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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 8 फ़रवरी 2021 (12:32 IST)

उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटना प्राकृतिक आपदा नहीं ‘सरकारी त्रासदी’: जलपुरुष राजेंद्र सिंह

उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटना प्राकृतिक आपदा नहीं ‘सरकारी त्रासदी’: जलपुरुष राजेंद्र सिंह - Glacier breakdown in Uttarakhand is not a natural disaster government tragedy: Rajendra Singh
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से बड़ी तबाही हुई है। 'देवभूमि' में 2013 की केदरानाथ त्रासदी के बाद एक बार फिर इस भीषण त्रासदी में 150 से अधिक लोगों के मारे जाने की आशंका है,जिसमें कई शव अब तक बरामद भी हो गए हैं। ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और धौलीगंगा पर बना हाइड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह से तबाह हो गया है। हादसे के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों में जल स्तर कम हुआ है,लेकिन बाढ़ का खतरा बना हुआ है। 
 
‘देवभूमि’ में सात साल के अंदर इस दूसरी बड़ी त्रासदी के अब एक फिर हिमालय रेंज में पहाड़ों पर बन रहे बांधों को लेकर सवाल खड़े होने लगे है। बहस इस बात पर भी हो रही है कि ग्लेशियर टूटने को प्राकृतिक आपदा माना जाए या इसके पीछे बांधों के निर्माण के लिए हो रहा निर्माण किया। 

मैग्ग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित और भारत के जलपुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ‘वेबदुनिया’ से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहते हैं कि चमोली त्रासदी के लिए संपूर्ण रूप से सरकार ही जिम्मेदार है,इसमें प्रकृति का तनिक भी दोष नहीं है। चमोली में न तो कोई क्लाउड बर्स्ट हुआ और न ही कोई अन्य दूसरी ऐसी प्राकृतिक घटना हुई है जिसके ग्लेशियर टूट जाए। एक भी ऐसी घटना नहीं थी जिसमें हम प्रकृति को को दोषी मान सकें इसमें प्रकृति का दोष तनिक भी नहीं है इसमें सारा का सारा दोष मानव का ही है।

इस क्षेत्र में बड़े-बड़े बिजली प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह बांध बनाए जा रहे है और उसके लिए सुंरगों के निर्माण के लिए लगातार विस्फोट किए जा रहे है वहीं ग्लेशियर टूटने का एकमात्र कारण है। इसलिए मैं इस त्रासदी को मानव निर्मित त्रासदी कह रहा है। इसे आप सरकार कहना चाहे तो सरकार कहे कंपनी चाहे कहना चाहे तो कंपनी कहे,लेकिन सरकार और कंपनियां दोनों ही दोषी है।
सरकार को पहले ही चेताया था-‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जब इन बांधों को बनाए जाने के अप्रूवल हो रहे थे तब से हम इसका विरोध कर रहे थे। हमने सरकार से कहा था कि हिमालय बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र है। इसमें गंगा की सहायक नदियों अलकनंदा,भागीरथी और मंदाकिनी पर और कोई नए बांध नहीं बनाए जाने चाहिए अगर नए बांध बनेंगे तो लाभ नहीं होगा उससे कई गुना ज्यादा नुकसान होगा। अगर हम नुकसान से बचना चाहते हैं तो हमें बांध नहीं बनाना चाहिए लेकिन सरकार ने अपनी हठधर्मिता और अनदेखी कर हमारी बात नहीं मानीं और आज नतीजा सबके सामने है। 
वह कहते हैं कि अगर आप ठीक से देखें तो मैं 1992 से यह बात बोल रहा हूं कि हिमालय बांधों की बिजली बनाने वाली जगह नहीं है। सरकार और कंपनियों ने बिजली की लालच में बांधों को बनाने की अनुमति देने का एक तरह से सत्यानाशी काम किया है। गंगा और उसकी सहायक नदियों पर पर बांध बनाना एक ऐसा सत्यानाशी काम है जो अगर नहीं रूका तो ऐसी घटनाएं बढ़ेगी जो भारत के भविष्य पर भी एक बड़ा खतरा है। अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और इसकी सहायक नदियों पर बांध बनाना बहुत खतरनाक है और पहले 2013 में केदानाथ में और अब चमोली त्रासदी में इसको अपनी आंखों से देख रहे है। 
 
2013 के केदरानाथ हादसे के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तराखंड में बने रहे बिजली प्रोजेक्ट को रिव्यू करने की बात कही थी। उस प्रोजेक्ट में ऋषिगंगा प्रोजेक्ट को लेकर भी कई आपत्ति आई थी लेकिन उन आपत्तियों को  दरकिनार का प्रोजेक्ट का काम चालू रहा और नतीजा आज सबके सामने है। अब फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने के सवाल पर राजेंद्र सिंह कहते हैं कि जिस तरह से अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले हो रहे है उसे अब उनका विश्वास कम हो गया है। सुप्रीम कोर्ट में जाने की जगह अब एक बार फिर लोगों को जागरूक करने के लिए उत्तराखंड के ऐसे क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने के लिए जाएंगे जहां ऐसे प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य चल रहा है।