Last Modified: नई दिल्ली ,
शनिवार, 9 नवंबर 2013 (19:40 IST)
सिब्बल ने चुनाव सर्वेक्षण पर भाजपा पर साधा निशाना
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नई दिल्ली। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को लेकर चल रही बहस के बीच कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि पूर्व में इस पर प्रतिबंध की मांग करने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी इस मामले पर अपने पहले के रुख से पलट गई है।
सिब्बल ने शनिवार को कहा कि सरकार ने इस मुद्दे पर कोई रुख नहीं अपनाया है, लेकिन उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह धारणा है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के साथ हेराफेरी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की सलाह की प्रतीक्षा की जा रही है। आयोग इस पर पाबंदी की सिफारिश करता है और सरकार उसे स्वीकार कर लेती है तो जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की जरूरत पड़ेगी।
सिब्बल ने कहा कि आम धारणा यह है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में हेर-फेर हो सकती है। अगर राजनीतिक दल महसूस करते हैं कि बिना किसी बाधा के सभी को समान अवसर मिलना चाहिए तो एक राय यह भी है कि हमें उसका सम्मान करना चाहिए।
उसने सर्वेक्षणों पर कांग्रेस के उस रुख के बारे में पूछा गया था जिसमें पार्टी ने कहा कि इन पर प्रतिबंध होना चाहिए, क्योंकि ये न तो वैज्ञानिक होते हैं और न ही इनमें पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
भाजपा के इस आरोप पर कि कांग्रेस जनमानस का पूर्व इशारा करने वाली इस संदेशवाहक व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास कर रही है, सिब्बल ने मुख्य विपक्षी दल पर निशाना साधते हुए कहा कि 2004 में भाजपा ही प्रतिबंध लगाने संबंधी मांग करके संदेशवाहक को मारना चाहती थी।
सिब्बल ने कहा कि 4 अप्रैल 2004 को तत्कालीन कानून मंत्री (अरुण जेटली) और भाजपा ने सभी राजनीतिक दलों के साथ यह विचार दिया था कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वास्तव में विपक्षी पार्टी को स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने अपना रुख क्यों बदला है। अरुण जेटली को स्पष्टीकरण देना चाहिए कि 2004 में कानून मंत्री के रूप में उन्होंने पाबंदी का समर्थन किया था और 2013 में वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं। 2004 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को क्या हो गया था? भाजपा पलट गई है।
कानून मंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने अपने उसी रुख पर कायम है, जो उसका 2004 में था। हमारा स्पष्ट रुख था। हमने कहा कि इस पर पूरी तरह पाबंदी नहीं होनी चाहिए। इस रुख और सभी राजनीतिक दलों के विचार के बावजूद पिछले 9 वर्षों में क्या हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर कोई रोक लगाई।
उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून में बदलाव के किसी कदम के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। यह पूछे जाने पर कि सरकार ने इस मुद्दे पर कोई रुख अपनाया है तो मंत्री ने कहा कि सरकार ने कोई रुख नहीं अपनाया है।
उन्होंने कहा कि सरकार कैसे रुख अख्तियार कर सकती है। जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के बिना यह नहीं किया जा सकता। पहले चुनाव आयोग हमें अपनी सलाह देगा। सिब्बल ने कहा कि जब चुनाव आयोग ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को प्रतिबंधित करने के बारे में लिखा तो उन्होंने एटॉर्नी जनरल की राय लिए बगैर आगे बढ़ने से इंकार कर दिया।
एटॉर्नी जनरल ने कहा कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण और चुनाव बाद सर्वेक्षण एक जैसे हैं और इसलिए अगर चुनाव बाद सर्वेक्षण पर प्रतिबंध है तो यह चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी लागू होता है। (भाषा)