शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. आपकी कलम
  4. Pravasi Hindi Kavita

प्रवासी साहित्य : माजरा क्या है?

प्रवासी साहित्य : माजरा क्या है?। Hindi Kavita - Pravasi Hindi Kavita
-रेखा भाटिया
 
मैंने मंदिर देखा, मस्जिद देखी,
चर्च देखा और देखा गुरुद्वारा,
मैंने मेरे प्रभु से पूछा,
समझा दो क्या है सारा माजरा।
 
तू मदारी या मेरे बंदे मदारी,
तू गरीबों का मसीहा,
वो मांगे पेट के लिए रोटी,
गरीब पूजे, अमीर पूजे तुझे।
 
तू अमीरों का मसीहा,
वो मांगे गरीबों का खून,
राजनेता पूजे तुझे, अभिनेता पूजे,
खिलाड़ी पूजे तुझे, अनाड़ी पूजे।
 
सभी की एक ही भूख,
रोटी-कपड़ा-मकान चाहिए,
मान-सम्मान चाहिए,
फिर उस पर ऐशो-आराम चाहिए।
 
सुख के सागर में गोते लगाना हर कोई चाहता,
दु:ख का बोझ तुझ पर डालना चाहता,
जब पेट भरे हैं सबके, तू मूर्तियों में ही भला है,
किसी अनहोनी में, तू ही दोषी बड़ा है।
 
मुस्कान संग प्रभु मुस्करा बोले,
मैं रचयिता मैं भी सोचूं,
इंसानियत का पाठ हैं मुझे पढ़ाते,
अपनी रचना पर मैं ही चकित हूं।
 
क्या मैंने ये एटम बम बनाए,
क्या मैंने खींचीं थीं ये रेखाएं,
क्या मैंने भेदा था आसमां को,
इन हवाओं का रुख क्या मैंने बदला।
 
मैंने तो की थी एक सुन्दर रचना,
हरीतिमा सृष्टि सतर्क सुबोध जन,
भक्ति-ज्ञान के भंडारों से भरी,
रंग-बिरंगी काम्य प्रमोदित दुनिया।
 
इस सारे संसार की देखभाल के लिए,
मैंने मां को अपने आसन पर बिठाया,
उसका मन भी नारी बनने को ललचाया,
अब तुम ही कहो मैं मदारी या वो।
 
मैं तो बस भक्ति का भूखा,
इतने में ही संतुष्ट हो जाता,
परंतु इनकी भूख तो कभी नहीं मिटती,
मिट रही है मेरी अलौकिक रचना।
 
खो रहा है संतुलन सृष्टि में,
प्राणीमात्र का अस्तित्व खतरे में,
पीड़ित है धरती प्रदूषित जल है,
संक्रमित नभ-थल-जलचर है।
 
अब मंदिर जाओ, मस्जिद जाओ,
चर्च या गुरुद्वारे जाओ,
किसी भी दिशा-स्थान जाओ,
भेद क्या है तुम्हीं बताओ!