पूजन से होता है मन प्रसन्न
पूजन से मिलती है सुखद अनुभूति
प्रभु की आराधना व स्तुति करना ही 'पूजा' का शाब्दिक अर्थ है। पूजा के माध्यम से भक्त प्रभु से अपने मन की बात कहता है, उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करता है। वह इसे इच्छापूर्ति का साधन भी मानता है एवं फल की उम्मीद रखता है। भक्त बड़ा नादान होता है, वह पूजा को चमत्कार के रूप में देखता है जबकि चमत्कार करने का सामर्थ्य खुद उसमें होता है।वह प्रभु पर अगाध श्रद्धा रखता है, जो धीरे-धीरे अंधश्रद्धा में तब्दील हो जाती है। वह कर्म की बजाए भाग्य पर अधिक भरोसा करता है। उसके मन में दिनभर विचारों का ताँता लगा रहता है। काम, क्रोध, लोभ व स्वार्थ के भाव उमड़ते रहने के कारण बुरे विचार हावी रहते हैं। अच्छे विचार बाहर अटककर रह जाते हैं। भक्त जब ध्यान लगाकर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाता है तो ठीक इसके विपरीत होता है। सुविचार छन-छनकर अंदर आते हैं, जो सोच में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। नेक सोच अच्छे विचारों को आमंत्रित करती है। यह प्रक्रिया चलती रहती है जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। विचार आचरण का आधार होता है जिनसे नेक कर्म प्रतिपादित होते हैं।
पूजा स्वयं से साक्षात्कार कराती है, खुद को जानने का एक अहम जरिया है। इसके माध्यम से अपनी कमियों से रूबरू हुआ जा सकता है और खूबियों को निखारा जा सकता है। जब हम दिल से प्रभु को याद करते हैं तो एक सुखद अनुभूति होती है, मन प्रसन्न होता है। इसका कारण है- आत्मा परमात्मा का अंश है। यही वजह है कि आत्मा के दुखी होने पर परमात्मा भी दुखी हो जाता है। जब कार्य पूरी निष्ठा और लगन के साथ किया जाता है तो प्रभु का आशीष प्राप्त होता है एवं सफलता अवश्य मिलती है। किसी ने ठीक कहा है, जो खुद की मदद करता है भगवान उसकी मदद करता है।प्रभु को अपनी वाहवाही और स्तुति से कोई सरोकार नहीं होता लेकिन वे भक्तों से अपार स्नेह रखते हैं। यह कतई जरूरी नहीं कि पूजा के लिए मूर्ति सामने हो, मंदिर के घंटे पीटे जाएँ, माला व जाप किया जाए। कर्म के मूल में भक्ति का वास होता है। एक बार नारद मुनि ने भगवान विष्णु से कहा- 'मैं दिनभर आपके नाम का जप करता हूँ, मेरे जैसा आपका भक्त इस संसार में कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।'भगवान मुस्कुराकर बोले, 'नारद, उस गरीब किसान को देखा, जो दिनभर खेत में हल चलाता है। गाय-ढोरों की सेवा करता है। जब खाली समय मिलता है तो मेरा स्मरण करता है, यही मेरा अनन्य भक्त है।' सच्चे मन से प्रभु का स्मरण ही पूजा है। अच्छे आचरण और नेक कर्म से प्रभु प्रसन्ना होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।-
अतुल केकरे