वल्कल वस्त्र और मृगचर्म पहने हुए एक जटाधारी ब्राह्मण शराबी राजा सर्वमित्र के दरबार में पहुँचा। उसके हाथ में एक सुरापात्र था। जाते ही ब्राह्मण बोला- 'ले लो, ले लो यह शराब! जिसे लोक-परलोक की चिंता न हो, मौत का डर न हो, वह इसे ले सकता है, जरूर ले सकता है।'
ब्राह्मण का यह वचन सुनकर और उसके चेहरे पर तेज देखकर राजा ने उसे प्रणाम किया। राजा ने कहा कि ब्राह्मण देवता आप तो खूब सौदा कर रहे हैं। सभी व्यापारी तो अपनी चीजों के गुण बताते हैं, पर आप तो उसके दोष बता रहे हैं। बड़े सत्यवादी हैं आप!
ब्राह्मण बोला- महाराज सर्वमित्र! जो इसे पीता है, अपना होश खो बैठता है। उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहता। चाहे जो खिला दो, सड़क पर वह लड़खड़ाकर गिरता है। कुत्ते उसके मुँह में पेशाब करते हैं। ले लो, ले लो यह शराब! तुम इसे पीकर सड़क पर नंगे नाचोगे।
तुम्हें बहू और बेटी में कोई भेद न जान पड़ेगा। स्त्री इसे पीकर पति को पेड़ से बाँधकर कोड़े लगवाएगी। इसे पीकर लाख वाले खाक में मिल जाते हैं। राजा लोग रंक बन जाते हैं। पाप की माँ है यह शराब! ले लो, ले लो यह शराब!'
सर्वमित्र ब्राह्मण के पैरों पर गिर पड़ा। बोला 'धन्य हैं महाराज! आपने मुझे शराब के सब अवगुण बता दिए हैं। मैं अब कभी शराब नहीं पिऊँगा। आपने मुझे इसके दोष ऐसे अच्छे ढंग से समझाए, जैसे बाप बेटे को समझाता है, गुरु चेले को। आप जो चाहें मेरे यहाँ से ले जाएँ।
ब्राह्मण रूपधारी बोधिसत्त्व बोले- 'मुझे कुछ न चाहिए। तुम्हारा पतन मुझसे नहीं देखा जाता, इसी से मैं ऐसा रूप धरकर तुम्हें बचाने आया।'