• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. राष्ट्रीय
  4. Jammu Kashmir journalists
Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 15 जून 2018 (09:08 IST)

आतंकियों ने की पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या, दोधारी तलवार पर हैं जम्मू कश्मीर के पत्रकार

आतंकियों ने की पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या, दोधारी तलवार पर हैं जम्मू कश्मीर के पत्रकार - Jammu Kashmir journalists
जम्मू कश्मीर पिछले 30 सालों से आतंकवाद की चपेट में है। इस दौरान यहां समाज और सरकार की सारी संस्थाएं आतंकवाद की ज्वाला में झुलस कर अपना तेज खो चुकी हैं। मगर प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली प्रेस इस बीहड़ समय में भी न केवल अपना अस्तित्व बचाए हुए है, बल्कि सारे खतरे उठाते हुए अपने दायित्व का भी पूरी तरह से निर्वाह कर रही है।
 
आतंकवादग्रस्त जम्मू कश्मीर में गत 30 सालों से जो कुछ भी हो रहा है,वह देश और दुनिया के सामने अखबारों तथा पत्रिकाओं के माध्यम से ही आ रहा है। यहां तक कि पिछले कई सालों से मानवाधिकार के मुद्दे पर भारत ने पाकिस्तान को जो करारी शिकस्त दी, उसके पीछे भी जम्मू कश्मीर के पत्रकारों के लेखन का बहुत बड़ा हाथ है। हालांकि आतंकवादियों ने इन पत्रकारों की कलम को रोकने की भरपूर कोशिश की थी।
 
कई बार जिनीवा, लंदन और फिर डेनमार्क तथा कांसाब्लांका में भारतीय अधिकारी यहीं के पत्रकारों द्वारा लिखी गई रिपोर्टों को आधार बना कर ही अपना पक्ष मजबूत कर पाए हैं।
 
लेकिन यह भी कड़वी सच्चाई है कि आज कश्मीर प्रेस की स्थिति कुएं और खाई के बीच वाली है और कश्मीर के पत्रकारों के लिए जिन्दगी के मायने हैं दोधारी तलवार पर चलना। कल एक संपादक की गोली मार कर की गई हत्या इसके पुख्ता सबूत हैं।
 
स्थिति यह है कि कश्मीर के पत्रकारों द्वारा अगर किसी संगठन का वक्तव्य प्रकाशित किया जाता है तो दूसरा नाराज हो जाता है और प्रतिबंध का खतरा बना रहता है। अगर किसी भी संगठन का वक्तव्य प्रकाशित नहीं जाता तो भी प्रतिबंध का खतरा बना रहता है। अर्थात जैसा भी करें खतरा हमेशा ही बरकरार रहता है क्योंकि कश्मीर प्रेस आतंकवादियों के बीच फंसी हुई है।
 
वैसे भी कश्मीर में प्रेस पर प्रतिबंध लगाने तथा उसे धमकियां देने की कहानी कोई नई बात नहीं है। यह उतनी ही पुरानी है जितना पुराना कश्मीर में आतंकवाद है। लेकिन समाचारपत्रों तथा पत्रकारों की बेबसी यह है कि वे न इधर जा सकते हैं और न ही उधर क्योंकि उनके सिरों पर सरकारी आतंकवाद की तलवार भी लटकती रहती है। 
ऐसी स्थिति में की जाने वाली रिपोर्टिंग के दौरान अगर किसी पक्ष को अधिक अहमियत मिल जाती है, जैसी शिकायत समाचारपत्रों के सम्पादकों को होती है, तो उसमें संवाददाता का कोई दोष नहीं माना जा सकता बल्कि परिस्थितियां ही उसके लिए दोषी हैं क्योंकि रिपोर्टिंग करने वालों के पास इसके अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता।
 
आतंकवादियों ने प्रेस के विरूद्ध छेड़ी गई अपनी मुहिम के अंतर्गत समाचारपत्रों के कार्यालयों को आग लगाने के अतिरिक्त पत्रकारों का अपहरण करना, उन्हें पीटना तथा धमकियां देने की कायरतापूर्ण हरकतें भी की हैं।
 
कुछ समाचारपत्रों को तो अपना प्रकाशन सदा के लिए स्थगित करने के अतिरिक्त निष्पक्ष रिपोर्टिग करने वालों को घाटी त्यागने के निर्देश भी मिले हैं। लेकिन कुछ पत्रकार जिन पर आरोप लगाया जाता रहा है कि वे शीर्ष आतंकवादियों से अच्छे संबंध रखते हैं उन्हें भी आज अपना कार्य करने में कठिनाई आ रही है क्योंकि गुटीय संघर्ष इतने बढ़ गए हैं कि सब कुछ कठिन होता जा रहा है।
 
वर्ष 1990 कश्मीर घाटी के पत्रकारों के लिए बहुत ही बुरा रहा था जब चार मीडियाकर्मियों की हत्या कर दी गई थी आतंकवादियों द्वारा। आतंकवादियों ने 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर दूरदर्शन केंद्र के निदेशक लस्सा कौल की हत्या करके पत्रकारों पर प्रथम हमले की शुरुआत की थी और फिर इन हमलों का शिकार पीएन हांडू, मोहम्मद शबान वकील, सईद गुलाम नबी और मुहम्मद रंजूर को भी होना पड़ा। याद रखने योग्य तथ्य है कि आतंकवादियों की गोलियों का निशाना बनने वालों में अधिकतर मुस्लिम पत्रकार ही थे जिन्हें ‘जेहाद’ के नाम पर मार डाला गया था। और इन सभी पर आरोप लगाया गया था कि वे उनके ‘संघर्ष’ के विरूद्ध लिख रहे हैं।
 
प्रिंटिंग प्रेसों में बम धमाकों, कार्यालयों में तोड़फोड़ का सिलसिला ऐसा आरंभ हुआ था जो आज भी जारी है। सप्ताह में एक बार अवश्य आज ऐसा होता है जब आतंकवादी किसी न किसी पत्रकार या समाचार पत्र के कार्यालय में घुस कर तोड़फोड़ करते हैं। हालांकि इन तोड़फोड़ करने वालों के बारे में आतंकवादी पहले तो हमेशा कहते आए हैं कि यह सब ‘सरकारी आतंकवादियों’का कार्य है और अब आप ही इनकी जिम्मेदारी कबूल करने लगे हैं। ऐसा भी नहीं है कि पत्रकार या समाचार पत्रों के कार्यालय सिर्फ आतंकवादियों के हमलों के ही शिकार हुए हों बल्कि सुरक्षाबल भी आए दिन इसमें अपना योगदान देते रहे हैं।
 
हमलो की तरह पत्रकारों की गतिविधियों तथा समाचार पत्रों के प्रकाशन और उनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने के मामले इतने हो चुके हैं कि उनकी गिनती कर पाना अब मुश्किल होता जा रहा है। याद रखने योग्य तथ्य यह है कि प्रतिबंधों का सामना करने वालों में जम्मू, नई दिल्ली, चंडीगढ़ तथा देश के अन्य भागों से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र और मैगजीनें भी हैं। इन समाचारपत्रों तथा मैगजीनों पर प्रतिबंध लागू करने का सबसे बड़ा कारण आतंकवादियों की ओर से यह बताया जाता रहा है कि वे ‘संघर्ष’ के विरूद्ध लिख रहे हैं तथा कश्मीर समस्या के हल में बारे में चर्चा कर रहे हैं।
 
प्रत्येक आतंकवादी संगठन आज इच्छा जताता है कि उसका वक्तव्य समाचारपत्र में सुर्खी बने और यह भी गौरतलब है कि बीसियों की तादाद में आने वाले वक्तव्य प्रतिदिन समाचारपत्रों के लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं। यही कारण है कि कश्मीर घाटी से प्रकाशित होने वाले दैनिक कई बार अपने मुख्य पृष्ठों पर बाक्स आइटम प्रकाशित करते हुए अपनी दशा जाहिर कर चुके हैं। इस बाक्स में समाचारपत्रों द्वारा लिखा गया था कि प्रतिदिन उन्हें 50 से 60 वक्तव्य ऐसे आते हैं जिनमें प्रथम पृष्ठ की मांग की होती है और इसलिए इन दलों से निवेदन किया गया था कि वे तीन-चार लाइनों से बड़ा वक्तव्य जारी न करें।
 
यह तो कुछ भी नहीं, हिज्बुल मुजाहिदीन ने तो मार्गदर्शिका जारी करके स्पष्ट किया कि क्या लिखना होगा और क्या नहीं जबकि उसने समाचारपत्रों को यह भी धमकी दे दी कि अगर उसे दस प्रतिशत कम से कम कवरेज नहीं दी गई तो गंभीर परिणाम होंगे। विपरीत परिस्थितियों में कार्य कर रहे पत्रकार इस दुविधा में हैं कि वे किस प्रकार स्वतंत्र रूप से कार्य को अंजाम दें क्योंकि परिस्थितियां ऐसी हैं कि निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से कार्य कर पाना कठिन होता जा रहा है क्योंकि आतंकवादियों के चक्रव्यूह का शिकंजा दिन-प्रतिदिन कसता जा रहा है जिससे बाहर निकलने का रास्ता फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।
 
और यह भी कड़वी सच्चाई है कि अपनी पेशेगत जिम्मेदारियों को निबाहने वाले यहां के पत्रकार बहुत ही विकट परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं।एक तरफ उन पाक समर्थित आतंकवादियों की बंदूकें तनी हुई हैं,तो दूसरी ओर राज्य सरकार उन्हें सूचना के अधिकार से वंचित रखने से लेकर उन पर डंडे बरसाने,गिरफ्तार करने और उनका हर तरह से दमन करने की कोशिशों में लगी रहती है।
 
कश्मीर में आज जो अप्रत्यक्ष युद्ध चल रहा है,उसमें सबसे ज्यादा दबाव पत्रकारों पर बनाया जा रहा है।भारतीय प्रेस परिषद ने भी जम्मू कश्मीर में कार्यरत पत्रकारों की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि राज्य सरकार पत्रकारों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करती है और उन्हें सुरक्षा,सूचना एवं निर्भय होकर कार्य करने का माहौल देने में वह असफल रही है।
 
जम्मू कश्मीर में अभी तक दो दर्जन से ज्यादा मीडिया कर्मी अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा मारे जा चुके हैं।सरकार कहती है कि इन्हें आतंकवादियों ने मारा और आतंकवादी इसका आरोप सरकार पर लगाते हैं।राज्य सरकार अभी तक किसी भी हत्या के मामले में दोषियों को सजा दिलाने में सफल नहीं हुई है। इसका कारण आतंकवादियों द्वारा यह बार-बार दोहराया जाना है कि सरकार इन हत्याओं के मामलों को दबाना चाहती है।
 
आज दशा यह है पत्रकारों की कि उन्हें दोधारी तलवार पर चलने के बावजूद सरकार तथा आतंकवादियों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ रहा है।जहां आतंकवादी सीधे तौर पर खबर न छापने पर धमकी या चेतावनियों से कार्य चला रहे हैं तो सरकार अप्रत्यक्ष रूप से ओछे हथकंडे अपना रही है। माना कि कुछेक पत्रकार आतंकवादियों की धमकियों के आगे पूरी तरह से झुककर उनके लिए ‘कार्य कर’ रहे हैं, लेकिन स्थिति का दुखद पहलू यह भी है कि अपनी, अपने परिवार आदि की जान बचाने की खातिर किसी एक पक्ष का दामन थामना आवश्यक हो गया है।
 
आज आतंकवादी दल चाहते हैं कि उन सभी का समाचार प्रथम पृष्ठ पर आयें तथा हिज्बुल मुजाहिदीन ने तो पत्रकारों तथा संपादकों के लिए दिशा-निर्देश भी भिजवा रखे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। किस विषय पर लिखना चाहिए और किस पर नहीं। बंदूक के साये तले-यह बंदूक का साया कभी आतंकवादियों का होता है,तो कभी सुरक्षा बलों का-कार्य करने वाले विशेष कर कश्मीर घाटी के पत्रकार सच को झूठ और झूठ को सच लिखने के लिए मजबूर हैं।
 
सरकार कहती है कि अगर वे पत्रकारों पर दबाव कायम रखेंगें तो स्थानीय प्रेस ही आज कश्मीर से आतंकवाद की समाप्ति के लिए सेहरा बांध सकता है, क्योंकि यह आम है कि पत्रकार समाज को दिशा देते हैं,जबकि आतंकवादी भी यही बात कहते हैं कि अगर पत्रकार उनके साथ हैं,तो उनका साम्राज्य कायम रहेगा,क्योंकि कागजी आतंकवादी दलों को अखबार ही चला रहे हैं, उनके व्यक्तव्यों को प्रकाशित करके ऐसा भी नहीं है कि वे उनके वक्तव्यों को अपनी इच्छानुसार प्रकाशित कर रहे हैं।
ये भी पढ़ें
शुजात बुखारी की हत्या का मामला : पुलिस ने जारी कीं संदिग्धों की तस्वीरें