शुभ और सुंदर जीवन देती है नवरात्रि
सुख-शांति व विजय चाहिए तो करें मां की आराधना
सम्पूर्ण ब्रह्मांड सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधें, पर्वत, सागर, पशु-पक्षी, देव, दनुज, मनुज, नाग, किंन्नर, गधर्व, सदैव प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति की इच्छा से चलायमान हैं। मानव सभ्यता का उदय भी शक्ति की इच्छा से हुआ। उसे कहीं न कहीं प्राण व रक्षा शक्ति के अस्तित्व का एहसास होता रहा है। जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर ने आदि शक्ति मां जगदम्बा को विश्व कल्याण के लिए प्रेरित किया।
जिन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। बिना शक्ति की इच्छा एक कण भी नहीं हिल सकता। त्रैलोक्य दृष्टा शिव भी (इ की मात्रा, शक्ति) के हटते ही शव (मुर्दा) बन जाते हैं। अर्थात् देवी भागवत, सूर्य पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, मार्केंडेय आदि पुराणों में शिव व शक्ति की कल्याणकारी कथाओं का अद्वितीय वर्णन है। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतिवर्ष बड़े श्रद्धा, भक्ति, हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे शरदीय नवरात्रि व ग्रीष्मकालीन नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस समय शारदीय नवरात्रि में खरीफ व ग्रीष्म में रवी की नई फसल तैयार हो जाती है। इन फसलों के रखरखाव व कीट पंतगों से रक्षा हेतु, घर, परिवार व जीवन को सुखी-समृद्ध बनाने तथा भयंकर कष्टों, दुख दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु सभी वर्ण के लोग नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नौ देवियों की आराधना करते हुए हवनादि यज्ञ क्रियाएं करते हैं।