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Suresh S Duggar
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के इतिहास में यह शायद पहला मौका है कि एशिया के दूसरे नम्बर के ट्यूलिप गार्डन में लाखों ट्यूलिप खिले हुए हैं पर उन्हें निहारने वाला कोई नहीं है। ट्यूलिप गार्डन में मार्च के अंतिम सप्ताह में फूल खिलते हैं।
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देश में लॉकडाउन का आज 24वां दिन था कश्मीर में कोरोना की दहशत के कारण 30 दिनों से ही कर्फ्यू लगाया जा चुका था।
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यही कारण था कि ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले ट्यूलिप के फूलों और बादामबाड़ी में बादामों के पेड़ों पर खिलने वाले फूलों को निहारने वाले बंद कमरों से सिर्फ खुदा से कोरोना से निजात पाने की दुआएं ही कर रहे थे।
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पर्यटन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, कश्मीर में बहार का आगाज परंपरागत रूप से अप्रैल में ही होता है। इसे इस बार कोरोना की दहशत के कारण नहीं खोला जा सका है।
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जब्रवान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले सफेद, पीले, नीले, लाल और गुलाबी रंग के ट्यूलिप के फूल आज नीदरलैंड में खिलने वाले फूलों का मुकाबला कर रहे हैं।
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फूल प्रेमियों के लिए ये नीदरलैंड का ही माहौल कश्मीर में इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि भारत भर में सिर्फ कश्मीर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर मार्च से लेकर मई के अंत तक तीन महीनों के दौरान ये अपनी छटा बिखेरते हैं।
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रोचक बात यह है कि पिछले साल ट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंध कर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है।
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यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन- शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही -ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनिया भर के लोग इसलिए जानते थे।
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लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है।
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चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लिजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालत की कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है।