ध्यानमग्न झील
मिशिगन झील पर एक कविता
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डॉ. हरि जोशी क्यों तरंग से रहित आज विस्तीर्ण जलाशय दूर-दूर तक जल ही जल सुखमय निर्भय गहाराई बीच में किनारे बतला सकते थाह तन की डुबकी का आनंद नहीं उसमें पर समीप होने का छू लेने का उत्साह ध्यानमग्न साध्वी के निकट बैठ लेने की चाह। श्वास मंद उपवास मौनव्रत भी कठोरतम नख से शिख न क्रिया प्रतिक्रिया अथवा स्पंदन यद्यपि सांस चल रही सधी वन पान न खड़के आवागमन श्वास का राम नाम बढ़-चढ़ के पहुँचे हुए संत की जिज्ञासु शिष्या यह झीलपरमानंद की शीर्ष स्थिति पा अविचल समाधिस्थ परिपूर्ण आत्मानुभूति केंद्रित सुध-बुध खो चुकी विशाल मिशिगन झील।