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Last Updated : गुरुवार, 8 अप्रैल 2021 (22:18 IST)

CRPF जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने छोड़ा, 3 अप्रैल को बनाए गए थे बंधक

CRPF जवान राकेश्वर सिंह को नक्सलियों ने छोड़ा, 3 अप्रैल को बनाए गए थे बंधक - maoists free captured crpf jawan rakeshwar singh
नई दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच 3 अप्रैल को हुई मुठभेड़ के बाद अगवा किए गए एक ‘कोबरा’ कमांडो को गुरुवार को नक्सलियों ने मुक्त कर दिया और इस मौके का एक वीडियो भी जारी किया जिसमें सैकड़ों ग्रामीणों की मौजूदगी में सशस्त्र माओवादी कमांडो को मुक्त करते दिख रहे हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
 
बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक संदरराज पी ने कहा कि 210वीं कमांडो बटालियन फॉर रिजॉल्यूट ऐक्शन (कोबरा) के कांस्टेबल राकेश्वर सिंह मन्हास को माओवादियों द्वारा मुक्त कर दिया गया और वे 'उसका पता लगाने गए मध्यस्थों के साथ शाम करीब साढ़े 4 बजे सुरक्षिते तारेम पुलिस थाना पहुंच गए।
 
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने एक बयान में कहा कि जवान का 'स्वास्थ्य ठीक है और मुक्त होने के तत्काल बाद उनका अनिवार्य विस्तृत स्वास्थ्य परीक्षण किया गया।'
 
बल के छत्तीसगढ़ सेक्टर ने एक बयान में कहा कि उसके परिजनों को इस बारे में सूचित कर दिया गया है। कांस्टेबल ने फोन से (जम्मू में स्थित) अपने परिवार के लोगों से बातचीत की।
 
प्रदेश सरकार के एक बयान में कहा गया कि मन्हास को सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री धर्मपाल सैनी, माता रुक्मणी आश्रम जगदलपुर, एक अन्य व्यक्ति तेलम बोरैय्या और आदिवासी समाज, बीजापुर के वरिष्ठ अधिकारियों के प्रयासों से मुक्त कराया जा सका। बयान में कहा गया कि कमांडो को मुक्त कराने में गणेश मिश्रा और मुकेश चंद्राकर जैसे स्थानीय पत्रकारों ने भी अहम भूमिका निभाई।
 
प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जवान के मुक्त होने पर प्रसन्नता व्यक्त की और इसे संभव बनाने वालों को धन्यवाद दिया।
 
जवान को मुक्त किए जाने के वीडियो में चेहरा ढंके कम से कम दो सशस्त्र माओवादी पीले रंग की रस्सी से बंधे मन्हास की हाथ खोलते नजर आ रहे हैं वहीं सैकड़ों ग्रामीणों को भी आस-पास बैठे देखा जा सकता है। मौके पर मध्यस्थ और पत्रकार भी मौजूद थे।
 
सुरक्षा अधिकारियों द्वारा साझा एक अप्रमाणित तस्वीर में मन्हास जंगल में युद्ध के दौरान पहनी जाने वाली वर्दी में कम से कम चार 'मध्यस्थों' के साथ खड़े नजर आ रहे हैं और जंगल की पृष्ठभूमि में कुछ स्थानीय लोग भी बैठे दिख रहे हैं।
 
एक अन्य तस्वीर में कमांडो एक स्थानीय पत्रकार के साथ मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे दिख रहे हैं जबकि एक अन्य तस्वीर में एक पत्रकार कमांडो के साथ सेल्फी खींचता दिख रहा है। अधिकारियों ने बताया कि मन्हास को बाद में बासगुड़ा शिविर में सीआरपीएफ के उप-महानिरीक्षक (बीजापुर) कोमल सिंह को सौंप दिया गया।
 
उन्होंने कहा कि जवान को शिविर में रखा जाएगा और जल्द ही उसे ‘डीब्रीफिंग’ के दौर से गुजारा जाएगा जिससे यह समझा जा सके कि किन परिस्थितियों में वह माओवादियों के हाथ आ गया और माओवादियों के कब्जे में रहने के दौरान उसके साथ क्या हुआ?
 
अधिकारियों ने कहा कि मन्हास के ‘बडी’ (साथी) ने अधिकारियों को बताया था कि घटना वाले दिन शिविर की तरफ लौटने के दौरान जवान निढाल होकर बैठ गया था। इस दौरान भारी गोलीबारी को कमांडो के अपनी इकाई और बडी से अलग होने का संभावित कारण बताया जा रहा है।
 
कोबरा सीआरपीएफ की विशेष इकाई है जिसका गठन 2009 में माओवादियों और पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के खिलाफ खुफिया जानकारी आधारित अभियानों के लिये किया गया था। बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर तेकलगुडम गांव में तीन अप्रैल को नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले के बाद हुई मुठभेड़ में 22 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई थी जबकि 31 अन्य घायल हो गए थे।