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दो मटकियों में किसी नदी या सरोवर का जल भरा जाता है और फिर उसे आपस में बंधी हुई बांस की स्टिक पर रखकर उसे बांस के एक लंबे डंडे पर बांधा जाता है। इस अवस्था में आकृति किसी तराजू की तरह हो जाती है।
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आजकल तांबे के लोटे में जल भरकर इसे कंधे पर लटकाकर यात्रा की जाती है। यात्रा करने वालों को कावड़िया कहते हैं।
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कांधे पर कावड़ उठाए, गेरुआ वस्त्र पहने, कमर में अंगोछा और सिर पर पटका बाँधे, नंगे पैर चलने वाले ये लोग देवाधिदेव शिव के समर्पित भक्त होते हैं।
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कावड़िये यह जल ले जाकर पास या दूर के किसी शिव मंदिर में शिवलिंग का उस जल से जलाभिषेक करते हैं।