मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Terrible crisis looming large due to waste on the marine system
Written By
Last Updated : गुरुवार, 4 अगस्त 2022 (16:03 IST)

समुद्री-तंत्र पर कचरे की वजह से मंडरा रहा भयावह संकट

Coastal Cleanliness
नई दिल्ली, लगभग सवा दो लाख जीव-प्रजातियों को अपने में समेटे विशाल सागर-महासागर पृथ्वी के तीन चौथाई भाग की पारिस्थितिकी को संभालते हैं। शेष एक चौथाई जमीन पर विचरण करने वाले तमाम प्रजातियों को भी प्रत्येक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।

वातावरण से हमें जितनी ऑक्सीजन की जरूरत होती है, उसका आधा हिस्सा महासागरों से ही प्राप्त होता है। हालांकि, हम जब भी ऑक्सीजन के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में सबसे पहले पेड़-पौधे और जंगल ही आते हैं। यह बात समुद्र के महत्व को लेकर हमारी अनभिज्ञता का प्रमाण है।

दुनिया की आधी आबादी, लगभग तीन अरब लोग सीधे तौर पर समुद्र पर निर्भर हैं। मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाईऑक्साइड का 25 प्रतिशत हिस्सा सागर ही सोखते हैं। निरंतर बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं के कारण आज महासागरों पर कार्बन डाईऑक्साइड को ज्यादा से ज्यादा सोखने का दबाव बढ़ता जा रहा है। सागर जितना अधिक कार्बन डाईऑक्साइड सोखता है, उतना ही अधिक अम्लीय होता जाता है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र का इको-सिस्टम प्रभावित होता है, और अंततः यह पूरे पर्यावरण को ही प्रभावित करने लगता है।

सामान्य तौर पर ऐसा कोई भी पदार्थ, जो प्राकृतिक संतुलन में दोष को उत्पन्न करता है; प्रदूषण का कारण होता है। बढ़ते प्रदूषण का एक प्रमुख कारक है- बड़ी मात्रा में पैदा होने वाला खतरनाक शहरी कचरा। यूं तो किसी भी छोटे-बड़े शहर में इसकी भयावहता को सीधे तौर पर देखा जा सकता हैl परंतु इस कचरे के असर को हमारे पारिस्थितिकी पर देखने का सबसे बेहतर और व्यापक बैरोमीटर सागर और तटीय क्षेत्र हैं।

समुद्र से हजारों किलोमीटर दूर एक छोटे से नाले का खतरनाक कचरा सहायक नदी से मुख्य नदी में, और मुख्य नदी से बहता हुआ सागर में मिल जाता है। फिर एक सागर से दूसरे सागर होता हुआ सब तरफ पसर जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुल समुद्री कचरे का 90 प्रतिशत नदियों से बहकर समुद्र में पहुंचता है। इसके अलावा, समुद्री तटों पर प्रतिदिन बड़ी मात्रा में पैदा होने वाला कचरा भी अंततः समुद्र में पहुंचता है। चूंकि समुद्र हर बहते जलीय स्रोत का अंतिम पड़ाव है, इसीलिए मानव जनित कचरे से सबसे अधिक प्रभावित सागर ही हैं।

वैसे तो समुद्र को लोहा, सीसा, सिंथेटिक फाइबर या कपड़ा सहित हर तरह का कचरा प्रदूषित करता है। परंतु, सैकड़ों साल तक विघटित न होने वाला प्लास्टिक इनमें सबसे तेज गति से दूरदराज तक फैल जाने वाला खतरनाक कचरा है है। “वर्ल्ड इकेनॉमी फोरम” के अनुसार, आठ लाख टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष कचरे के रूप में समुद्र में प्रवाहित हो रहा है। वर्तमान में, सागर तट पर इतना प्लास्टिक है कि दुनियाभर के सागर तट पर हर एक फुट जगह में पांच प्लास्टिक बैग बिछाए जा सकते हैं।

एक बार प्रयोग किया जाने वाला (सिंगल यूज़) प्लास्टिक आज समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। यह सिगरेट के फिल्टर, फूड रैपर, बोतल, प्लास्टिक बैग, स्ट्रॉ आदि के रूप में हर कहीं मौजूद है। जमीन, हवा और समुद्र में भी। सालों तक विघटित नहीं होने और बाद में माइक्रो-प्लास्टिक के रूप में टूटने के कारण यह पर्यावरण के लिए एक बड़ी और कठिन चुनौती है। आमतौर पर महानगर में रहने वाला व्यक्ति अपने शहर के किनारे कचरे का पहाड़ देख कर आश्चर्य करते हैं। पर, ऐसे कचरे के ढेर सागर में भी हैं।

प्लास्टिक-जन्य कचरे का एक प्रमुख स्रोत तटों पर पर्यटन भी है। भारत की 7500 किलोमीटर की तटरेखा पर्यटन से उपजे प्रदूषण से प्रभावित है। गोवा भारत का एक ऐसा तटीय क्षेत्र है, जिसके द्वारा पर्यटन और अन्य दूसरे कारण से होने वाले समुद्री प्रदूषण की निगरानी की जाती है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता और और विस्तृत तटों के लिए मशहूर गोवा, अरब सागर के किनारे बसा भारत का एक छोटा राज्य है। घूमने और छुट्टी बिताने के लिहाज से गोवा, विश्व के सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक है। आर्थिक सामाजिक दृष्टि से पर्यटन गतिविधि इस क्षेत्र के लिए जितनी अनुकूल है, पर्यावरण प्रदूषण की दृष्टि से उतनी ही नुकसानदेह भी।

देश और दुनिया के हर कोने से आने वाले सैलानी गोवा के 104 किलोमीटर लम्बे समुद्री तट पर छुट्टियां बिताते हैं। इसके समुद्री तट हजारों होटलों, रिसोर्ट्स, स्पा आदि से भरे पड़े हैं। पर्यटकों के लिए सुख-सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ यह सब भारी मात्रा में प्लास्टिक और अन्य कचरा भी उत्पादित करते हैं। गोवा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, गोवा में हर दिन 527 टन कचरा पैदा होता है। जिसमें से ज्यादातर समुद्री कचरे के रूप में तटों पर मौजूद होता है। इनमें एक बार उपयोग (सिंगल यूज) होने वाला प्लास्टिक, जिसमें खाद्य पदार्थों के पैकेट, पानी की बोतलें आदि प्रमुख कचरे के रूप में होते हैं। इसका निपटारा आमतौर पर स्थानीय स्तर पर ही कर दिया जाता है। हालांकि, बड़ी मात्रा में कचरा, जो विभिन्न कारणों से तटों पर रह जाता है, समुद्री पर्यावास से मिलकर पूरे पारिस्थितिकी को प्रभावित करता है।

यह प्रभाव इतना है कि संस्थाओं द्वारा समुद्री प्रदूषण को मापने के लिये गोवा को राष्ट्रीय योजना में शामिल किया गया है। तटों की सफाई के लिये गोवा का बजट 2014 में जहां दो करोड़ हुआ करता था। वर्तमान में, यह बजट लगभग 15 करोड़ है। इसके बावजूद गोवा तट उच्च स्तर पर प्रदूषित है। कई शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रदूषण अब हमारे फ़ूड चैन में प्रवेश कर रहा है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ‘सी फूड उत्पादक’  देश है। साल 2019 में अकेले गोवा के समुद्री तटों से कुल 125.6 हजार टन मछलियों को हार्वेस्ट किया गया।

केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीआरएफआरआई) के 2017 में किए गए अध्ययन में पाया गया है कि देश के 254 तटों में से गोवा के तट सबसे अधिक प्रदूषित हैं। जिन चीजों से गोवा के तट सबसे अधिक प्रदूषित हैं, वह पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल की गई सीसे की बोतल, मछुआरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले नायलॉन के जाल आदि हैं। समुद्री-तंत्र पर ऐसे कचरे से मंडरा रहे संकट के प्रति व्यापक जन-जागृति की आवश्यकता है।

‘स्वच्छ सागर- सुरक्षित सागर’ भारत सरकार का स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत देश की तटीय रेखा को जन-भागीदारी से स्वच्छ बनाने का अभियान है। इस अभियान के बारे में जागरूकता प्रसार, और 17 सितंबर 2022 को ‘अंतरराष्ट्रीय तटीय स्वच्छता दिवस’ के दिन भारत की तटीय रेखा के 75 स्थानों पर आयोजित समुद्र तट की सफाई गतिविधि से स्वैच्छिक रूप से जुड़ने के लिए आम लोगों के लिए एक मोबाइल ऐप "इको मित्रम्" भी लॉन्च किया गया हैl (इंडिया साइंस वायर)
ये भी पढ़ें
Nude पेंटिंग पश्चिम में पाठ्यक्रम का हिस्सा है, इससे बढ़ती है Anatomy की समझ