श्री माधवनाथ महाराज का अमृत महोत्सव
श्रीनाथजी की पुण्यतिथि
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माधवी तारे इंदौर के प्रसिद्ध श्रीनाथ मंदिर साउथ तुकोगंज में श्री योगाभ्यानंद माधवनाथ महाराज संस्थान चित्रकूट का पुण्यतिथि अमृत महोत्सव संपन्न हो रहा है। फाल्गुन पूर्णिमा से लेकर नाथ षष्ठी तक यह पुण्यतिथि महोत्सव परंपरानुगत रूप से मनाया जाता है। इस वर्ष श्रीनाथजी की समाधि को पचहत्तर साल पूर्ण होने की वजह से इस महोत्सव की शोभा कुछ अद्वितीय-सी लग रही है। वैसे श्रीनाथजी का देह विसर्जन 14 मार्च 1936 में महाराष्ट्र के हिंगन घाट शहर में हुआ था, परंतु श्री महाराजजी ने स्वयं अपने हाथों से यहाँ के श्रीनाथ मंदिर के तलघर में धोंडा (पत्थर) रख के कहा था कि 'मेरा आखिरी पत्थर यहाँ पर ही रहेगा।' इस उक्ति के अनुरूप श्री महाराज के तत्कालीन अनुयायियों ने उनका मृत शरीर हिंगन घाट से इंदौर लाने का निर्णय लिया था। श्री महाराज के नागपुर शहर में रहने वाले देशमुख ने अपनी कार में श्रीजी की देह लाने की तैयारी रात को ही शुरू कर दी थी। प्राथमिक रूप से सामान्यतः स्नानादि विधि संपन्न करके रात को ही भक्तगण श्रीनाथजी को लेकर चल पड़े। देखा तो गाड़ी का एक पहिया पंक्चर था। मृत काया सहित सात लोग गाड़ी में बैठकर आने के लिए रवाना हुए। शेष जन राज्य परिवहन बस में निकले। मृत शरीर वह भी एक राज्य से दूसरे में लाना उसमें गाड़ी का एक पहिया पंक्चर, रात का समय, सारी दुकानें बंद फिर भी भक्तों ने हार नहीं मानी। श्रीजी का नाम लेकर गाड़ी आरंभ की। बिना रुकावट की गाड़ी इंदौर तक बेहिचक चलती रही। फिर भी निर्धारित समय से काफी विलंब हो रहा था।
इंदौर के नाथ मंदिर में भी अंतिम दर्शनार्थ भक्तों का ताँता लगा हुआ था। कई खेड़ी घाट पर भी प्रतीक्षा में खड़े रहे। देर रात को देह लेकर लोग इंदौर पहुँचे। तत्पश्चात समाधि देना या दाह संस्कार करना मृत शरीर का, इस पर वाद-प्रतिवाद निर्माण हुआ। समय स्थिति को ज्यादा खींचने का नहीं था। अतएव दाह संस्कार करने का एकमत से निर्णय लिया गया, पर शहर के हृदय स्थल में (नाथ मंदिर में) करना बगैर शासकों की अनुमति लिए संभव नहीं था। शासन की बागडोर तब होलकर परिवार के अधीनस्थ थी। दुर्भाग्य से तुकोजीराव तब विलायत गए हुए थे। भक्तों ने विनम्र अनुनय से उनके सेक्रेटरी के आदेश को प्राप्त किया और दूसरे दिन सुबह एक बजे तक दाह संस्कार करने का निर्णय लिया व आसपास के भक्तों को तदनुरूप वार्ता भी पहुँचा दी। तीसरे दिन अस्थि संचय विधि संपन्न करके रसायन का लेप लगाई हुई काँच की एक बड़े पात्र में श्रीजी की अस्थियाँ रखकर मंदिर के तलघर में गड्ढा खोदकर उसमें रखी गईं और ऊपर से प्रत्यक्ष श्रीनाथजी के चरणकमल से लिए हुए माप से चरणयुग्म बनाकर (संगमरमर से) समाधि का कार्य संपन्न किया गया।उस क्षण से लेकर आज तक इस पुनीत वास्तु में योगाभ्यानंद श्री माधवनाथ महाराज की अस्तित्व ज्योति दिव्य रूप से यहाँ से भक्तों का, दीन-दुखियों का, अनन्य शरणागत का संरक्षण, संकट निवारण, सन्मार्ग पर प्रेरित करके कल्याण कर रही है।श्रीनाथजी ने हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक जनजागृति का झंडा फहराया था। मुंबई, पूना, नासिक, दिल्ली, मद्रास आदि से लेकर अन्य बड़े शहरों में भी श्रीजी का शिष्य समुदाय फैला हुआ है।