यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। यदि चैत्र अधिक मास हो तो दूसरे चैत्र में करना चाहिए। इसमें 'सम्मुखी' (सर्वव्यापिनी) प्रतिपदा ली जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस दिन उदय में जो वार हो, वही उस वर्ष का राजा होता है।
यदि उदयव्यापिनी दो दिन हो या दोनों दिनों में ही न हो तो पहले दिन जो वार हो वह वर्षेश होता है। चैत्र मलमास हो तो पूजनादि सभी काम शुद्ध चैत्र में करने चाहिए। मलमास में कृष्ण पक्ष के काम पहले महीने में और शुक्ल पक्ष के काम दूसरे में करने चाहिए।
इस दिन प्रातः नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर स्वच्छ या नए (सामर्थ्यानुसार) वस्त्राभूषण धारण करें। इसके बाद हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत तथा जल लेकर संकल्प करें। स्वच्छ एवं गंगा जल से पवित्र की गई चौकी या बालू की वेदी पर नया सफेद वस्त्र (कोरा) बिछाएँ। हल्दी या केसर से रंगे हुए अक्षत (चावल) का एक अष्टदल (आठ दलों वाला) कमल बनाएँ।
यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। यदि चैत्र अधिक मास हो तो दूसरे चैत्र में करना चाहिए। इसमें 'सम्मुखी' (सर्वव्यापिनी) प्रतिपदा ली जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उस दिन उदय में जो वार हो, वही उस वर्ष का राजा होता है।
इसके पश्चात पूरा नारियल लें अथवा संवत्सर ब्रह्मा की स्वर्ण-प्रतिमा स्थापित करें। 'ॐ ब्रह्मणे नमः' से ब्रह्माजी का पूजन आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, नीरांजन, नमस्कार, पुष्पांजलि और प्रार्थना आदि से करें।