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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021 (10:10 IST)

टारगेट किलिंग: कश्मीर घाटी में हिंसा के कारणों की सबसे बड़ी पड़ताल

टारगेट किलिंग: कश्मीर घाटी में हिंसा के कारणों की सबसे बड़ी पड़ताल - Target Killing: Big Investigation into the Causes of Violence in the Kashmir Valley
अनुच्छेद 370 हटने को दो साल बाद एक बार फिर कश्मीर के हालात बिगड़ने लगे है। हालात को संभालने के लिए जम्मू से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर तेज हो गया है। कश्मीर घाटी में पिछले 16 दिनों में 11 लोगों की हत्या कर दी गई है। आतंकियों के निशाने पर एक बार फिर गैर-कश्मीरी है। इसके साथ सिख और हिंदू समुदाय के लोगों को टारगेट किया जा रहा है।

रविवार को कुलगाम में आतंकियों ने दो प्रवासी मजदूरों को अपना निशाना बनाया है। आतंकियों ने घर में घुसकर बिहार के दो प्रवासी मजदूरों की हत्या कर दी है। वहीं इससे पहले श्रीनगर के ईदगाह इलाके में बिहार के एक हॉकर को गोली मार दी। वहीं एक अन्य घटना में पुलवामा में आतंकियों ने उत्तर प्रदेश के रहने वाले सगीर अहमद नाम के शख्स को गोली मार दी।

इसके पहले सात अक्टूबर को श्रीनगर में आतंकियों ने स्कूल के अंदर घुसकर प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की हत्या कर दी थी। वहीं श्रीनगर में मशहूर दवा दुकान के मालिक माखन लाल बिंद्रू की भी सरेआम गोली मारकर ह्त्या कर दी गई थी।
2 अक्टूबर से अब तक कश्मीर में 11 आम निर्दोष नागरिकों की हत्या हो चुकी है। अल्पसंख्यकों के साथ-साथ आतंकियों के निशाने पर ऐसे प्रवासी लोग है जो वहां रोजी रोटी की तलाश में गए थे। हिंसा की ताजा वारदातों के बाद कश्मीर घाटी से प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरु हो चुका है। बड़ी संख्या में प्रवासी मजूदर अपने घरों की ओर जाने के लिए रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों पर पहुंच रहे है। वहीं घाटी में कई इलाकों में इटरनेट सेवा बंद करने के साथ सुरक्षा बल बड़े पैमाने पर चैंकिंग अभियान चला रहे है।

कश्मीर घाटी में सिख समुदाय के संगठन आल पार्टी कोआर्डिनेशन कमेटी (एपीएससीसी) के चैयरमैन जगमोहन सिंह रैना ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पूरे मामले को सीधे तौर पर राजनीति से जोड़ते है। वह कहते हैं आज कश्मीर एक पॉलिटिक्ल प्लेग्राउंड बन गया है जहां पर कई प्लेयर है।

पाकिस्तान,चाइना के साथ-साथ हमारी एजेसियां भी आकर खेलती है। किसी को भी पंजाब में वोट बैंक की जरुरत है वह कश्मीर का सहारा लेता है, यूपी में इलेक्शन आने वाले तो कश्मीर एक गन पाउडर की तरफ उपयोग हो रहा है। कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है वह पॉलिटिक्स का एक पार्ट है। 

वह कहते हैं कि धारा 370 हटने के बाद देखने में आ रहा है कि स्थिति में कोई सुधार होने के जगह स्थिति बिगड़ती जा रही है। कश्मीर के हालात बहुत चिंताजनक होते जा रहे है। कश्मीर घाटी में जिस तरह बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों को निशाना बनाया जा रहा है वह यह बता रहा है कि केंद और राज्य सरकार कश्मीर में शांति बनाए रखने में सफल नहीं हो पा रही है।
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में घाटी में सिखों के सबसे बड़े संगठन के अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना आगे कहते हैं कि कश्मीर के लोग शांति पंसद है और वह किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करते है। कश्मीर में कभी ऐसी फीलिंग नहीं आई कि यहां कोई बाहरी है। आज भी गुलमर्ग,पहलगाम टूरिस्टों से भरे पड़े है। कश्मीर का आदमी किसी भी कम्युनिटी के खिलाफ नहीं है। हर साल अमरनाथ यात्रा में लाखों लोग आते है और कश्मीर के लोग उनका वेलकम करते है।

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के नेता संजय टिकू कहते हैं कि जून के महीने से ही ऐसा लगता था कि कुछ होने वाला है और इसको लेकर सरकार सहित सभी एजेंसियों को भी पता था कि कुछ हो रहा है लेकिन इसको रोका नहीं जा सका। वह कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद यहां के लोगों में खासा रोष है।
 
जम्मू कश्मीर पैंथर पार्टी के अध्यक्ष भीम सिंह
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि आज जो कि जम्मू-कश्मीर में रहा है उसके लिए सीधे पर केंद्र सरकार जिम्मेदार है। जम्मू-कश्मीर को स्टेट का दर्जा खत्म करने को इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि सरकार के फैसलों से केवल कश्मीर घाटी नहीं जम्मू में भी डिवाइडेशन बढ़ रहा है।   

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ हुसैन ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि घाटी में जिस तरह से अल्पसंख्यकों विशेषकर सिखों के बाद अब प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है उसको लेकर सब कोई हैरत में है। इस वर्ष अब तक करीब 30 सिविलियन को मारा जा चुका है जिसमें 21 स्थानीय मुस्लिम है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मजदूर सगीर अहमद को भी निशाना बनाया गया। वहीं माइनॉरिटी कमेटी से आने वाले हिंदू और सिख भी शामिल है। वहीं अब अन्य राज्यों से काम करने आने वाले लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
 

वह आगे कहते हैं कि यह सब कौन कर रहा हैं और क्यों हो रहा है इसका कोई भी अंदाजा नहीं लगा पा रहा है। हिंसा की वारदातों को कौन कर रहा है, क्यों कर रहा है, कहां से आ रहा है किसी को कुछ भी नहीं पाता। केवल अटकलें लगाई जा रही है। 
 
स्थानीय पुलिस जो इन घटनाओं के पीछे चरमपंथियों को जिम्मेदार बता रही है वह भी कुछ साफ नहीं बता पा रही है। वहीं घाटी में पुलिस के बयानों को लेकर एक अफवाह का माहौल है जैसे रविवार को आईजी की तरफ से एडवाइजरी वायरल हो गई  कि बाहर के राज्यों से जो लोग है उनको पुलिस थानों और सेना के कैंपों में रखा जाए और जब सभी मीडिया में यह जोर शोर से चल गई उसके एक घंटे बाद उसका खंडन भी आ गया है। तो ऐसे में सवाल उठ रहा है कि किस पर भरोसा किया जाए।

आज कश्मीर की जनता चाहती है कि उनके जो पॉलिटिकिल कर्सन, इकोनॉमी कर्सन, आईडेंटी ज्यादा महत्वपूर्ण है। 370 हटने को यहां के लोग अपनी आइडेंटी पर सीधा हमला और इसे विश्वासघात मानते है।कश्मीर के आम लोग यह सोचते है कि उनकी पहचान उनसे छीन ली गई है। 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर के हिंदू बाहुल्य रीजन में जो स्वागत किया गया था वह लोग अब नाखुश है और पिछले दिनों यहां बंद बुलाया गया। जमीन और नौकरी को लेकर लोगों में रोष है। 
 
वहीं कश्मीर की आम जनता में यह डर और भय है कि आने वाले दिनों में हालात कितने खराब होंगे। कि आगे क्या होने जा रहा है। कश्मीर में इन हालातों का राजनीतिक दल फायदा भी उठाने की कोशिश करेंगे लेकिन इससे सीधे तौर पर कश्मीर की आम जनता प्रभावित होगी।