Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में विधानसभा प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही चुनावी माहौल गरमा गया है, लेकिन 'चुनावी ऊंट' किस करवट बैठेगा इसका स्पष्ट जवाब फिलहाल राजनीतिक पंडितों के पास भी नहीं है। हालांकि 1993 के बाद से राजस्थान का मतदाता किसी भी पार्टी को दोबारा सरकार बनाने का मौका नहीं देता, लेकिन इस बार असमंजस की स्थिति है। सबके मन में एक ही सवाल है कि हर बार की तरह इस बार भी सरकार बदलने की परंपरा कायम रहेगी या फिर एक नया इतिहास बनेगा।
राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा दोनों ही आंतरिक कल से जूझ रहे हैं। कहीं टिकट वितरण को लेकर असंतोष के स्वर हैं तो कहीं मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर खींचतान है। कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे समय से जारी आपसी कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है, वहीं भाजपा को वसुंधरा की नाराजगी से नुकसान हो सकता है। हालांकि कहा जा रहा है कि भाजपा ने 'महारानी' को मना लिया है।
पिछले चुनाव (विधानसभा चुनाव 2018) में कांग्रेस को 100 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 73 सीटें मिली थीं। परिणाम के बाद बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की संख्या 108 तक पहुंच गई थी। लेकिन, इस विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर तो दोनों प्रमुख दलों में असंतोष है ही, मुख्यमंत्री पद को लेकर भी बड़े नेताओं के बीच आपसी खींचतान है।
गुर्जरों को कैसे मनाएगी कांग्रेस : पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि मैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहता हूं, लेकिन कुर्सी ही मुझे छोड़ना नहीं चाहती। इस बयान से सचिन पायलट समर्थक खासकर गुर्जर समुदाय के लोगों में कांग्रेस को लेकर नाराजगी देखने को मिल रही है। यदि कांग्रेस इन्हें मनाने में सफल नहीं होती है तो गुर्जर वोट भाजपा की झोली में गिर सकते हैं।
बीकानेर पश्चिम सीट पर अशोक गहलोत के ही करीबी लोकेश शर्मा पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार बीडी कल्ला का विरोध कर रहे हैं। शर्मा इस सीट पर खुद के लिए टिकट मांग कर रहे थे। जानकार मानते हैं कि इस चुनाव में दोनों ही प्रमुख दलों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है।
बराबरी की टक्कर : राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार कल्याण सिंह कोठारी वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि इस बार बराबरी की टक्कर है, परिणाम कुछ भी हो सकता है। दरअसल, दोनों पार्टियों में असंतोष और आपसी फूट दिखाई दे रही है। इससे दोनों को ही नुकसान हो सकता है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं होने से पार्टी को घाटा हो सकता है। वहीं, अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है।
कोठारी कहते हैं कि वसुंधरा के लोगों को पार्टी ने टिकट दिए हैं, लेकिन बावजूद इसके पिक्चर अभी क्लियर नहीं है। जहां तक मुख्यमंत्री पद का सवाल है तो कांग्रेस की ओर अशोक गहलोत और सचिन पायलट तो दावेदार दिख ही रहे हैं, सरकार बनने की स्थिति में सीपी जोशी का नाम भी सामने आ सकता है।
भाजपा राजस्थान में पीएम नरेन्द्र मोदी और कमल के नाम पर वोट मांग रही है फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते वसुंधरा सीएम पद का स्वाभाविक चेहरा हैं। इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार कोठारी कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे ऊपर गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम है, वहीं दिल्ली की पसंद के रूप में दिया कुमारी का नाम भी सामने आ सकता है। वे कहते हैं कि दावेदार तो ओमप्रकाश माथुर और पूर्व भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया भी हैं, लेकिन दोनों का ही उतना प्रभाव नहीं है।
किसान भी गहलोत से नाराज : बताया जा रहा है कि अशोक गहलोत को लेकर किसानों में नाराजगी है। पिछले चुनाव के समय किसानों की कर्ज माफी का वादा वे पूरा नहीं कर पाए। कर्ज माफी की उम्मीद में किसानों ने लोन नहीं चुकाया और इसे उन पर ब्याज बढ़ गया। कृषि उपकरणों की खरीद पर जीएसटी से मुक्ति दिलाने का वादा भी गहलोत सरकार पूरा नहीं कर पाई। इस वर्ग की नाराजगी को दूर करने के लिए कांग्रेस क्या कदम उठाएगी, इस पर काफी कुछ निर्भर रहेगा।
हालांकि जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आएगी वैस-वैसे स्थिति और ज्यादा क्लीयर होगी। राजस्थान में 25 नवंबर को मतदान होगा।