कृष्ण जन्माष्टमी
- रेणु राजवंशी गुप्ता
हूँ अजन्मा फिर भी जन्म लेता हूँ प्रतिवर्ष धरा के कोने-कोने में भक्तगण कीर्तन करते, रास गाते लीलाओं का गाण करते। मध्यरात्रि में कृत्रिम तिमिर कर मेरे आगमन की प्रतीक्षा करते हिंडोला झुलाकर मेरा जन्मोत्सव मनाते प्रत्येक भक्त गोपी-गोपी बन जाता नंद यशोदा कहाता। भावनाओं में थिरकते भक्तगण उच्च स्वर में मुझे पुकारते माखन चोरी, चीर हरण गैया चराने, बाँसुरी बजाने रास करने की क्रीड़ा गाते सब। परंतु कोई नहीं याद करता पूतना, बकासुर, कालिया मर्दन तृणासुर, भस्मासुर, चाणूर वध कोई नहीं गाता गीता ज्ञान ध र्म संस्थापन, अधर्म का नाश द्रौ पदी की गुहार पर आने वाला गोपाल पांडवों की रक्षा में चक्र उठाने वाला केशव। इस वर्ष अरुणाचल में जन्माष्टमी के पर्व पर हुआ मेरे भक्तों पर आतंकी हमला कितने हुए मृत कितने हुए घायल य ह सुनकर भी क्यों रहे मेरे भक्त मौन? न निंदा के दो बोल न आतंकियों को दंड देने का प्रण न रोष, न प्रतिकारविलुप्त हो गया गीता ज्ञान विस्मृत हो गया दुष्ट दलन। प्रतिवर्ष कंस चाणूर जन्म लेते र हे भक्त मेरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण जपते रहे।