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Written By अनिरुद्ध जोशी

दत्तात्रेय जयंती 2022 : क्या भगवान दत्तात्रेय के तीन मुख थे, जानिए 6 रहस्य

दत्तात्रेय जयंती 2022 : क्या भगवान दत्तात्रेय के तीन मुख थे, जानिए 6 रहस्य - Lord Dattatreya Jayanti 2022
Dattatreya Jayanti 2022
 
Dattatreya Jyanati : प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय की जयंती (Lord Dattatreya Jayanti) मनाई जाती है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं अनुसार दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया था और चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी अंवेषण किया था। 
 
आओ यहां जानते हैं उनके तीन मुख होने या नहीं होने का रहस्य।
 
1. तीन जुड़वा भाई : ब्रह्मा जी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव की बहन सती अनुसूया इनकी माता थीं। श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है।

कहते हैं कि ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय और शिव के अंश से दुर्वासा ऋषि का जन्म हुआ।
 
2. त्रिदेवमयस्वरूप : पुराणों अनुसार इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमयस्वरूप है। हिन्दू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है।

इसके कारण यह है कि उनमें तीनों देवों के रूप समाहित है इसीलिए उनके त्रिपुख चित्रित या वर्णिक किए जाते हैं। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।
 
 
3. तीन संप्रदायों का संगम : कहते हैं कि भगवान दत्तात्रेय ने तीन संप्रदाय शैव, वैष्णव और शाक्त के समन्वय का कार्य किया। इन्हें इन तीनों ही संप्रदाय की त्रिवेणी के रूप में माना जाता है। यह भी मान्यता है कि इस त्रिवेणी के कारण ही प्रतीकस्वरूप उनके तीन मुख दर्शाएं जाते हैं जबकि उनके तीन मुख नहीं थे।

दत्तात्रेय में शैव, वैष्णव और शाक्त ही नहीं बल्कि तंत्र, नाथ, दशनामी और इनसे जुड़े कई संप्रदाय में का समावेश हो जाता है। सभी संप्रदाय में यह विशेषरूप से पूज्जनीय है। 
 
4. तीन शिष्य : उनके प्रमुख तीन शिष्य थे जो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से। तीन संप्रदाय (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में भारतीय राज्य त्रिपुरा में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा दी। इसके अलावा उनके परशुराम, कार्तवीर्यार्जुन और शिवपुत्र कार्तिकेय भी उनके शिष्य थे।

दत्तात्रेय को ही अपना गुरु मानकर नागार्जुन ने रसायन विद्या सीखी थी और गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ। त्रिपुरा रहस्य में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का उपदेश मिलता है। 
 
5. तीन शक्ति समाहित : दत्तात्रेय में ईश्वर, गुरु और शिव यह तीनों ही रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें 'परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु' और 'श्रीगुरुदेवदत्त' भी कहा जाता हैं। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं।

दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद, पुराण और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।

 
6. दत्तात्रेय के गुरु : कहते हैं कि दत्तात्रेय के पशु, पक्षी और पंच तत्व यह तीन मुख्य रूप से उनके गुरु थे। दत्तात्रेय जी कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है, इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी।

गाय कुत्ते और वृक्ष यह भी तो तीन ही है जो उनके चित्र में दर्शाये जाते हैं। चित्र में इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। विभिन्न मठ, आश्रम और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के चित्र का दर्शन होता है।