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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 (18:38 IST)

Gopashtami: गोपाष्टमी 2025: महत्व, पूजा विधि और श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा

गोपाष्टमी 2025
Gopashtami 2025: गोपाष्टमी का पावन पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन गाय, बछड़े, गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण (गोपाल) के पूजन के लिए समर्पित है। इस बार यह पर्व 29 अक्टूबर 2025 बुधवार के दिन मनाया जाएगा। आओ जानते हैं इस पर्व के महत्व, पूजा विधि और श्री कृष्‍ण से जुड़ी कथा।
 
गोपाष्टमी का महत्व: 33 करोड़ देवताओं का वास:
हिंदू धर्म में गाय को गौ माता का दर्जा दिया गया है और उन्हें अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए गौ-पूजन करने से समस्त देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
 
1. अक्षय पुण्य: गोपाष्टमी के दिन गौ सेवा और दान-पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
2. संकट से मुक्ति: मान्यता है कि इस दिन गौ सेवा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता।
3. आरोग्य लाभ: यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति गौ माता के नीचे से निकलता है, उसे विशेष पुण्य और शुभता प्राप्त होती है।
4. मातृ प्रेम: जिस प्रकार माँ अपनी संतान को सुख देती है, उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने हृदय में स्थान देकर उनकी हर इच्छा पूरी करती हैं।
 
गोपाष्टमी पूजन विधि (क्या करें?):
गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा और सेवा करने का विशेष विधान है।
 
सुबह (शुभ मुहूर्त/ब्रह्म मुहूर्त)-
1. स्नान और श्रृंगार: गाय और उनके बछड़े को नहलाकर धुलाएं। उन्हें सुंदर वस्त्र, आभूषण (या रोली-हल्दी के टीके) और माला पहनाकर श्रृंगार करें।
 
पूजा और परिक्रमा-
2. पूजन और आरती: गाय माता की पंचोपचार विधि (गंगा जल, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) से पूजा करें, दीया जलाकर आरती उतारें। 3. परिक्रमा: गौ माता की श्रद्धापूर्वक परिक्रमा करें।
 
बाहर जाना-
4. गौ चारण: परिक्रमा के बाद गाय और बछड़े को घर से बाहर लेकर जाएं और कुछ दूर तक उनके साथ चलें। यह प्रतीक है कि आप गौ चारण (गाय चराने) की परंपरा का पालन कर रहे हैं।
 
भोजन कराना-
5. गौ सेवा: गाय को हरा चारा, हरा मटर, गुड़ या विशेष पकवान खिलाएं।
 
शाम (संध्याकाल)-
6. सायं पूजा: जब गायें चरकर वापस घर लौटती हैं, तब उनकी दोबारा पूजा और आरती करें।
 
दान-
7. ग्वालों को दान: इस दिन ग्वालों (गाय चराने वालों) को यथाशक्ति दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।
 
जिनके घर गाय नहीं-
8. गौशाला में सेवा: जिनके घर गाय नहीं हैं, वे गौशाला जाकर पूजा करें, गायों को चारा-गुड़ खिलाएं, और गौ संवर्धन के लिए यथाशक्ति अन्न, धन या अन्य वस्तुएं दान करें।
 
गोपाष्टमी पर्व की पौराणिक कथा-
गोपाष्टमी पर्व का सीधा संबंध भगवान श्रीकृष्ण की गौ-चारण लीला (गाय चराने) से है। पौराणिक कथा के अनुसार, बाल कृष्ण ने माता यशोदा से जिद की कि वह अब बड़े हो गए हैं और गाय चराना शुरू करना चाहते हैं। माता यशोदा ने नंद बाबा से इसकी अनुमति मांगी। नंद महाराज ने शुभ मुहूर्त जानने के लिए एक ब्राह्मण से सलाह ली। ब्राह्मण ने कहा कि गाय चराने की शुरुआत के लिए कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन सबसे उत्तम और शुभ है।
 
इस शुभ तिथि पर:
माता यशोदा ने अपने लल्ला (कृष्ण) का श्रृंगार किया। जब वे उन्हें जूते पहनाने लगीं, तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया।
 
उन्होंने कहा, "मैय्या, जब मेरी गौएं जूतियाँ नहीं पहनतीं, तो मैं कैसे पहन सकता हूँ? यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी पहना दो।"
 
इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रहने तक कभी पैरों में जूतियाँ नहीं पहनीं।
 
आगे-आगे गौ माताएँ चलीं और उनके पीछे बाँसुरी बजाते हुए भगवान श्री कृष्ण, उनके बड़े भाई बलराम तथा ग्वाल-गोपाल उनका यश गान करते हुए वन में प्रवेश किया।
 
इस प्रकार, भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ इसी शुभ तिथि पर हुआ, और तभी से यह दिन गोपाष्टमी कहलाया। इस दिन से बाल कृष्ण को लोग गोविंदा (गायों को आनंद देने वाला) के नाम से भी पुकारने लगे।