क्या होता है 'लोन वुल्फ' अटैक और भारत को क्यों है खतरा?
What is a lone wolf attack: इन दिनों एक खबर सुर्खियों में है कि अलकायदा भारत में 'लोन वुल्फ' हमलों की साजिश रच रहा है। यह संगठन इस्लामिक स्टेट के पैटर्न पर काम करता है। पिछले दिनों पिछले दिनों पुणे में महाराष्ट्र एटीएस ने साफ्टवेयर इंजीनियर जुबैर हंगरगेकर को गिरफ्तार किया था। इससे लगता है कि संगठन लोगों को 'लोन वुल्फ' बनने के लिए उकसा रहा है। लोन वुल्फ किसी संगठन या कट्टरपंथी विचारों से प्रेरित होकर अकेले ही काम करते हैं। बताया जा रहा है कि जुबैर भी अकेले ही काम कर रहा था। आइए जानते हैं आखिर होता क्या 'लोन वुल्फ' और यह कैसे काम करता है....
क्या होता है लोन वुल्फ अटैक : लोन वुल्फ (Lone Wolf) शब्द का उपयोग आतंकवाद के संदर्भ में किया जाता है। इसका हिंदी में शाब्दिक अर्थ होता है 'अकेला भेड़िया'। 'लोन वुल्फ' उस हमलावर या आतंकवादी को कहते हैं जो बिना किसी संगठन के सीधे सहयोग या निर्देश के अकेले ही हमले को अंजाम देता है। यह हमला एक अकेला व्यक्ति करता है। वह किसी आतंकी समूह (जैसे ISIS या अलकायदा) का औपचारिक सदस्य या हिस्सा भी नहीं होता है। आमतौर पर वह किसी कट्टरपंथी विचारधारा, धार्मिक उन्माद या राजनीतिक सोच से प्रेरित होता है। वह सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्रोपेगैंडा के माध्यम से ऐसी सोच से प्रभावित होता है।
इस तरह की साजिश में चूंकि कोई बड़ा समूह शामिल नहीं होता है, इसलिए खुफिया एजेंसियों और पुलिस के लिए ऐसे अकेले हमलावर की योजना का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है, जो इसे और खतरनाक बना देता है। हमलावर अक्सर साधारण या रोज़मर्रा के उपकरण का उपयोग करते हैं, जैसे- चाकू, छोटे हथियार, गाड़ी (भीड़ को कुचलने के लिए) या घरेलू बम। इनका मुख्य मकसद अकेले दम पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को नुकसान पहुंचाना और समाज में दहशत फैलाना होता है।
सुरक्षा एजेंसियों के लिए क्यों चुनौतीपूर्ण : सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे मामलों को पता लगाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि हमलावर किसी बड़े आतंकी नेटवर्क का हिस्सा नहीं होता, इसलिए उसकी गतिविधियों की निगरानी या फंडिंग को ट्रैक करना काफी मुश्किल होता है। ये हमले अचानक और बिना किसी पूर्व चेतावनी के होते हैं। दरअसल, लोन वुल्फ एक अकेला कट्टरपंथी व्यक्ति है जो किसी आतंकी संगठन के सीधे सहयोग के बिना, उसकी विचारधारा से प्रेरित होकर हिंसक हमले करता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala