के योगों में से एक कालसर्प योग को हमारी ही सदी में ज्यादा बढ़ावा मिला है। आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमारा पड़ाव है नासिक का त्र्यंबक गाँव, जहाँ हर माह हजारों लोग कालसर्प योग की ग्रह शांति कराने जाते हैं। हमारे इस सफर की शुरुआत नासिक बस स्टेशन से हुई। हम नासिक से त्र्यंबक जाने के लिए वाहन ढूँढ़ रहे थे, तभी कुछ टैक्सी वालों ने हमसे ही पूछताछ चालू कर दी। ‘कहाँ जाना ह’ से लेकर शुरू हुई यह बातचीत कालसर्प योग पर जाकर खत्म हुई। कुछ मोलभाव के बाद हमने एक टैक्सी किराए पर ले ली। हमारे टैक्सी चालक का नाम गणपत था।
Shruti AgrawalWD

अभी हम कुछ दूर ही पहुँचे थे कि हमारे टैक्सी ड्राइवर गणपत ने एक सधे एजेंट की तरह पूछताछ चालू कर दी। क्या तकलीफ है? पूजा कराना है क्या? कालसर्प योग है या बड़ी पूजा (नारायण नागबलि) करवाना है? पंडित पहले से तय है? यदि नहीं तो मेरे एक परिचित पंडितजी हैं।

इस बातचीत से हमें पता चला कि हर रोज सैकड़ों की संख्या में लोग कालसर्प योग से छुटकारा पाने के लिए त्र्यंबक आते हैं। बातचीत के बीच वक्त का पता ही नहीं चला और हम अपनी मंजिल त्र्यंबकेश्वर पहुँच चुके थे। हर तरफ महामृत्युंजय जप और शिवस्तुति के श्लोक गुंजायमान थे। सबसे पहले हम गोदावरी के कुंड कुशावर्त तीर्थ के घाट पर गए। कुंड में बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान कर रहे थे। स्नान के बाद लगभग हर व्यक्ति ने नए कपड़े पहने। गणपत की मानें तो ये सभी कालसर्प पूजा या नारायण नागबलि की पूजा में सम्मिलित होने जाने वाले थे

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हमने एक परिवार से बातचीत की। यह परिवार यवतमाल से त्र्यंबक अपनी बेटी की कालसर्प पूजा के लिए आया था। परिवार के मुखिया सुरेशचंद खांडे ने बताया कि उनकी बेटी श्वेता की कहीं शादी तय नहीं हो पा रही है। पंडित का कहना है कि जब तक हम इसकी कुंडली में बैठे कालसर्प योग का निवारण नहीं करेंगे, तब तक इसकी शादी नहीं होगी। श्वेता की माँ किरण ने बताया कि हमारे एक परिचित के बेटे की कुंडली में भी यही योग था। उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। उन्होंने यह पूजा करवाई, इसके बाद तुरंत ही उसकी शादी हो गई।

खांडे परिवार की ही तरह अनेक लोग यहाँ कालसर्प योग के निवारण के लिए आए थे। इस पर भी आश्चर्य की बात यह थी कि इनमें से अधिकांश उच्च शिक्षित थे।
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अब हमने कालसर्प की पूजा-विधान करवाने वाले पंडित कमलाकर अकोलकरजी से संपर्क किया। कमलाकरजी का कहना था कि यदि आपकी कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रह आएँ, तो यह कालसर्प योग बनाता है। आजकल यह दोष ज्यादा होने लगा है, क्योंकि हम अपने पुरखों का ठीक तरह से तर्पण और श्राद्ध नहीं करते हैं। कालसर्प योग के निवारण के लिए यहाँ खास पूजा की जाती है।

इस पूजा में चाँदी के नौ नागों और सोने के एक नाग की विशेष पूजा की जाती है। यह पूजा लगभग दो घंटे तक चलती है, जिसकी शुरुआत गणेश पूजन से होती है और हवन के बाद दोष समाप्त माना जाता है। पंडितजी का तो यहाँ तक कहना है कि विश्व में 20 प्रतिशत लोगों की कुंडली में यह योग रहता है, जिसके कारण उन्हें तरह-तरह की तकलीफों का सामना करना होता है।

मुंबई के प्रदीप्त कुमार सेन और उनकी पत्नी सुनंदा सेन भी इसी दोष के निवारण के लिए पूजा करवाने के लिए आए थे। सुनंदाजी ने बताया कि उनके जीवन में एकाएक तकलीफें आने लगीं। बेटा डॉक्टर है, लेकिन काम नहीं करता
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हम मुकदमों में फँस गए हैं। एक पंडित ने बताया कि हम दोनों की ही कुंडली में कालसर्प योग है, जिसके कारण हमें तकलीफ हो रही है, इसलिए हम यहाँ आए हैं। यह कहने के बाद यहाँ पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया, जो लगभग दो घंटे तक सतत चलता रहा। यहाँ की पूजा का विधान देखने के बाद हमने गाँव की ओर रुख किया।

हर पंडित के घर में पूजा-पाठ कराया जा रहा था। पता चला कि सभी लोग कालसर्प निवारण पूजा करा रहे हैं। कहीं-कहीं तो बीस-बीस लोगों के पूरे समूह को एक साथ ही पूजा करवाई जा रही थी। इस समूह में दो या तीन पंडित माइक की सहायता से मंत्र पढ़ रहे थे।

पूजा का विधान देखने के बाद लगा कि इस दोष की मुक्ति के बाद इन लोगों को मीठा फल मिला हो या नहीं, लेकिन इन पंडितों पर भगवान की कृपादृष्टि हो चुकी है

पूजा करवाने वाले कई लोगों का कहना है कि उन्हें फायदा हुआ है, वहीं कुछ का मानना था कि यह पूजा हमारे लिए मन का धन है। बस अब हमारी कुंडली दोषमुक्त है, हम इसी से संतुष्ट हैं ।

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लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि इस पूजा के विधान के बारे में प्राचीन ग्रंथों में वर्णन नहीं मिलता। न ही आज से पाँच-सात साल पहले इस योग के निवारण के लिए इतने बड़े स्तर पर पूजा होती थी।

यहाँ आकर यह भी पता चला कि अनेक पंडितों ने पूजा के लिए खास रकम तय कर दी है। कुछ एक साथ समूह में पूजा करवाते हैं, जिससे यजमानों को मंत्रों का सही उच्चारण भी पता नहीं चलता। पूजा के लिए सारी सामग्री की व्यवस्था पंडित खुद ही कर लेते हैं, बस यजमान को यहाँ पधारना होता है। उसे रुकाने-खिलाने आदि की व्यवस्था भी ये ही कर देते हैं। इस तरह त्र्यंबक में यह पूजा व्यवसाय का रूप ले चुकी है।