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Last Modified: शनिवार, 14 अगस्त 2021 (13:54 IST)

ब्यावर का चांग गेट, RTI पाने के लिए 1995 में यहीं से शुरू हुआ था आंदोलन

ब्यावर का चांग गेट, RTI पाने के लिए 1995 में यहीं से शुरू हुआ था आंदोलन - Movement for RTI started from Beawar in Ajmer district
-शुभम शर्मा
मुख्‍य बिन्दु-
  • अजमेर के ब्यावर कस्बे से शुरू हुआ था आरटीआई के लिए आंदोलन
  • 1995 में शुरू हुआ था आरटीआई के लिए आंदोलन
  • ब्यावर के चांग गेट पर आरटीआई जन्मस्थली का शिलान्यास
लगातार बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए 15 वर्ष पूर्व सूचना का अधिकार कानून (Right to Information Act) के लिए अलख अजमेर जिले से ही जगी थी। किसी भी सरकारी कार्यालय में सरकारी दस्तावेजों को पढ़ने एवं उनसे जुड़ी जानकारी प्राप्त करने का हक़ केवल सरकारी कर्मचारियों को ही क्यों दिया जाता था, आम आदमी को क्यों नहीं? इसी को लेकर अजमेर जिले के ब्यावर कस्बे के निकट स्थित देवडूंगरी गांव में मस्टररोल की प्रति की मांग को लेकर एक आंदोलन छिड़ा था। कालांतर में इसकी परिणति आरटीआई कानून के रूप में देखने को मिली। 
 
यह आंदोलन इस प्रकार सार्थक हुआ कि जब भी किसी भी सामान्य नागरिक सरकारी अथवा गैर सरकारी कोई भी जानकारी प्राप्त करनी हो तो वह इस कानून के माध्यम से उस कार्यालय की अथवा उस कर्मचारी की जानकारी कानूनी तौर तरीकों से प्राप्त कर सकता है। चूंकि जनता इस देश की मालिक है। जनता को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह हर दस्तावेज देखने और उनसे जुड़ी जानकारी को प्राप्त कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता कायम हो और देश मे भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सके। 
आरटीआई कैसे आई : सूचना का अधिकार कानून की प्रणेता ओर इस आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाली रेमैन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता प्रमुख समाजसेवी अरुणा रॉय की पुस्तक 'आरटीआई कैसे आई' इस तथ्य को साबित करने वाली प्रामाणिक कृति है। इस पुस्तक के जरिए समाज में उत्पन्न बेबुनियाद सोच के ढांचे को बदलने हेतु विभिन्न जनसुनवाई, आंदोलन, धरने के आदि का विवरण है। इसके साथ ही विभिन्न राज्यों द्वारा पूरे देश में सूचना का अधिकार कानून लागू करने की बात को भी दर्शाया गया है। इसी पुस्तक में यह बात भी बताई गई कि किस प्रकार देवडूंगरी गांव में मस्टर रोल नहीं दिए जाने के बाद यह सोच पैदा हुई कि आखिर इस देश में आमजन सरकारी दस्तावेजों की नकल क्यों नहीं ले सकते हैं। इसी प्रकार इस मांग ने जोर पकड़ा और ये विराट आंदोलन शुरू हुआ। जो आगे चलकर कानून का रूप लेकर शांत हुआ। 
 
ब्यावर का चांग गेट बना आंदोलन का प्रत्यक्षदर्शी : देव डूंगरी की घटना के बाद यह सोच उभरी कि देश में ऐसा कानून बनना चाहिए जिससे सरकारी दफ्तरों में लगे दस्तावेजों की जानकारी ली जा सके। कुछ समाजसेवी एवं उनके साथ कुछ संगठन एकजुट हुए और 6 अप्रैल 1986 को ब्यावर के चांग गेट पर मजदूर किसान शक्ति संगठन ने 40 दिन तक सरकारी सूचनाओं और कागजों में पारदर्शिता की मांग को लेकर धरना दिया। रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित समाजसेवी अरुणा राय के नेतृत्व में दिए गए इस धरने में हर समाज एवं हर वर्ग से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। 
आरटीआई जन्मस्थली का शिलान्यास : जब देश में आरटीआई कानून लागू हुआ तब देश के प्रथम सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाल ने अक्टूबर 2005 में ब्यावर के चांग गेट पर सूचना का अधिकार जन्मस्थली का शिलान्यास किया। यह कानून पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। कई देश इसे अपने कानून में शामिल कर चुके हैं। सूचना लोकतंत्र की मुद्रा होती है एवं किसी भी जीवंत सभ्य समाज के उद्भव और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। भारत में भी लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारत की संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया।
 
क्या है सूचना का अधिकार : सामान्य बोलचाल की भाषा में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है। आरटीआई या सूचना का अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में दर्जा दिया गया हैI
 
अनुच्छेद 19 (1) के अंतर्गत जैसे हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है उसी तरह यह भी जानने का हक़ है कि सरकार कैसे काम करती है और उसकी क्या भूमिका है। इसके अंतर्गत विभिन्न रिकॉर्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियां, परिपत्र, आदेश, सहित अन्य सामग्री आती है, जिसे निजी निकायों से संबंधित तथा किसी लोक प्राधिकरण द्वारा उस समय के प्रचलित कानून के अन्तर्गत प्राप्त किया जा सकता है।
 
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