पुत्र का जवाब
जयपुर में हुए श्रंखलाबद्ध बम विस्फोट से आहत होकर पुत्र से फोन पर वार्तालाप
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सुषमा श्रीवास्तव20
दिसंबर 1958 को हाथरस (उप्र) में जन्म। दयालाबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, आगरा से संस्कृत में एमए, एमएड, नई दिल्ली, बगदाद और सिंगापुर में अध्यापन कार्य। विद्यालय पत्रिका साधना का संपादन, लघु नाटकों, नृत्य नाटिकाओं का लेखन व मंचन। अनुभूति, हिन्दी चेतना, साहित्य कुंज आदि पत्रिकाओं में लेख और कविताएँ प्रकाशित। वर्तमान में अमेरिका में निवास। बेटा... ये क्या हो रहा है?दुनिया में कहीं भी शांति नहीं।कहीं बम विस्फोट तो कहीं भूकम्प, कहीं चक्रवात।पुत्र ने सहजता से दिया उत्तर :माँ! ये कलयुग है, कलयुग।इसमें क्या आसमान से फूल-पत्तियाँ गिरेंगी।उत्तर सुनकर हमें हुआ गर्वसोचने लगी...ये तो मुझसे भी ज्यादा निकला समझदारन तर्क, न वितर्ककलयुग और सतयुग का अंतरबड़ी जल्दी समझ गया।इतनी कम उम्र में ही परिस्थितियों को सही माने में जान गया।उसकी बात सोलह आने सही...कलयुग यानी मशीनी युग मेंबच्चे बड़ी जल्दी समझदार हो रहे हैंउनकी समझदारी देख हम भी फूले नहीं समा रहे हैं।और ये भूल रहे हैं कि...परिस्थितियों को समझने और सामंजस्य बैठाने मेंलगता है वक्त।परिणाम सामने हैं...प्राकृतिक आपदा, परमाणु आपदा, सामाजिक आपदा।आपदा... आपदा... और आपदा...कुछ ही लोग बुद्धि और विवेक से लेते हैं कामवैज्ञानिक तकनीकों को लोकहित में लगाते हैंएक ही नहीं सैकड़ों को आराम पहुँचाते हैं।