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प्रयागराज कुंभ में जा रहे हैं तो अष्टनायक के दर्शन जरूर करें, क्या है अष्टनायक, जानिए

Prayag Ashtavinayak | प्रयागराज कुंभ में जा रहे हैं तो अष्टनायक के दर्शन जरूर करें, क्या है अष्टनायक जानिए
कुंभ नगरी प्रयागराज में प्राचीनकाल से अष्टनायक विराजमान हैं। यदि आप प्रयागराज के कुंभ मेले में स्नान करने जा रहे हैं तो आपको संगम स्नान के साथ ही इन अष्यनायकों का दर्शन और पूजन जरूर करना चाहिए। यह बहुत ही प्राचीन और पवित्र स्थान हैं। पुराणों में इन अष्टनायकों के बारे में कहा गया है:-
 
 
त्रिवेणी माधवं सोमं भारद्वाजं च वासुकीम्‌।
वन्दे अक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम्‌॥
अर्थात : प्रयागराज के इन आठ श्रद्धा केंद्रों में त्रिवेणी, माधव, भारद्वाज, नागवासुकि, अक्षयवट, शेष भगवान और स्वयं तीर्थराज को शामिल किया गया है।
 
अष्टनायकों के नाम निम्न हैं:
*प्रथम नायक : त्रिवेणी संगम सिंहासन
*द्वितीय नायक : माधव
*तृतीय नायक : सोमेश्वर
*चतुर्थ नायक : भारद्वाज आश्रम
*पंचम नायक : नागवासुकि
*षष्ठ नायक : अक्षयवट
*सप्तम नायक : शेष भगवान
*अष्टमनायकः तीर्थराज प्रयाग
 
 
प्रथम नायक : यह पवित्र संगम गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन स्थल है। वेद पुराण महाकाव्य और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इस पवित्र तीर्थ की महिमा का उल्लेख है। रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों में त्रिवेणी संगम की महिमा का बखान किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने त्रिवेणी संगम क्षेत्र को तीर्थराज प्रयाग का राजसी भव्य सिंहासन कहा है।
 
 
द्वितीय नायक : प्रयागराज को विष्णु प्रजापति क्षेत्र और हरिहर क्षेत्र माना जाता है। भगवान शिव स्वयं इस क्षेत्र में निवास कर यहां वेणीमाधव की उपासना करते हैं तो दूसरी ओर प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले इस पवित्र क्षेत्र में दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। तीर्थराज प्रयाग में महाविष्णु के स्वरूप माधव का पूजन किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि जल में डूब जाती है, तब महाविष्णु माधव बाल मुकुन्द का रूप धारण कर अक्षयवट के पत्ते पर शयन करते हैं। तीर्थराज प्रयाग में माधव कई रूपों में विराजमान हैं। इन रूपों की उपासना के लिए यहां मंदिर हैं। प्रयाग महात्म्य में इनके नाम शंख माधव, चक्र माधव, यदा माधव, पद्‌म माधव, असि माधव अनंत माधव, बिन्दु माधव, मनोहर माधव गिनाए गए हैं। इनके अलावा संकटहर माधव की महिमा के बारे में बताया गया है।
 
 
तृतीय नायक : तीर्थराज प्रयाग के यमुना पार क्षेत्र में सोमेश्वर महादेव का मंदिर है। अरैल गांव के निकट इस मंदिर का पौराणिक महत्व है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर में शिव विग्रह की स्थापना स्वयं चंद्रमा ने की थी। सोमेश्वर तीर्थ प्रयाग की मध्यवेदी के प्रमुख तीर्थों में गिना जाता है। शिव की आज्ञा से चंद्रमा इस तीर्थ में निवास करते हैं। पुराणों के अनुसार सोमेश्वर तीर्थ में मंदिर के आसपास अमृत की वर्षा करते हैं। सैकड़ों बरस पहले सोमेश्वर तीर्थ के आसपास सुंदर बगीचे थे। अब इस मंदिर की पुरानी गरिमा कुछ कम हो गई है। सोम तीर्थ के आसपास वरुण तीर्थ, राम तीर्थ, सीता कुण्ड और हनुमान तीर्थ की स्थिति का प्रमाण पुराणों में मिलता है, लेकिन इनकी पहचान अब कठिन हो गई है।
 
 
चतुर्थ नायक : भारद्वाज आश्रम प्रयाग का महत्वपूर्ण मंदिर है। महर्षि भारद्वाज ज्ञान-विज्ञान, वेद पुराण, आयुर्वेद, धनुर्वेद और विमान शास्त्र के जानकार आचार्य थे। उनका गुरुकुल विद्या और शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। वाल्मीकि रामायण में भारद्वाज को इस गुरुकुल का कुलपति कहा गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वन जाते हुए भारद्वाज आश्रम में आए थे। भारद्वाज मुनि ने राम का बड़े प्रेम से स्वागत किया था और उन्हें चित्रकूट जाने का मार्ग बताया था। राम को चित्रकूट से वापस बुलाने के लिए भरत प्रयाग आए, तो उन्होंने ऋषि भारद्वाज के दर्शन किए। इस आश्रम में भारद्वाज ऋषि ने एक शिवलिंग को स्थापित किया था। यह शिव विग्रह आज भी पूजा जाता है। इन्हें भारद्वाजेश्वर शिव कहा जाता है।
 
 
पंचम नायक : नागवासुकि का मंदिर दारागंज मोहल्ले के उत्तरी छोर पर गंगा के किनारे स्थित है। वासुकि नामक नाग शेषनाग के भाई हैं। भगवान शंकर और विघ्नहरण गणेश इन्हें अपने गले में माला की तरह धारण करते हैं। पुरारों में कहा गया है कि गंगा स्वर्ग से गिरी तो वे पृथ्वी लोक से पाताल लोक में चली गईं। पाताल लोक में उनकी धार नागवासुकि के फन पर गिरी, इस स्थान पर भोगवती तीर्थ की सृष्टि हुई। नागवासुकि और शेष भगवान पाताल लोक से चल कर वेणीमाधव का दर्शन करने प्रयाग आए, तो भोगवती तीर्थ भी यहां आ गया। नागवासुकि के साथ भोगवती तीर्थ का वास माना जाता है। नागवासुकि मंदिर से  पूरब की तरफ गंगा के पश्चिम हिस्से में भोगवती तीर्थ माना जाता है।
 
 
षष्ठ नायक : अक्षय वट संगम के निकट सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह बरगद का बहुत पुराना पेड़ है जो प्रलयकाल में भी नष्ट नहीं होता। इस तरह के तीन और वृक्ष हैं- मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट जिसे बौधवट भी कहा जाता है और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट।
 
 
पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक 'वृक्ष' उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।
 
 
सप्तम नायक : पौराणिक मान्यता के अनुसार शेष नाग के फन पर धरती टिकी हुई है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भाई लक्ष्मण और द्वापर युग में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषावतार माने जाते हैं। लक्ष्मण ने भगवान राम के साथ तीर्थराज प्रयाग आकर संगम में स्नान किया था। बलराम ने तीर्थयात्रा के दौरान प्रयाग आकर यहां कई दिनों तक निवास किया था। पुराण कथा के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले ब्रह्मा यज्ञ करना चाहते थे, लेकिन वे तय नहीं कर पा रहे थे कि यज्ञ कहां किया जाए। इस बारे में उन्होंने शेष भगवान से प्रश्न किया। शेष भगवान ने कहा कि यज्ञ तो तीर्थस्थान में ही फल देता है। तब ब्रह्मा ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौन-सा है। शेष भगवान ने कहा कि प्रयाग ही तीर्थराज है।
 
 
अष्टमनायक : तीर्थराज प्रयाग इस क्षेत्र के सबसे ज्यादा पूज्य देवता हैं। इन्हें माधवराज भी कहा जाता है। पुराणों में कहा गया है कि अयोध्या, मथुरा, मायापुरी, काशी, कांची, अवंतिका, और द्वारका- ये सप्त पुरियां तीर्थ राजप्रयाग की पत्नियां हैं। तीर्थराज ने इन्हें मुक्ति का अधिकार दिया है। इन सातों पुरियों में काशी श्रेष्ठ है। ये तीर्थराज की पटरानी है, इसीलिए तीर्थराज ने इन्हें सबसे निकट स्थान दिया है। जिस तरह ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड का जन्म नहीं हो सकता, उसी तरह प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। प्रयाग किसी तीर्थ से उत्पन्न नहीं हो सकता।
 
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