श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 111 आतंकी मारे गए। करीब 20 नागरिक भी मारे गए और 41 सुरक्षाकर्मी भी। राज्य में 26 सालों से फैले आतंकवाद में मरने वाले नागरिकों और सुरक्षाबलों का यह आंकड़ा सबसे कम है। इस पर खुशी मनाई जा सकती है। हालांकि सुरक्षाबल और सुरक्षा एजेंसियां इससे नाखुश हैं, क्योंकि आतंकियों की मौतों के बावजूद आतंकी बनने का आकर्षण अभी भी बरकरार है। यह इसी से स्पष्ट होता है कि इस साल 100 से अधिक युवा आतंकवाद में शामिल हो गए और खतरनाक आतंकी गुट आईएस के साथ कितने जुड़े, इसके प्रति अभी सुरक्षा एजेंसियां अंधेरे में टटोल रही हैं।
राज्य में वर्ष 2015 आतंकियों पर भारी रहा। सीमा व एलओसी पर घुसपैठ कर रहे आतंकियों पर सटीक प्रहारों से देश के दुश्मनों को उनके अंजाम तक पहुंचाया गया, वहीं बेहतर सुरक्षा ग्रिड की बदौलत सुरक्षाबलों व नागरिकों की मौतों में भी कमी आई। इस दौरान इस्लामिक स्टेट के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सुरक्षा ग्रिड को और पुख्ता किया गया।
राज्य में आतंकवाद की पकड़ कमजोर होने के चलते सेना व सीमा सुरक्षा बल ने अपनी शक्ति घुसपैठ कर रहे आतंकियों पर केंद्रित की जिसकी बदौलत सिर्फ एलओसी पर ही घुसपैठ की 92 कोशिशों को नाकाम बनाया गया।
जमात-उद-दावा के हाफिज सईद ने घुसपैठ करवाने के लिए खुद लांचिंग पैडों पर डेरा डाला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। चालू वर्ष में सेना व सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए 111 आतंकियों में सेना के काफिले पर 2013 में हमला करने वाला लश्कर कमांडर अबू कासिम भी शामिल था।
इस साल अब तक आतंकी घटनाओं में मारे गए 171 लोगों में से 111 आतंकी, 41 सुरक्षाबल व 20 नागरिक शामिल थे। पिछले वर्ष मारे गए 193 लोगों में 110 आतंकी, 51 सुरक्षाकर्मी व 32 नागरिक शामिल थे। कुल मिलाकर सुरक्षाबलों व लोगों की मौतें कम हुईं और आतंकवाद को आघात लगा।
आतंकियों के मंसूबे नाकाम बनाने के लिए कड़ी सुरक्षा की बदौलत इस वर्ष राज्य में 40 आईईडी तलाश कर विस्फोट करने की साजिशें नाकाम हुईं, वहीं 350 हथियार भी बरामद हुए।
दावा यही है कि आतंकवाद में कमी के चलते अलगाववादियों व सीमापार बैठे उनके आकाओं के हौसले परास्त होने लगे हैं। पाकिस्तान ने साल के दूसरे पखवाड़े में आतंकियों की घुसपैठ करवाने की पूरी कोशिश की और सेना व सुरक्षाबलों ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए अधिकतर आतंकियों को मार गिराया।
पूरे साल में मारे गए 111 आतंकियों में से अंतिम 6 महीनों में 72 मारे गए, वहीं अंदर घुसने में कामयाब रहे 37 आतंकियों में से नावेद सहित 2 आतंकियों को जिंदा पकड़ बड़ी उपलब्धि हासिल की गई।
सेना की उत्तरी कमान के पीआरओ डिफेंस कर्नल एसडी गोस्वामी ने बताया कि वर्ष 2013 में एलओसी पर घुसपैठ के 264 मामले 2014 में कम होकर 221 हो गए। 30 सितंबर तक एलओसी पर 92 कोशिशें हुईं। इस दौरान 37 आतंकियों को मारकर बड़ी कामयाबी हासिल की गई।
पर इन कामयाबियों के लेखे-जोखे के बावजूद सुरक्षाधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। ये लकीरें आतंकी बनने का आकर्षण यथावत बरकरार रहने के कारण हैं। यही नहीं, अब तो कश्मीरी युवा दुर्दांत आतंकी गुट आईएसआईएस की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं, जो सबसे अधिक परेशानी का कारण इसलिए भी है, क्योंकि आईएस के हत्या और आतंक फैलाने के तौर-तरीकों से सारी दुनिया दहल रही है।