कानपुर में जन्म। कानपुर विवि से एम.ए. और बुंदेलखण्ड विवि से पी-एच.डी.। भारत में 1983 से 1998 तक अध्यापन कार्य किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख एवं कविताएँ प्रकाशित। मई 1998 में अमेरिका पहुँचीं और 2003 में वे एडल्ट एजुकेशन में शिक्षण से जुड़ गईं। सम्प्रति वे वेसलियन विश्वविद्यालय, कनैक्टिकट में हिंदी प्राध्यापक हैं।
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समाज क्या है एक प्रश्नचिह्न? या फिर घिसी-पिटी मान्यताओं का एक जीता-जागता स्वरूप विद्रूपता का प्रतीक अफवाहों का विषैला धुआँ। या भ्रष्टाचार की नंगी तस्वीर कोई स्पष्ट अस्तित्व नहीं कोई विशिष्ट व्यक्तित्व नहीं फिर तुम्हारी क्या औकात क्या बिसात कि तुम किसी को कुछ करने से रोको-टोको अच्छाई-बुराई की राह दिखाओ जब तुम किसी दुखियारे के आँसू पोंछ नहीं सकते किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी नहीं कर सकते तो फिर यह प्रतिबंध क्यों? तुम तो निरे क्षुद्र हो, स्वार्थी हो किसी के लिए कुछ कर नहीं सकते जो भी करना है मुझे करना है मुझे यानी, समाज की हर एक इकाई को मैं समाज की एक इकाई हूँ मैं एक डॉक्टर हूँ मैं एक इंजीनियर हूँ मैं एक क्लर्क हूँ मैं एक गेटकीपर हूँ मैं जो कुछ भी हूँ मेरी एक पहचान है मेरी अपनी स्वायत्तता है मैं समाज से नहीं समाज मुझसे बनता है मेरे आचरण की शुद्धता से मेरे कर्म की निष्ठा से मेरे चरित्र की दृढ़ता से मेरे अंत:करण की पवित्रता से समाज की परिभाषा बनती है।