Moody's ने भारत की रेटिंग घटाई, कहा- 2020-21 में जीडीपी 4 प्रतिशत घटेगी
नई दिल्ली। रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने सोमवार को भारत की सावरेन (राष्ट्रीय) क्रेडिट रेटिंग को पिछले 2 दशक से भी अधिक समय में पहली बार 'बीएए2' से घटाकर 'बीएए3' कर दिया। एजेंसी ने कहा है कि नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाले समय में निम्न आर्थिक वृद्धि, बिगड़ती वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र के दबाव जोखिम को कम करने की चुनौतियां खड़ी होंगी।
मूडीज का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। भारत के मामले में पिछले 4 दशक से अधिक समय में यह पहला मौका होगा, जब पूरे साल के आंकड़ों में जीडीपी में गिरावट आएगी।
इसी अनुमान के चलते मूडीज ने भारत की सरकारी साख रेटिंग को 'बीएए2' से एक पायदान नीचे कर 'बीएए3' कर दिया। इसके मुताबिक भारत के विदेशी मुद्रा और स्थानीय मुद्रा की दीर्घकालिक इश्युअर रेटिंग को बीएए2 से घटाकर बीएए3 पर ला दिया गया है। 'बीएए3' सबसे निचली निवेश ग्रेड वाली रेटिंग है। इसके नीचे कबाड़ वाली रेटिंग ही बचती है।
एजेंसी ने कहा कि मूडीज ने भारत की स्थानीय मुद्रा वरिष्ठ बिना गारंटी वाली रेटिंग को भी बीएए2 से घटाकर बीएए3 कर दिया है। इसके साथ ही अल्पकालिक स्थानीय मुद्रा रेटिंग को भी पी-2 से घटाकर पी-3 पर ला दिया गया है।
मूडीज का मानना है कि आने वाले समय में भारत के नीति-निर्माता संस्थानों के समक्ष नीतियों को बनाने और उनके क्रियान्वयन की चुनौतियां खड़ी होंगी। ऐसी नीतियां जिनके क्रियान्वयन से कमजोर वृद्धि की अवधि, सरकार की सामान्य वित्तीय स्थिति के और बिगड़ने और वित्तीय क्षेत्र में बढ़ते दबाव के जोखिम को कम करने में मदद मिले। मूडीज ने इससे पहले 1998 में भारत की रेटिंग को कम किया था।
मूडीज का कहना है कि सुधारों की धीमी गति और नीतियों की प्रभावशीलता में रुकावट ने भारत की क्षमता के मुकाबले उसकी लंबे समय से चली आ रही धीमी वृद्धि में योगदान किया। यह स्थिति कोविड-19 के आने से पहले ही शुरू हो चुकी थी और यह इस महामारी के बाद भी जारी रहने की संभावना है।
मूडीज ने इससे पहले नवंबर 2017 में 13 साल के अंतराल के बाद भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को 1 पायदान चढ़ाकर बीएए2 किया था। एजेंसी ने कहा कि नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग को 1 पायदान बढ़ाना इस उम्मीद पर अधारित था कि महत्वपूर्ण सुधारों का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाएगा और इससे अर्थव्यवस्था, संस्थानों और वित्तीय मजबूती में लगातार सुधार आएगा। तब से लेकर इन सुधारों का क्रियान्वयन कमजोर रहा और इनसे बड़ा सुधार नहीं दिखाई दिया। इस प्रकार नीतियों का प्रभाव सीमित रहने के संकेत मिलते हैं। (भाषा)