होली-लोकगीत
- शकुन्तला बहादुर
सखि, होली ने धूम मचाईमहिनवा फागुन का।देखो झूम-झूम नाचे है मनवामहिनवा फागुन का।।हरे-हरे खेतवा में पीली-पीली सरसोंटेसू का रंग नहीं छूटेगा बरसोंआज धरती का नूतन सिंगारमहिनवा फागुन का। सखि...अबीर-गुलाल की धूम मची हैरंगों की कैसी फुहार चली हैतन रंग गयो, हां मन रंग गयो मोरामहिनवा फागुन का। सखि...कान्हा के हाथ कनक पिचकारीराधा के हाथ सोहे रंगों की थारीहोरी खेल रहे हां, होली खेल रहे बाल-गोपालमहिनवा फागुन का। सखि...बैर-भाव की होली जली हैगाती बजाती ये टोली चली हैसखि प्रेम-रंग हां, देखो प्रेम-रंग बरसे अंगनवामहिनवा फागुन का। सखि...