भोपाल। देश की 134 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस में लोकसभा चुनाव के बाद इस वक्त जो नेतृत्व को लेकर संकट दिख रहा है, उससे अब देश की सबसे पुरानी पार्टी पर सवाल उठने लगे हैं।
23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद इस्तीफे की पेशकश करने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के मान-मनौव्वल का सिलसिला जारी है लेकिन अब तक पार्टी के सभी बड़े नेताओं की हर कोशिश नाकाम दिखाई दे रही है।
सोमवार को कांग्रेस शासित राज्यों के 5 मुख्यमंत्रियों ने एक साथ राहुल से मुलाकात कर उनको मानने की कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिश भी रंग नहीं ला पाई। मुलाकात कर बाहर निकले पार्टी के इन 5 बड़े नेताओं के हावभाव देखकर साफ लग रहा था कि राहुल के साथ 2 घंटे से अधिक की मुलाकात बेनतीजा रही।
कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को करीबी से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि अब लगभग साफ हो चुका है कि राहुल अब अपने इस्तीफे के निर्णय को नहीं बदलेंगे और अगर अब राहुल पीछे हटते हैं तो इससे उनकी ब्रांड इमेज को धक्का लगेगा।
मौजूदा परिदृश्य को देखकर ऐसा लग रहा है कि राहुल अपना इस्तीफा मंजूर कराकर अपना सियासी कद और बढ़ाना चाह रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राहुल के इस्तीफे की हठ और उसका पार्टी क्या असर पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करने वाले कांग्रेस को जब एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत थी कि वह पार्टी के संगठन को नए सिरे से खड़ा करने के लिए आगे आए और हार से निराश कार्यकर्ता में जोश भरे उस वक्त इसके ठीक उलट कांग्रेस में अध्यक्ष कौन होगा, इसको लेकर एक महीने से अधिक समय से सस्पेंस बना हुआ है।
एक ओर राहुल अपने इस्तीफे की हठ से पीछे हटने को तैयार नहीं है तो दूसरी अब पार्टी का खैवनहार कौन होगा, इसको लेकर असमंजस दिखाई दे रहा है और इसका सीधा खमियाजा पार्टी को उठाना पड़ रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि किसी भी पार्टी में संगठन को लेकर जो अनिश्चितता होती है वह ठीक नहीं होती है और कांग्रेस में इस वक्त लंबे समय से एक अनिर्णय की स्थिति है जिसको ठीक नहीं कहा जा सकता है। वहीं राहुल गांधी के इस्तीफे की हठ पर कायम रहने पर रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहते हुए उनकी जिस तरह इमेज बिगाड़ी गई, उसके बाद राहुल शायद यह सोच रहे होंगे कि अब संगठन का काम कोई और देखे और यह उनका खुद का निर्णय है।
कांग्रेस की इस वक्त की चुनौतियों पर वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र को बहाल करना इस वक्त सबसे जरूरी है, क्योंकि मनोयन संस्कृति से पार्टी को सबसे ज्यादा खामियाजा भगुतना पड़ा है।
दो खेमों में बंटी कांग्रेस : नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस इस वक्त दो खेमों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। एक खेमा पार्टी के ऐसे बुजुर्ग नेताओं का है जो लंबे समय से पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और गांधी परिवार के काफी करीबी रहे है तो दूसरी तरह पार्टी के युवा नेता जो राहुल की टीम का हिस्सा माने जाते हैं।
पिछले दिनों इन्हीं युवा नेताओं के साथ बातचीत में राहुल ने एक तरह से बुजुर्ग नेताओं पर तंज कसते हुए कहा था कि उनको मलाल है कि उनके इस्तीफे के बाद भी पार्टी के किसी बड़े नेता ने इस्तीफा नहीं दिया।
राहुल की इस नाराजगी के बाद भी अब उन वरिष्ठ नेताओं का इस्तीफा नहीं आया है जिनसे राहुल नाराज बताए जा रहे हैं। ऐसे में पार्टी में खड़ी इस दीवार का खमियाजा पार्टी का कितना उठाना पड़ेगा यह तो वक्त ही बताएगा।
विधानसभा चुनाव की तैयारी में पिछड़ी कांग्रेस : राहुल की हठ का खामियाजा कांग्रेस को साल के अंत में होने वालेतीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां भाजपा ताबड़तोड़ बैठक कर अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दे रही है तो कांग्रेस में अभी कोई सुगबुगाहट ही नहीं है। लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भाजपा नए सिरे से पार्टी संगठन को और मजबूत करने के लिए सदस्यता अभियान शुरू कर दिया।
पार्टी उन राज्यों में खासा फोकस कर रही है, जहां आने वाले समय में विधानसभा चुनाव है और जिन राज्यों में पार्टी अब तक अपनी सरकार नहीं बना पाई है। दूसरी तरफ कांग्रेस को उन राज्यों में ही संघर्ष करते हुए देखा जा रहा है जहां वह सत्ता में काबिज है।
मध्यप्रदेश में नए अध्यक्ष की घोषणा का इंतजार : मध्यप्रदेश जैसे राज्य जहां पार्टी को लंबे समय से अपने नए अध्यक्ष के नाम का इंतजार कर ही है वह भी दिल्ली की आस में बढ़ता जा रहा है।
सियासत के जानकार कहते हैं कि जब तक दिल्ली में स्थिति साफ नहीं होगी तब तक मध्यप्रदेश में शायद पार्टी को कोई नया अध्यक्ष नहीं मिले। इस बीच छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा होने के साथ कुछ उम्मीदें बढ़ी है। ऐसे में जब 6 महीने के अंदर सूबे स्थानीय में निकाय चुनाव होने वाले हैं, तब नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियां कम नहीं होंगी। लोकसभा चुनाव में हार के बाद अब पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की जरूरत है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि निश्चित तौर पर राहुल की हठ का खमियाजा मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है, जहां वर्तमान अध्यक्ष कमलनाथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से पहले ही इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन अब तक पार्टी को नया अध्यक्ष नहीं मिला है।
राज्यों में बिखर रही है कांग्रेस : कांग्रेस में जारी ‘हाईकमान’ संकट से पार्टी को राज्यों में खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। कर्नाटक, जहां कांग्रेस में सत्ता में भागीदार है उसके दो विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है जिससे जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार पर संकट मंडराने लगा है। इससे पहले तेलंगाना में तो पार्टी के 18 विधायकों में 12 ने पार्टी को ही अलविदा कह दिया। इसके साथ ही मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि राहुल की हठ का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को निश्चित तौर पर भुगतना पड़ रहा है, लेकिन इसको इस तौर पर देखा जाना चाहिए कि जैसे एक गंभीर बीमार मरीज की सर्जरी से पहले डॉक्टर सभी चीजों को परीक्षण कर लेना चाहता है वैसा ही राहुल इन दिनों कांग्रेस में कर रहे हैं।
राहुल की मंशा एक नई कांग्रेस को बनाने की लग रही है इसलिए वे पर्याप्त वक्त ले रहे हैं। डॉक्टर राकेश पाठक साफ कहते हैं कि राहुल भले ही कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहे लेकिन पार्टी उनके ही इशारों पर चलेगी। राहुल के इस्तीफे के बाद भले ही नई कांग्रेस जो जन्म लेगी वह गांधी, नेहरू सरनेम विहीन हो लेकिन वह कांग्रेस भी गांधी की छाया में ही होगी। फिलहाल हमें 'ठहरो और देखो' की नीति पर चलना होगा और देखना होगा कि कांग्रेस क्या करवट ले रही है।