सोमवार, 14 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. अन्य त्योहार
Written By ND

कुँआरियों का 'संजा पर्व'

कुँआरियों का ''संजा पर्व'' -
- ज्योत्स्ना भोंडवे

ND
गणेश उत्सव के बाद कुँवारी कन्याओं का त्योहार आता है 'संजा'। यूँ तो यह देश के कई भागों में मनाया जाता है। बस इसका नाम अलाहदा होता है जैसे महाराष्ट्र में गुलाबाई (भूलाबाई), हरियाणा में 'सांझी धूंधा', ब्रज में 'सांझी' राजस्थान में 'सांझाफूली' या 'संजया'।

क्वार कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर अमावस्या तक शाम ढलने के साथ घर के दालान की दीवार के कोने को ताजे गोबर से लीपकर पतली-पतली रेखाओं पर ताजे फूल की रंग-बिरंगी पंखुड़ियाँ चिपका कर तैयार होती है 'संजा'। इसमें चौखुणी, छहखुणी, अठखुणी गहलियों में सँजाए चीती है।

गणेश, चाँद सूरज, देवी-देवताओं के साथ बिजौरा, कतरयो पान, दूध, दही का वाटका (कटोरी) लाडू घेवर, घुघरो नगाड़ा, पंखा, केला को झाड़, चौपड़ दीवाली झारी, बाण्या की दुकान, बाजूर, किल्लाकोट होता है। मालवा में 'संजा' का क्रम पाँच (पंचमी) से आरंभ होता है। पाँच पाचे या पूनम पाटला से। दूसरे दिन इन्हें मिटाकर बिजौर, तीसरे दिन घेवर, चौथे दिन चौपड़ और पंचमी को 'पाँच कुँवारे' बनाए जाते हैं।

लोक कहावत के मुताबिक जन्म से छठे दिन विधाता किस्मत का लेखा लिखते हैं, जिसका प्रतीक है छबड़ी। सातवें दिन सात्या (स्वास्तिक) या आसमान के सितारों में सप्तऋषि, आठवे दिन 'अठफूल', नवें दिन 'वृद्धातिथि' होने से डोकरा-डोकरी और दसवें वंदनवार बाँधते हैं। ग्यारहवें दिन केले का पेड़ तो बारहवें दिन मोर-मोरनी या जलेबी की जोड़ मँडती है। तेरहवें दिन शुरू होता है किलाकोट, जिसमें 12 दिन बनाई गई आकृतियों से साथ नई आकृतियों का भी समावेश होता है।
ND


गुलपती, गेंदा, गुलबास के फूलों से सजती है 'संजा'। संजाबाई के किलाकोट में कौआ बेहद जरूरी है, जिसे सुबह सूरज उगने के पहले संजा से हटा दिया जाता है। इसके पीछे की मान्यता है कि कौआ रात में न हटाने से वह संजा से विवाह के लिए ललक उठता है। पूजन पश्चात कच्चे दूध, कंकू तथा कसार छाँटा जाता है। प्रसादी के बतौर ककड़ी-खोपरा बँटता है और शुरू होते हैं संजा गीत-

'संजा मांग ऽ हरो हरो गोबर
संजा मांग ऽ हरो हरो गोबर
कासे लाऊ बहण हरो हरो गोबर
संजा सहेलडी बजार में हाले
वा राजाजी की बेटी।'

या- संजा के दरबार में चंपो फुलीरियो म्हारीमाय कुण बाई तोड़े फूल और श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के साथ ढोल-ताशों के बीच 'सारे समेट' कर नई नवेली 'बन्नी' ओढ़कर बिदा होती है संजा-
'म्हारी संजा फूली वई गई, वई गई
बासी टुकड़ा खाई गई, खाई गई।'