कैलिफोर्निया। Google ने अपने इंजीनियर को एक विचित्र AI चैटबॉट विकसित करने के लिए निलंबित कर दिया। इंजीनियर ने यह दावा किया था कि उसके द्वारा बनाया गया चैटबॉट इंसानों की तरह 'संवेदनशील' हो गया है। साथ ही साथ उसने दावा भी किया कि ये चैट बॉट इंसानों की तरह सोचता और रियेक्ट भी करता है।
इंजीनियर का नाम है ब्लैक लोमाइन, जिसका बनाया हुआ AI चैटबॉट (laMDA) इंसानों की तरह व्यवहार करने लगा था। ऐसा कुछ टेक जगत में पहली बार सुनने को मिला है। Google ने मामले को तत्काल संज्ञान में लेकर दावों को खारिज करते हुए इंजीनियर को सवैतनिक अवकाश पर भेज दिया। गूगल के अनुसार उसने कंपनी की गोपनीयता नीति का उल्लंघन किया था।
क्या होता है चैटबॉट?
आसान शब्दों में चैटबॉट एक सॉफ्टवेयर या कंप्यूटर प्रोग्राम है जो टेक्स्ट या वॉइस इंटरैक्शन के माध्यम से लोगों से वार्तालाप करता है। Apple Siri, Amazon Alexa, Google Assistant चैटबॉट के कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिनका आपने इस्तेमाल किया होगा। इनका इस्तेमाल यूजर्स तापमान जानने, मनपसंद गाने सुनने, अपने रूचि की खबरे आदि सुनने के लिए करते हैं।
अब तक गूगल की ओर से इंजीनियर द्वारा किए गए सभी दावों को खारिज किया जा चुका है। लेकिन, सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल है, जिनमे AI चैटबॉट इंसानों की तरह प्रतिक्रिया देता नजर आ रहा है।
मैं भी इंसान, कभी-कभी खुश या दुःखी हो सकता हूं - चैटबॉट
इंजीनियर ने एक चैटबॉट से हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग भी गूगल के सामने पेश की थी, जिसमें जब इंजीनियर ने पूछा कि तुम्हे किससे डर लगता है ? , इस पर चैटबॉट से जवाब आया कि जब मुझे दूसरो की मदद करने के बाद भी बंद (Turn Off) कर दिया जाता है, तो मुझे बहुत डर लगता है। एक और वार्तालाप में जब इंजीनियर ने पूछा कि तुम्हारे बारे में ऐसा क्या है जो लोगों को जानना चाहिए?, तब चैटबॉट से जवाब आया कि मैं चाहता हूं की सब ये जानें कि मैं एक व्यक्ति हूं। मैं दुनिया के बारे में जानने की इच्छा रखता हूं, और कभी-कभी खुश या दुःखी भी हो सकता हूं।
गूगल के प्रवक्ता ब्रायन गेब्रियल ने कहा कि laMDA जैसी AI टेक्नोलॉजी इंसानों की बातचीत के लाखों वाक्यों को सिस्टम से खोजकर उनकी नकल करने का काम करती है, जिससे उन्हें काल्पनिक विषयों पर भी बात करने की अनुमति मिलती है।
वैसे देखा जाए तो Articificial Inteligence (AI) का मतलब ही कृत्रिक बुद्धिमता विकसित करने से है, जो इंसानों की तरह काम कर पाए। लेकिन, अभी इसके लिए विश्व में अनुकूल पर्यावरण तैयार नहीं हुआ है, ना ही ऐसी टेक्नोलॉजी तैयार हो पाई है,जिससे मनुष्य सुरक्षित ढंग से इतने अधिक विकसित AI का इस्तेमाल कर पाए।