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प्रवासी कविता : जनतंत्र की अमूल्य वस्तु

प्रवासी कविता : जनतंत्र की अमूल्य वस्तु - poem on democracy
- चन्द्रेश प्रकाश ( Boston, USA) 
 
ले लिया नोट दे दिया वोट
पी ली दारू हो गए मस्त
चुन लिए महान पूजनीय नेता
शुरू हुई फिर पंचवर्षीय परियोजना।
 
महंगाई नहीं थम रही
मजदूरी कम पड़ रही
तनख्वाह नहीं बढ़ रही
मुश्किल जीवन कट रहा।
 
ऐसे में-
नोट कहां से आते
नेताओं के पास?
इन दानवीर नेताओं पर 
क्या खुदा है मेहरबान?
 
दुनिया है लेन-देन की
बिन पैसे के काम न कोई हो रहा
हर सरकारी काम पैसे मांग रहा
हर सरकारी अफसर पैसे खा रहा
कुछ सरकारी अफसर वसूली कर रहे।
 
आप पैसे खिला रहे हो
एक बार नहीं कई बार
फिर नेता क्यूं निश्चिंत हैं 
पैसे खिला के एक बार?
 
वो एक बार खिला के खुश हैं 
आप बार-बार खिला के दुखी हैं
क्यूं ये पांसा पलटता नहीं?
 
क्यूं ऐसा होता नहीं
पैसे एक बार खिलाएं हम
पांच साल निश्चिंत रहें हम
बिन पैसों के काम होएं सरकारी।
 
इन बचे पैसों से जिताएं हम 
अपने बीच के कर्मठ नेता को
क्या ऐसा संभव है?
या कोई कल्पना है?
 
बात वहीं फिर आती है 
बिन पैसों के काम कोई होता नहीं
पैसे देना आपकी मजबूरी है 
पर क्या पैसे लेना मजबूरी है?
 
अगर नहीं लेंगे इनसे नोट
क्या फिर भी देंगे इनको वोट?
हाथ जोड़कर आता नेता
वोट की भीख मांगता नेता
मजबूरी उसकी या आपकी है?
 
पांच साल तक जो नेता 
आपको कहीं दिखता नहीं 
आपको कभी पूछता नहीं
वही नेता वोट के लिए
कौन सा काम करता नहीं?
 
बड़ी-बड़ी बातें बनाता नेता
मीठी-मीठी बातें करता नेता
दारू और पैसे लुटाता नेता
बड़ा हमदर्द बनता नेता
डराता-धमकाता नेता
असल में 
वजूद की लड़ाई लड़ता नेता
क्या उसकी कमजोरी है?
क्या आपकी शक्ति है?
 
वोट न मिलने पर 
बड़े से बड़ा नेता
खत्म हो जाता है
वोट मिलने पर 
आपका अपना
नेता बन सकता है।
 
जनतंत्र की अमूल्य वस्तु 
वोट आपके हाथ में है
इसकी जिम्मेदारी को समझें 
इसकी जिम्मेदारी को संभालें।
 
डर-भय से कोई 
दारू-पैसों पर कोई 
अपनी इज्जत लुटाता नहीं
आपका वोट आपकी इज्जत है
वोट सोच-समझकर दें
नेता बदलें, देश बदलें
बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करें।