Last Modified: नई दिल्ली ,
मंगलवार, 8 जुलाई 2014 (13:28 IST)
सामने आई मनमोहक रेल बजटों की हकीकत...
नई दिल्ली। दस साल के (मनमोहक रेल बजटों) के बाद आज पहली बार जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने संसद में रेलवे के खाते खोले तो पता चला कि आधुनिकीकरण के लिए भारतीय रेलवे के पास एक रुपए में से छह पैसे ही बचता है और प्रति मुसाफिर प्रति किलोमीटर का घाटा एक दशक में दस पैसे से बढ़कर बीस पैसे पहुंच गया है।
WD
रेल मंत्री सदानंद गौडा ने लोकसभा में मोदी सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए कहा कि रेलवे की पिछले साल कुल प्राप्ति एक लाख 39 हजार 558 करोड़ रुपए थी और इसमें से एक लाख 30 हजार 331 करोड़ रुपए रेलवे के संचालन, रखरखाव और वेतन पर खर्च हो गया। ऐसे में लोकलुभावन परियोजनों का वही हाल हुआ जो होना था। साल दर साल नई परियोजनाएं घोषित की गईं और अमल के नाम पर जीरो काम हुआ।
रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे को वित्तीय संसाधनों की इस बदहाली से निकालने के लिए सरकार अगर मुसाफिरों पर बोझ डालती है तो यह भी सही नहीं होगा लेकिन रेलवे को उसके हाल पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसे में सरकार ने वैकल्पिक रास्ते चुने हैं जिनमें लाभ कमाने वाले रेलवे के सार्वजनिक उपक्रमों के संसाधनों का उपयोग करने से लेकर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजी पूंजी रेलवे में आकर्षित करने के विकल्प तलाशे गए हैं।
रेल मंत्री ने बताया कि रेलवे की चार परियोजनाएं 30 साल से लंबित और रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए अगले 10 वर्ष में पांच लाख करोड़ रुपए की जरुरत है। उन्होंने कहा कि वह केबिनेट से रेलवे में एफडीआई और निजी पूंजी के निवेश को मंजूरी देने का अनुरोध करेंगे। (वार्ता)