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Last Updated : बुधवार, 29 जून 2022 (18:52 IST)

गुप्त नवरात्रि में व्रत रखना चाहिए या नहीं और पूजा करना चाहिए क्या?

गुप्त नवरात्रि में व्रत रखना चाहिए या नहीं और पूजा करना चाहिए क्या? - Gupt navratri Ka rahasya
Aashadh gupt navratri 2022: वर्ष में चार नवरात्रियां होती हैं। चैत्र माह में चैत्र नवरात्रि, आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि, अश्‍विन माह में शारदीय नवरात्रि और माघ माह में गुप्त नवरात्रि। 30 जून 2022, गुरुवार को आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि है। अधिकतर लोग चैत्र माह और अश्‍विन माह की नवरात्रि जिसे नौदुर्गा कहते हैं उसमें व्रत रखते हैं और नवदुर्गा की पूजा करते हैं, लेकिन क्या सभी को गुप्त नवरात्रि में भी व्रत रखना चाहिए या और पूजा करना चाहिए क्या?
 
गुप्त नवरात्रि में व्रत रखें या नहीं, पूजा करें या नहीं?
 
1. चैत्र और अश्विन माह की नवरात्रि सर्व साधारण भक्तों के लिए होती है, जिसे प्रत्यक्ष नवरात्रि कहते हैं जबकि गुप्त नवात्रि साधकों के लिए होती है।
 
2. चैत्र और शारदीय नवरात्रि में सात्विक या दक्षिणमार्गी साधना की जाती है, जबकि गुप्त नवरात्रि में तंत्र अर्थात वाममार्गी साधना की जाती है जो आम लोगों के लिए नहीं होती है।
 
3. नवरात्रि में 9 देवियों की भक्ति और पूजा की जाती है जबकि यदि कोई अघोर साधना करना चाहे तो दस महाविद्या में से किसी एक की साधना करता है जो गुप्त नावरात्रि में सफल होती है।
 
4. गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। आम लोगों को इनसे दूर रहना चाहिए।
 
5. गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। यदि आप उन नियमों का पालन नहीं कर सकते हैं तो आपको व्रत और साधान का संकल्प नहीं लेना चाहिए। 
 
6. प्रत्यक्ष नवरात्रि को सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु मनाया जाता है जबकि गुप्त नवरात्रि को आध्‍यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति, सिद्धि, मोक्ष हेतु मनाया जाता है।
 
7. चैत्र और शारदीय नवरात्रि गृहस्थों और सामान्यजनों के लिए है परंतु गुप्त नवरात्रि संतों और साधकों को लिए है। यह साधना की नवरात्रि है उत्सव की नहीं।

कैसे होती हैं प्रसन्न : सभी 10 माताएं पूजा से नहीं साधना करने से प्रसन्न होती हैं। इनकी गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना होती है। प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)। व्यक्ति को साधना के अनुसार ही चयन करके साधना करना चाहिए।