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Last Updated : मंगलवार, 20 मार्च 2018 (14:49 IST)

वोक्कालिगा-लिंगायत समुदायों के समीकरण को साधने पहुंचे राहुल

वोक्कालिगा-लिंगायत समुदायों के समीकरण को साधने पहुंचे राहुल - Rahul Gandhi on Southern Karnataka Two Days Visit For Assembly   Election 2018
बेंगलुरु। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आज से दो दिन के कर्नाटक दौरे पर रहेंगे। राहुल दक्षिणी कर्नाटक और मलनाड के वोक्कालिगा समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों में जाएंगे। यह समुदाय कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत जैसा ही दबदबा रखती है। कर्नाटक के 224 में से 25% विधायक इसी कम्युनिटी से हैं।
 
विदित हो कि कर्नाटक में दो प्रमुख समुदाय लिंगायत और वोक्कालिगा हैं जिनका राज्य की राजनीति पर खासा असर है।
 
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को विधानसभा चुनावों से पहले खुश करने की कोशिश के तहत समुदाय को एक अलग धर्म ही माने जाने की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के बाद राज्य के दूसरे प्रमुख समुदाय वोक्किालिगा में नाराजगी होना स्वाभाविक है।  
 
इसलिए 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नए नवेले अध्यक्ष को दोनों समुदायों को साधने की कवायद करनी होगी। जाहिर है कि कर्नाटक में राहुल अब वोक्कालिगा समुदाय को साधने की कोशिश करेंगे क्योंकि इसके बिना कोई भी पार्टी राज्य में सरकार बनाने लायक विधायक नहीं जुटा सकती है। विदित हो कि वर्तमान विधानसभा में 25 फीसदी मौजूदा विधायक इसी समुदाय से आते हैं। 
 
अपनी सरकार की सत्ता को बचाने के लिए राहुल कर्नाटक में उडुप्पी, दक्षिण कन्नड़, चिक्कमंगलुर और हासन जिलों का दौरा करेंगे जहां वोक्कालिगा समुदाय का प्रभाव है। राज्य की आबादी में इस समुदाय की 11% हिस्सेदारी है और विधानसभा में इसके 25% यानी 55 विधायक हैं। सहज स्वाभाविक बात है कि कोई दल इस समुदाय की उपेक्षा करने का जोखिम नहीं ले सकता है। 
 
इसी क्षेत्र में हासन जिला भी है जोकि जनता दल सेक्युलर (जेडी-एस) के चीफ और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा का गृह जिला भी है। कर्नाटक में जेडी-एस एक ऐसा राजनीतिक दल है जोकि कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही समीकरण बिगाड़ने की क्षमता रखता है। देवेगौड़ा के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी का भी अपना प्रभाव क्षेत्र है और उनके पर्याप्त समर्थक भी हैं।  
 
कर्नाटक के ये चुनाव जहां कांग्रेस पार्टी और इसकी सरकार के लिए जीवन-मरण का प्रश्न होंगे वहीं पर राहुल को गुजरात की तरह से अपने सॉफ्ट हिंदुत्व को भी बनाए रखना होगा और इस दौरे में उनका राहुल धार्मिक स्थलों का दौरा जारी रहेगा। जैसाकि वे दिल्ली में अपने भाषण में कह चुके हैं, इसी तरह से वे राज्य के गोरखनाथेश्वर मंदिर, रोसारियो चर्च, उल्लाल दरगाह, श्रृंगेरी के शरदंबा मंदिर और श्रृंगेरी मठ भी जाएंगे। 
 
मठ नें उनकी जगदगुरु शंकराचार्य और श्रृंगेरी मठ के भारती तीर्थ स्वामीजी से मुलाकात होना कोई नई बात नहीं होगी।
 
राज्य में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राहुल, दोनों के करीबी और सहयोगी भी हैं लेकिन संगठन में कार्यकर्ताओं को महत्व कम ही दिया जाता है। इसके चलते स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में इसे लेकर असंतोष हो सकता है। इन बातों को देखते हुए राहुल दिल्ली में कही अपनी बातों के अनुरूप स्थानीय नेताओं, कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने की कोशिश करेंगे कि उनका महत्व कम नहीं आंका जाएगा।  
 
इन्ही कारणों से राहुल ने इस चुनाव की कमान खुद संभालने का फैसला किया है ताकि स्थानीय कार्यकर्ताओं, नेताओं का असंतोष कम किया जा सके। भाजपा की स्थानीय इकाई भी लिंगायत समुदाय को एक अलग धर्म का दर्जा दिए जाने का विरोध नहीं कर सकती है लेकिन उसे अन्य तरीकों से सिद्धारमैया सरकार को जन विरोधी, हिंदू विरोधी साबित करने की कोशिश करनी होगी।
 
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री दलित हैं लेकिन लिंगायतों को अगड़ी और सम्पन्न जातियों में गिना जाता है। दरअसल लिंगायतों को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है और राज्य के 18 फीसदी लोग लिंगायत समाज से आते हैं। 
 
इसलिए यह समुदाय कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए खास है। भाजपा के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बी‍. एस. येदियुरप्पा का लिंगायत समुदाय में अच्छा प्रभाव है और इसके चलते भाजपा ने येदियुरप्पा को एक बार फिर नेता बनाया है क्योंकि उनका लिंगायत समुदाय में जनाधार बहुत मजबूत है। 
 
लेकिन लिंगायत को एक अलग धर्म का दर्जा देने का वे भी विरोध नहीं कर सके हैं। आगामी चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को कितना फायदा होगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि कौन सा दल दोनों समुदायों के अधिकाधिक मतों को बटोरने में सफल होगा। 
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