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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 18 दिसंबर 2024 (19:27 IST)

महाकुंभ मेला 2025: क्यों 12 साल बाद लगता है महाकुंभ, कैसे तय होती है कुंभ की तिथि?

Mahakumbh 2025: महाकुंभ का महत्व, तिथियां और स्थान - Mahakumbh 2025 date tithi and history in hindi
Prayagraj Kumbh 2025: प्रयागराज। संगम नगरी प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी के संगम तट पर 13 जनवरी 2025 में विश्व के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक मेले का आयोजन हो जा रहा है। महाकुंभ मेला हिंदू धर्म का एक ऐसा पर्व है, जिसे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है। इस आयोजन का समापन 26 फरवरी को होगा। प्रत्येक 12 साल में होने वाला यह मेला गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम तट पर लगता है। मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं कि महाकुंभ मेला क्यों 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है और इसकी तिथि कैसे तय होती है।ALSO READ: प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर, इन देशों में भी होंगे विशेष कार्यक्रम
 
प्रयागराज के साथ अन्य स्थानों पर भी लगता है कुंभ मेला:- 
वे चार स्थान हैः- प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। जिनमें प्रयाग गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर और हरिद्वार गंगा नदी के किनारे हैं, वहीं उज्जैन शिप्रा नदी और नासिक गोदावरी नदी के तट पर बसा हुआ है। यह चारों स्थल पौराणिक कथाओं और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर चुने गए हैं।
 
12 कुंभ मेले में से 4 कुंभ पृथ्वी लोक पर लगते हैं? 
अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और दानवों के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध हुआ था। जो मनुष्यों के 12 वर्ष के समान हैं। अतएव कुम्भ भी बारह होते हैं। उनमें से 4 कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और 8 कुम्भ देवलोक में होते हैं।
 
क्रमानुसार चारों स्थानों पर प्रत्येक 3 वर्षों के अतंराल पर लगता है कुंभ मेला:-
युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुम्भ का योग होता है, और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। इस तरह देखें तो प्रत्यके एक स्थान पर 12 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। 
 
समुद्र मंथन की कथा और कुंभ का महत्व: 
महाकुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। देवता और असुर अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। जब अमृत का कलश निकला, तब इसे बचाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिर गईं। यही कारण है कि इन चार पवित्र स्थलों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। प्रयागराज का महत्व प्राचीन ग्रंथों में प्रयागराज को तीर्थराज यानी तीर्थों का राजा कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि पहला यज्ञ ब्रह्मा जी ने यहीं पर किया था। महाभारत और पुराणों में भी प्रयागराज का उल्लेख धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में किया गया है।
 
क्यों 12 साल बाद लगता है महाकुंभ?
महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इसके पीछे धार्मिक और खगोलीय कारण हैं।
पौराणिक मान्यता: समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध हुआ था।
खगोलीय गणना: देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर माना जाता है। इसलिए, 12 देवताओं के दिनों का अर्थ है पृथ्वी के 12 वर्ष। इसी खगोलीय गणना के अनुसार, 12 साल बाद महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है।ALSO READ: महाकुंभ मेले का आयोजन इस बार पहले से ज्यादा होगा दिव्य और भव्य, सीएम योगी के सख्त निर्देश
 
कुंभ की तिथि कैसे तय होती है?
कुंभ मेले की तिथि ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होती है। इसमें सूर्य और बृहस्पति (गुरु) ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व है।
 
1. प्रयागराज में कुंभ की तिथि: जब बृहस्पति वृषभ राशि में होता है और सूर्य मकर राशि में गोचर करता है, तब प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
2. हरिद्वार में कुंभ की तिथि: हरिद्वार में कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है।
3. नासिक में कुंभ की तिथि: नासिक में कुंभ मेला तब लगता है, जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं। इसलिए इसे सिंहस्थ भी कहते हैं। 
4. उज्जैन में कुंभ की तिथि : उज्जैन में कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं। इसलिए इसे सिंहस्थ भी कहते हैं। 
- उल्लेखनीय है कि एक ओर जहां नासिक और उज्जैन के कुंभ को आमतौर पर सिंहस्थ कहा जाता है तो अन्य नगरों में कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है।
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कुंभ क्या है?:-कुंभ का अर्थ होता है घड़ा या कलश। प्रत्येक तीन वर्ष में उज्जैन को छोड़कर अन्य स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। 
 
अर्धकुंभ क्या है?:- अर्ध का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
 
पूर्णकुंभ क्या है?:-
प्रत्येक 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। जैसे मान लो कि उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। इसी तरह जब हरिद्वार, नासिक या प्रयागराज में 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होगा तो उसे पूर्णकुंभ कहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है।
 
महाकुंभ क्या है? 
मान्यता के अनुसार प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्षों में महाकुंभ का आयोजन होता है। 144 कैसे? 12 का गुणा 12 में करें तो 144 आता है। दरअसल, कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है।; इसी मान्यता के अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुम्भों की अपेक्षा और बढ़ जाता है।  सन् 201 3 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था क्योंकि उस वर्ष पूरे 144 वर्ष पूर्ण हुए थे। संभवत: अब अगला महाकुंभ 138 वर्ष बाद आएगा।
 
सिंहस्थ क्या है?:- सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। यह योग प्रत्येक 12 वर्ष पश्चात ही आता है। इसी तरह का योग नासिक में भी होता है अत: वहां भी सिंहस्थ का आयोजन होता है। दरअसल, उज्जैन में 12 वर्षों के बाद ही सिंहस्थ का आयोजन होता है। इस कुंभ के कारण ही यह धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जबकि यह सही नहीं है। यह मेला उज्जैन को छोड़कर बाकी के तीन नगरों में क्रमवार तीन तीन वर्षों में ही आयोजित होता है। वर्तमान में प्रयागराज में अर्ध कुंभ चल रहा है।
 
ज्योतिष और धर्म का अद्भुत समन्वय:-
कुंभ मेले की तिथि केवल खगोलीय घटनाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को भी ध्यान में रखकर तय की जाती है।
 
इन ज्योतिषीय संयोगों के दौरान:-
पृथ्वी और आकाशीय शक्तियों के बीच सामंजस्य स्थापित होता है।
इन तिथियों पर गंगा, यमुना और सरस्वती में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि होती है।
इन योगों के दौरान किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक फलदायी माना जाता है।
 
महाकुंभ मेले में संगम स्नान का महत्व:-
महाकुंभ मेले का मुख्य आकर्षण प्रयागराज के त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती) में स्नान करना है। संगम स्नान से आत्मा की शुद्धि होती है। यह माना जाता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु यहां आकर पितरों का तर्पण भी करते हैं, जिससे उनके पूर्वजों को शांति मिलती है।
 
महाकुंभ मेला 2025: प्रमुख तिथियां
  • 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति (प्रथम शाही स्नान)
  • 17 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा
  • 29 जनवरी 2025: माघी अमावस्या (मुख्य स्नान)
  • 13 फरवरी 2025: बसंत पंचमी
  • 26 फरवरी 2025: माघी पूर्णिमा (अंतिम स्नान)
 
महाकुंभ मेले में श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधाएं का विशेष ध्यान रखा गया है। उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन ने महाकुंभ मेले के लिए विशेष इंतजाम किए हैं:
- श्रद्धालुओं के लिए विशेष शिविर और आरोग्य केंद्र।
- सुरक्षा बलों की तैनाती ताकि मेला स्थल पर शांति बनी रहे।
- संगम तट पर पानी की गुणवत्ता और साफ-सफाई सुनिश्चित की जा रही है।
- ऑनलाइन पंजीकरण और विशेष ट्रेनों का संचालन भी किया जा रहा है।