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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 24 अगस्त 2024 (16:16 IST)

Balaram Jayanti: 2024 में कब है बलराम जयंती, जानें हल षष्ठी का महत्व, मुहूर्त एवं व्रतकथा

Balaram Jayanti: 2024 में कब है बलराम जयंती, जानें हल षष्ठी का महत्व, मुहूर्त एवं व्रतकथा - Baladeva Chhath Puja 2024
Hal Shashthi 2024
 
Highlights 
 
2024 में हल षष्ठी कब है।
बलराम जन्मोत्सव की तिथि और महत्व जानें।
हल या रंधन षष्ठी व्रत की कथा। 

 
Hal Shashthi 2024 : हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी से 1 या 2 दिन पूर्व हल षष्ठी व्रत पड़ता है। वर्ष 2024 में बलराम या बलदाऊ जयंती अथवा हल षष्ठी का पर्व 24 अगस्त और मतांतर के चलते 25 अगस्त को मनाया जा रहा है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक द्वापर युग में भगवान बलराम सृजन के देवता थे। श्री कृष्ण के बड़े भ्राता और भगवान विष्णु के अवतार भगवान बलराम के जन्म दिवस के रूप में हल षष्ठी अथवा हल छठ का त्योहार मनाया जाता है। 
हल छठ व्रत के मुहूर्त और समय : 
 
ब्रह्म मुहूर्त- तड़के 04:27 से 05:11 तक। 
प्रातः सन्ध्या- सुबह 04:49 से 05:55 तक। 
अभिजित मुहूर्त- अपराह्न 11:57 से 12:49 तक। 
विजय मुहूर्त- दोपहर 02:32 से 03:24 तक।  
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:51 से 07:13 तक। 
सायाह्न सन्ध्या- सायं 06:51 से 07:58 तक।  
अमृत काल- अपराह्न 11:26 से 12:55 तक।  
निशिता मुहूर्त- 25 अगस्त को 12:01 ए एम से 12:46 तक। 
कथा : हल षष्ठी व्रतकथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसव काल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस यानि दूध-दही बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। 
 
वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
 
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। 
 
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए। ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। 
 
बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया। अत: इस दिन हल षष्ठी व्रत करने तथा कथा सुनने से संतान को लंबी आयु तथा सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है। 
महत्व : धार्मिक मतानुसार भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या हलछठ का यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन को चंद्र षष्ठी, बलदेव छठ, ललई षष्ठी और रंधन षष्ठी भी कहते हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की रक्षा के लिए व्रत रखती हैं। इसी दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम का जन्म हुआ था। अत: महिलाओं द्वारा व्रत-उपवास रखने से पुत्र को लंबी आयु और समृद्धि प्राप्त होती हैं। 
 
मान्यतानुसार संतान की रक्षा के लिए यह व्रत अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण संतान के जीवन के कष्ट नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत पुत्रवती स्त्रियों को विशेष तौर पर करना चाहिए। इस दिन महुए की दातुन करना चाहिए। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना वर्जित कहा गया है। इस दिन हल पूजा का विशेष महत्व माना गया है। हल छठ के दिन हल से उत्पन्न अन्न और फल नहीं खाना चाहिए। हर छठ पर दिनभर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को पसही के चावल या महुए का लाटा बनाकर पारणा करने की मान्यता है। यह व्रत रखने से बलराम यानी शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान बलराम की तरह ही बलशाली होती है। 
 
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