जम्मू। अगर रक्षा सूत्रों की मानें तो हाल ही में कई विदेशी आतंकी कश्मीर में घुसने में कामयाब रहे हैं। उन्हें अमरनाथ यात्रा को टारगेट बनाने का लक्ष्य दिया गया है। इसे कश्मीर पुलिस ने भी माना है कि नॉर्थ कश्मीर के बांडीपोरा में कल बुधवार को मार गिराया गया आतंकी उसी जत्थे का हिस्सा था, जो हाल में घुसे हैं।
चर्चा का विषय यह नहीं है कि वे तारबंदी के प्रति किए जाने वाले दावों की धज्जियां उड़ाकर घुसने में कामयाब रहे हैं बल्कि चिंता का विषय यह है कि अभी तक उन सभी की तलाश ही नहीं हो पाई, जो अनुमानत: दर्जन से ज्यादा हैं।
मारे गए आतंकी के कब्जे से मिले आपत्तिजनक दस्तावेजों से सुरक्षाधिकारियों की परेशानी इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि उससे स्पष्ट होता था कि ताजा घुसे दल को अमरनाथ यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं को टारगेट करने का आदेश दिया गया था।
ऐसे में सुरक्षाबल अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के प्रति कोई लापरवाही नहीं छोड़ना चाहते जिसके लिए वे दक्षिण कश्मीर के चारों जिलों में व्यापक अभियान छेड़कर आतंकियों का सफाया कर रहे हैं और अब उनके सामने चुनौती नॉर्थ कश्मीर में घुसे आतंकियों को साउथ कश्मीर में घुसने से रोकने की है।
कश्मीर रेंज के पुलिस आईजी विजय कुमार तथा सीआरपीएफ के डीआईजी देवेंद्र यादव कई बार दोहरा चुके थे कि वे यात्रा की सकुशलता की खातिर जुटे हुए हैं जबकि सेनाधिकारी कहते थे कि उन्हें आशंका है कि अमरनाथ यात्रा आतंकी हमलों से दो-चार हो सकती है जिसकी खातिर सेना अन्य सुरक्षाबलों के साथ मिलकर अभियानों मेंहिस्सा ले रही है।
स्थानीय लोगों में उत्साह नहीं : अमरनाथ की वार्षिक यात्रा अब धार्मिक के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता की यात्रा भी बन चुकी है। लेकिन इस यात्रा का एक पहलू यह है कि इसमें शामिल होने वाले अधिकतर बाहरी राज्यों के निवासी ही होते हैं। जबकि स्थानीय लोगों की भागीदारी न के ही बराबर। जहां अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं में मात्र 5 प्रतिशत ही जम्मू-कश्मीर से संबंध रखने वाले होते हैं, वहीं अमरनाथ यात्रा मार्ग पर लंगर लगाने वालों में भी जम्मू-कश्मीर से लंगर लगाने वाला ढूंढने से ही मिलते हैं।
असल में जब से कश्मीर में पाक समर्थक आतंक ने अपने पांव फैलाए हैं तभी से वार्षिक अमरनाथ यात्रा का स्वरूप बदलता गया और आज स्थिति यह है कि यह धार्मिक यात्रा के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता व अखंडता की यात्रा बनकर रह गई है जिसमें देश के विभिन्न भागों से भाग लेने वालों के दिलों में देशप्रेम की भावना तो होती ही है। उनके मन-मस्तिष्क पर यह भी छाया रहता है कि वे इस यात्रा को 'कश्मीर हमारा है' के मकसद से कर रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा को राष्ट्रीय एकता व अखंडता की यात्रा में बदलने में पाक समर्थित आतंकियों द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों और आतंकियों द्वारा किए जाने वाले हमलों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। हुआ अक्सर यही है कि पिछले कई सालों से आतंकियों द्वारा इस यात्रा पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों और किए जाने वाले हमलों ने न सिर्फ अमरनाथ यात्रा को सुर्खियों में ला खड़ा किया बल्कि देश की जनता के दिलों में कश्मीर के प्रति प्रेम को और बढ़ाया जिसे उन्होंने इस यात्रा में भाग लेकर दर्शाया।
अब स्थिति यह है कि इस यात्रा में भाग लेने वालों को सिर्फ धार्मिक नारे ही नहीं बल्कि भारत समर्थक, कश्मीर के साथ एकजुटता दर्शाने वाले तथा पाकिस्तान विरोधी नारे भी सुनाई पड़ते हैं, जो इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि यात्रा में भाग लेने वालों का मकसद राष्ट्रीय एकता व अखंडता को मजबूत बनाना भी है।
इसे भी भूला नहीं जा सकता कि आतंकियों के प्रतिबंधों के कारण इस यात्रा को न सिर्फ राष्ट्रीय एकता व अखंडता की यात्रा में ही बदल डाला गया बल्कि भाग लेने वालों का आंकड़ा भी आसमान को छूने लगा। यही कारण था कि वर्ष 1996 में भी 50 हजार से अधिक बजरंग दल के सदस्यों ने इसलिए इस यात्रा में भाग लिया था, क्योंकि उन्हें यह दर्शाना था कि कश्मीर भारत का है और इसी भावना के कारण की गई यात्रा से जो अव्यवस्थाएं पैदा हुई थीं, वे अमरनाथ त्रासदी के रूप में सामने आई जिसने 300 से अधिक लोगों की जान ले ली थी।
यह भी सच है कि ऐसा करने वालों में देश के अन्य हिस्सों से आने वालों की भूमिका व भागीदारी अधिक रही है। यही कारण है कि सिर्फ ऐसा क्रियाकलापों में ही नहीं बल्कि यात्रा में भाग लेने वालों में भी स्थानीय लोगों की संख्या नगण्य ही है। आंकड़ों के मुताबिक अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वाले स्थानीय लोगों की संख्या 5 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं है। सच्ची देशप्रेम की भावना को दर्शाने का एक स्वरूप लंगरों की भी व्यवस्था को भी माना जाता है जिसे देश के विभिन्न भागों से आने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं लगा रही हैं।