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Written By नृपेंद्र गुप्ता

गुजरात चुनाव में चरम पर सियासत, दांव पर इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा

गुजरात चुनाव में चरम पर सियासत, दांव पर इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा - Gujrat election
चुनाव की तारिखों की घोषणा होते ही गुजरात में सियासी पारा चरम पर पहुंच गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पूरी ताकत से मैदान में उतर चुके हैं। राजनीतिक बयानबाजी के साथ ही जातीय समीकरण और अन्य दांव पेंच भी जारी है। भाजपा हर हाल में यह चुनाव पहले से अधिक सीटों के साथ जीतने के लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में हैं तो कांग्रेस भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सेंध लगाकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। 
 
* नरेंद्र मोदी : देश की राजनीति में गुजरात मॉडल को आदर्श के रुप में स्थापित करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी हुई है। यह चुनाव जीएसटी और नोटबंदी पर भी मोदी सरकार की सबसे बड़ी परीक्षा है। इससे यह भी साफ होगा की क्या देश में अभी भी मोदी की लहर है। अगर यहां विपक्ष पहले से ज्यादा सीटें जीतने में सफल होता है तो देशभर में एक बार फिर उसके मजबूती से उभरने की संभावना बढ़ जाएगी तथा भाजपा कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास पर इसका बुरा असर पड़ेगा। मोदी के विकास मॉडल पर भी प्रभावित होगा। 
 
* अमित शाह : इस चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की राजनीतिक प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। गुजरात से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले अमित शाह को चुनावी प्रबंधन के क्षेत्र में महारथी माना जाता है। वे यहां के लोगों की नब्ज जानते हैं। अगर यहां भाजपा को झटका लगता है तो अमित शाह के लिए यह ठीक नहीं होगा। इससे कार्यकर्ताओं में उनके प्रति विश्वास में कमी आएगी और हो सकता है कि उन्हें अध्यक्ष पद से भी हाथ धोना पड़े। यहां पर मिली बड़ी सफलता मोदी और उनकी दोस्ती को और मजबूती प्रदान करेगी।
 
* राहुल गांधी : यह चुनाव कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी से पहले अगर कांग्रेस यहां उलटफेर कर पाती है तो यह राहुल की बड़ी उपलब्धि होगी। राहुल ने भी इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वे लगातार गुजरात का दौरा कर रहे हैं और अपने कड़े बयानों से उन्होंने भाजपा और मोदी पर जमकर निशाना साधा। अगर राहुल मिशन गुजरात में सफल रहते हैं तो इससे न सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा बल्कि केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा के खिलाफ विपक्ष भी मजबूती से खड़ा हो सकेगा।
 
* शंकर सिंह वाघेला : गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला के लिए भी यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। अभी हाल ही राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका देने वाले वाघेला ने हाल ही में तीसरे मोर्चे का गठन किया है। वाघेला का मानना है कि लोग भाजपा और कांग्रेस से उकता गए हैं और एक विकल्प के लिए बेताब हैं। वाघेला इस चुनाव के माध्यम से अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहते हैं। 
 
* विजय रुपाणी : यह चुनाव मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के लिए कड़ी परीक्षा का समय है। आनंदी बेन पटेल के बाद राज्य की कमान संभालने वाले रुपाणी जनता को किस हद तक अपने कार्यों से प्रभावित कर पाएं है इसका फैसला इस चुनाव में हो जाएगा। मोदी और शाह के साथ ही स्टार प्रचारकों की लंबी फेहरिस्त ने रुपाणी का काम आसान जरूर कर दिया है लेकिन अगर मुख्यमंत्री के रूप अगर लोगों ने उनके और आनंदी बेन के काम की तुलना मोदी से की तो यह उनके साथ ही पार्टी को भी खासा महंगा पड़ सकता है। 
 
* अहमद पटेल : कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले अहमद पटेल के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गए हैं। जिस तरह से चुनाव से पहले उनका नाम आईएस आतंकियों से जुड़ा है उससे स्पष्ट प्रतित होता है कि आने वाले समय में उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। भाजपा राज्यसभा चुनाव में मिली हार को भूल नहीं पाई है इसलिए अहमद के जरिए कांग्रेस को घेरने की तैयारी में है। कांग्रेस भी उनके बचाव में पूरी तरह उतर गई है। देखना यह होगा कि सोनिया का यह राजनीतिक सचिव किस तरह कांग्रेस को भाजपा के सामने एकजूट रखकर सफलता के रास्ते धकेलता है। 
 
* आनंदी बेन पटेल : गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने भले ही इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया हो लेकिन इस चुनाव में मतदाता उनके प्रदर्शन के आधार पर ही पार्टी के भविष्य का फैसला करेंगे। पटेल आंदोलन में विफलता की वजह से ही आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। आनंदीबेन को गुजरात में भाजपा का कद्दावर नेताओं में माना जाता है।  पीएम मोदी के हरेक गुजरात दौरे में आनंदीबेन को ही महत्व दिया जाता है। भले ही वह चुनाव न लड़ें पर टिकट वितरण में उनकी बड़ी भूमिका होगी। 
  
* नितिन पटेल : पटेल समुदाय से आने वाले उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल भी गुजरात में भाजपा के दिग्गज नेता है। वह सरकार के प्रति पटेल-पाटीदार समुदाय की नाराजगी को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने इस समुदाय को रिझाने के लिए सरदार पटेल की जन्मभूमि से गौरव यात्रा भी निकाली। हालांकि वह हार्दिक पटेल को साधने में विफल रहे हैं लेकिन वरुण पटेल और रेशमा पटेल को तोड़कर इस समुदाय के मतदाताओं में सेंध लगाने में वे जरूर सफल रहे हैं। राज्य में पाटीदार मतदाता करीब 20 फीसदी हैं और यह भाजपा के परंपरागत मतदाता रहे हैं।
 
* भरत सिंह सोलंकी : गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के बेटे भरतसिंह सोलंकी गुजरात में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता है। वह चार बार राज्य की कमान संभाल चुके हैं। शंकर सिंह वाघेला के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी सोलंकी ने कार्यकर्ताओं को बिखरने नहीं दिया और राज्य में भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। भाजपा को विकास और जातिवाद दोनों मोर्चों पर घेरने की रणनीति के पीछे भी सोलंकी का ही दिमाग है। अगर कांग्रेस यहां भाजपा को मात देने में सफल रहती है तो वह एक बार फिर मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।    
 
* हार्दिक पटेल : पटेल आंदोलन से गुजरात की राजनीति में तेजी से उभरे हार्दिक पटेल पर भी इस चुनाव में सबकी नजरें लगी हुई है। हार्दिक के कांग्रेस की ओर बढ़ते झुकाव के बाद भाजपा ने जिस तरह से वरुण पटेल और रेशमा पटेल को तोड़कर उनके घर में सेंध लगाई है, उससे उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती घर बचाने की है। अगर सियासत की लपटों से वह इस काम में सफल नहीं हुए तो पटेल आंदोलन को इतिहास का हिस्सा बनने में देर नहीं लगेगी। हालांकि वह अब पहले से ज्यादा परिपक्व नजर आ रहे हैं। 
 
* अल्पेश ठाकोर : राज्य में पिछड़े वर्ग के युवा नेता अल्पेश ठाकुर का राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। अल्पेश हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं लेकिन भाजपा उनके करीबी चतुर सिंह समेत 200 कार्यकर्ताओं को तोड़कर उन्हें बड़ा झटका दिया है। अगर वह अपने मतदाताओं को लामबंद रखने में सफल होते हैं तो कांग्रेस में उनका भविष्य उज्जवल है। ऐसा न होने पर वे नेपथ्‍य में चले जाएंगे।