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हवा बहती है
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हरिबाबू बिंदल हवा बहती है, लिए कभी सुगंध कभी बहुत तेज, कभी मंद-मंद कभी साँय-साँय, आँधी तूफान घाटी झकझोर, समुद्र में उफान। कभी शीतल, मन लुभाती कभी लू बन करके तपातीहवा, प्राण वायु देती है कभी प्राण भी हर लेती है। उपद्रव मचा देती है घरों-बस्तियों को ढहा देती हैकभी रुक जाती है पसीना-पसीना, बेचैनी, उमस उबकाई भर देती है। हवा चलने की चाह देती हैकहाँ से आती है कहाँ जाती हैक्यों आती है कितने ही प्रश्नखड़े कर जाती है। साभार - गर्भनाल