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आज है कूर्म द्वादशी : जानिए महत्व, पूजा विधि और कूर्म अवतार की कथा

आज है कूर्म द्वादशी : जानिए महत्व, पूजा विधि और कूर्म अवतार की कथा - kurma dwadashi 2023
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आज कूर्म द्वादशी है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आज पौष मास की द्वादशी तिथि है, यह भगवान विष्णु को समर्पित तिथि है। मंगलवार का दिन बहुत खास है, क्योंकि आज जहां पौष पुत्रदा एकादशी का पारण होगा, वहीं कूर्म द्वादशी के दिन रोहिणी नक्षत्र के साथ त्रिपुष्कर, सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है।

कूर्म द्वादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यतानुसार यह व्रत प्रतिवर्ष पौष शुक्ल द्वादशी को रखा जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म यानि कछुआ अवतार लिया था। अत: यह दिन को कूर्म द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन कूर्म द्वादशी व्रत पर कूर्म अवतार की कथा का पाठ भी किया जाएगा। 
 
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीविष्णु ने कूर्म का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीहरि (lord vishnu) कच्छप अवतार लेकर प्रकट हुए थे। साथ ही समुद्र मंथन के वक्त अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को उठाकर रखा था। विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप (कछुआ) अवतार भी कहते हैं। 
 
पूजा विधि- 
- कूर्म द्वादशी के दिन सुबह जल्दी जाकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। 
- भगवान विष्णु की पूजा करने से पहले खुद को शुद्ध करें। 
- अब एक पटिए पर भगवान श्रीविष्णु की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर श्रीविष्णु का पूजन करते हुए पुष्प, हार तथा धूप चढ़ाएं। 
- अब दीपक जलाकर आरती करें। 
- नैवेद्य के रूप में फल और मिठाई अर्पित करें। 
- कूर्म अवतार की कथा का वाचन करें।
- साथ ही विष्णु सहस्रनाम, नारायण स्तोत्र और विष्‍णु मंत्रों का जाप करें।
 
कूर्म द्वादशी के शुभ मुहूर्त- 
शुभ योग- 3 जनवरी को सुबह 06.54 मिनट से शुरू होकर 04 जनवरी 2023 को सुबह 07.07 मिनट तक। 
रोहिणी नक्षत्र- सायं 04.26 मिनट से 04 जनवरी को सायं 06.48 मिनट तक।
पौष शुक्ल द्वादशी तिथि- रात 10.01 मिनट तक, तत्पश्चात त्रयोदशी तिथि शुरू हो जाएगी।
आज का राहुकाल- दोपहर 02.48 मिनट से 04.06 मिनट तक। 
 
कथा- दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। तब देवों और अनुसरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के लिए उन्होंने मदरांचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। परंतु नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण पर्वत समुद्र में डूबने लगा। 
 
यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ। समुद्र मंथन करने से एक एक करके रत्न निकलने लगे। कुल 14 रत्न निकले और अंत में निकला अमृत कुंभ। 
 
देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब झगड़ा हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दानवों ने उसका पीछा किया और सभी आपस में झगड़ने लगे। झगड़े को सुलझाने के लिए कच्‍छप अवतार के बाद ही श्रीहरि विष्णु को मोहिनी का रूप धारण करना पड़ा। सभी अनुसार मोहिनी के बहकावे में आ गए और अमृत कलश उसके हाथों में सौंप कर उसे ही बटवारा करने की जिम्मेदारी सौंप दी। 
 
मोहिनी के पास एक दूसरा कलश भी था जिसमें पानी था। कलश बदल-बदल कर वह देव और असुरों को जल पिलाती रहती हैं। फिर कुछ देव भी अमृत पीने के बाद नृत्य करने लगते हैं। तभी एक असुर ने मोहिनी के इस छल को देख लिया और वह चुपचाप देवता का वेश धारण करके देवताओं की पंक्ति में बैठ गया, तभी उस असुर का यह छल चंद्र देवता ने देख लिया। 

जब मोहिनी रूप में श्रीहरि उसे अमृत पिलाने लगे भी वह देवता कहने लगे, मोहिनी ये तो दानव है। तभी मोहिनी बने भगवान विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से उस दानव की गर्दन काट दी और फिर वे वहां से अदृश्य हो गए। जिसकी गर्दन काटी थी वह राहु था।
 
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