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रबड़ प्लांट
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डॉ. मधु संधु सारी धूपबूँदाबाँदी समीरण सारी प्रकृति छीनकर संरक्षित दूव को कर देते हो अस्तित्वहीन, आक्रांत। पौधों का भ्रम देकर कोनों में उभरे और दीमक-सा घुनते हो प्राचीरों के सब आधार। फूल न फल तुझ पर पीन पत्राबोझिल तब आत्म मुग्ध वंचित मन आँगन में छाए हो पर सिर्फ साए होसोख रहे पल-पल तुम उर्वरता ओ पाषाण। पहाड़ों पर होते हैं रबड़ के पेड़पर मेरे घर आँगन में हैं बरगद की जाति के रबड़ प्लांट। साभार- गर्भनाल