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Written By भाषा

भारत में गैस उत्सर्जन 55 फीसदी बढ़ा

प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अब भी औसत से कम

भारत में गैस उत्सर्जन 55 फीसदी बढ़ा -
भारत सरकार की जलवायु परिवर्तन पर आकलन तंत्र (आईएनसीसीए) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 13 वर्ष में करीब 55 फीसदी तक बढ़ गया है, लेकिन जनसंख्या के लिहाज से बात करें तो प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व के औसत आँकड़ों के मुकाबले अब भी कम है।

बहरहाल, देश की विकासशील अर्थव्यवस्था के मद्देनजर उत्सर्जन के ताजा आँकड़ों के अधिक नहीं होने की दलील को विशेषज्ञ स्वीकार नहीं करते और उनका कहना है कि हमें ऊर्जा जैसे क्षेत्रों की ओर ध्यान देने की जरूरत है, जिसकी उत्सर्जन में सर्वाधिक हिस्सेदारी है।

आईएनसीसीए की रिपोर्ट ‘भारत : ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 2007’ में पर्यावरण के लिए घातक गैसों के उत्सर्जन में 1994 की तुलना में 2007 तक आए परिवर्तन का आकलन पेश किया गया है।

रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 1994 में भारत में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 12,285.40 लाख टन था, जो 2007 में बढ़कर 17,279.10 लाख टन हो गया। यानी 13 वर्ष की अवधि में उत्सर्जन में करीब 55 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसके बावजूद 2007 में अमेरिका और चीन का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन भारत से करीब चार गुना ज्यादा था।

‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट’ की प्रमुख सुनीता नारायण ने कहा इस रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के आँकड़े विश्व के औसत से कम बताए गए हैं, लेकिन सिर्फ इसी आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ग्रीन हाउस गैसों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं देखी गई है। वर्ष 1994 में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 1.4 टन था, जो 2007 में बढ़कर 1.7 टन हो गया।
विश्व में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन औसतन दो टन है। बहरहाल, सुनीता स्वीकार करती हैं कि आँकड़े जारी होना जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने में गंभीर नहीं होने का भारत पर आरोप लगाने वाले देशों के लिए एक जवाब है। कम से कम इससे देश के रुख में पारदर्शिता तो आएगी ही।

उन्होंने कहा कि भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में भी 1994 के मुकाबले 2007 के अनुमानित आँकड़ों में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। फिर भी हमें अधिक प्रयास करने की जरूरत है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था प्रगतिशील है।

सुनीता ने कहा कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती गैसों के उत्सर्जन के बारे में भारत अपने आँकड़े जारी कर चुका है। वह यह भी घोषणा कर चुका है कि आने वाले वर्षों में वह उत्सर्जन में 20 से 25 फीसदी की कटौती करेगा। इसके बाद अब देश को कदम उठाने की जरूरत है। सबसे अधिक जरूरत ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की है, जिसकी कुल उत्सर्जन में हिस्सेदारी 58 फीसदी है।

रिपोर्ट कहती है कि ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में सबसे ज्यादा 58 फीसदी हिस्सेदारी ऊर्जा क्षेत्र की है। इसके बाद उद्योग जगत के कारण 22 फीसदी, कृषि क्षेत्र की वजह से 17 फीसदी और अपशिष्ट के चलते तीन फीसदी का उत्सर्जन होता है।

पर्यावरणविद वंदना शिवा ने कहा कि दुनिया यह नहीं जानती थी कि तेजी से विकास कर रही देश की अर्थव्यवस्था में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कितना है। इन आँकड़ों से निश्चित तौर पर सरकार को अपनी बात रखने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में हो रही कोशिशों में पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि 1994 से 2007 के बीच अगर कार्बन उत्सर्जन में 55 फीसदी तक का इजाफा हुआ है तो यह उत्साहजनक संकेत नहीं है। अब यह हमारे लिए चिंता का विषय है कि हम आने वाले वर्षों’ में कैसे उत्सर्जन में 20 से 25 फीसदी की कटौती लाने वाले हैं।

वे बताती हैं कि भारत ऊर्जा जरूरतों और उत्सर्जन के बीच संतुलन नहीं बैठा पा रहा है। ऊर्जा क्षेत्र की कुल उत्सर्जन में जितनी हिस्सेदारी है, वह चिंता का विषय है। नदियों और खेतीहर ग्रामीणों को नुकसान पहुँचाते बाँधों का निर्माण किया जा रहा है, पर अक्षय ऊर्जा के विकल्पों पर ज्यादा आक्रामकता के साथ काम नहीं किया जा रहा।

भारत में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के आँकड़े जारी करते हुए पिछले सप्ताह पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि यह किसी भी विकासशील देश की ओर से जारी हुए अब तक के सबसे अद्यतन आँकड़े हैं। भारत इस आकलन के लिए बाध्यकारी नहीं था, लेकिन हमने स्वेच्छा से यह पहल की।

उन्होंने कहा था कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में इससे पहले देश के पास 1994 के आँकड़े थे। हमें नए आँकड़ों की जरूरत थी, ताकि भविष्य की नीतियों का निर्धारण किया जा सके। (भाषा)