कश्मीर बंद का 100वां दिन, आम कश्मीरी परेशान लेकिन अलगाववादी मजे में
आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर घाटी में जारी सरकार विरोधी प्रदर्शन, प्रशासन के लगाए प्रतिबंध और अलगाववादियों के आह्वान पर होने वाला बंद 100वें दिन में प्रवेश कर गया है। 8 जुलाई को बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से जारी हिंसा में 91 लोग मारे जा चुके हैं। 12 हजार लोग घायल हो चुके हैं।
इतने नुकसान और सौ दिन के बाद भी अलगवावादियों ने हालात को तनावपूर्ण बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि महबूबा मुफ्ती सरकार को लगता है कि समस्या के हल का फैसला समय पर छोड़ जाए। उन्हें लगता है कि थकान ही स्थिति को सामान्य बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगी। मुख्यधारा के नेताओं, खासकर जिनका संबंध सत्ता से है, का मानना है कि समय बीतने के साथ ही आंदोलन भड़काने वालों को अंतहीन हिंसा की निर्थकता का अहसास हो जाएगा।
अलगाववादियों के एक समर्थक ने कहा, आज नहीं तो कल या इसके बाद, भारत इस बात को समझेगा कि सम्मान के नाम पर बैठे रहने का कोई अर्थ नहीं है और वह लोगों की मांग मानने पर मजबूर हो जाएगा। हालांकि आतंकवादियों के साथ ही अलगाववादी भी चाहते हैं कि कश्मीरी युवा अपने पैरों पर खड़ा न हो और वह आर्थिक रूप से सिर्फ हम पर ही निर्भर हों। घाटी में बहुत से घरों में अब खाने के लाले पड़े हुऐ हैं। राज्य का धंध चौपट है। बच्चों के स्कूल और कालेज बंद होने से वे पढ़ाई में भी पिछड़ते जा रहे हैं जिसके चलते उनके करियर और भविष्य पर असर पड़ा रहा है।
इस समय में सबसे अधिक परेशान आम कश्मीरी है जिसे दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हुए हैं। यह आम कश्मीरी एक अलग तरह के सामान्य रोजमर्रा के हालात से रू-ब-रू हो रहा है, जिसमें हर चीज की बेहद किल्लत है, जहां स्कूल बंद हैं, कीमतें आसमान छू रही हैं और जिसमें कानूनी मशीनरी की गैर मौजूदगी का लाभ उठाकर संगठित अपराधी गिरोह अस्तित्व में आ रहे हैं।
सभी सार्वजनिक संस्थानों की ऐसी दुर्गति हुई है कि इन्हें संभलने में सालों लगेंगे। लेकिन, सर्वाधिक नुकसान उन मासूमों को हुआ है जिनके स्कूल बंद हैं। घाटी में सभी स्कूल-कालेज-विश्वविद्यालय बंद हैं। राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों को खोलना चाहा, लेकिन इस प्रयास को अलगाववादियों ने सफलतापूर्वक नाकाम कर दिया।