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Last Updated : बुधवार, 3 अक्टूबर 2018 (13:59 IST)

गिर अभयारण्य में शेर बन रहे हैं खतरनाक 'वायरस' के शिकार, 18 दिनों में 23 शेरों की मौत...

गिर अभयारण्य में शेर बन रहे हैं खतरनाक 'वायरस' के शिकार, 18 दिनों में 23 शेरों की मौत... - Death of lions in Gir sanctuary
गुजरात के अमरेली जिले में स्थित मशहूर गिर अभयारण्य में शेरों की मौत का सिलसिला जारी है। पिछले 18 दिनों में खतरनाक कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) और प्रोटोजोवा संक्रमण के कारण 23 शेरों की मौत हो चुकी है।

वेबदुनिया गुजराती के संवाददाता की रिपोर्ट के मुताबिक  26 शेरों वाले इस अभायरण्य में अब केवल तीन ही शेर बचे हैं। शेरों की मौत से गिर प्रशासन सकते में है। बचे हुए शेरों को बचाने के लिए प्रशासन हरसंभव कोशिश में लगा हुआ है। चार शेरों में वायरस की उपस्थिति के बाद शेरों को संक्रमण से बचाने के लिए अमेरिका से विशेष इंजेक्शन मंगाए जा रहे हैं, वहीं कुछ शेरों को सेमरणी इलाके से रेस्क्यू कर जामवाला इलाके में भेजा गया है।

वनमंत्री गणपत सिंह वसावा ने दो दिन पहले ही जूनागढ़ के पास सासण गिर का दौरा कर मृत शेरों के बारे में जानकारी हासिल की थी। एक अधिकारी ने कहा कि गिर में शेरों की मौत की मुख्य वजह शेरों के बीच लड़ाई और लीवर किडनी में संक्रमण है। वन विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि दलखनिया के अलावा कहीं और ये मौतें नहीं हुई हैं।

उन्होंने कहा कि वायरस के खतरे को देखते हुए समार्दी से 31 शेरों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है। सभी का चेकअप किया गया। 600 शेरों में से 9 बीमार पाए गए, उनमें से 4 का वहीं उपचार किया गया, जबकि 5 को उपचार के लिए रेस्क्यू किया गया है।

क्या है सीडीवी वायरस और यह कैसे फैलता है : कैनाइन डिस्टेंपर बेहद खतरनाक संक्रामक वायरस है। इसे सीडीवी भी कहा जाता है। इस बीमारी से ग्रसित जानवरों का बचना बेहद मुश्किल होता है। यह बीमारी मुख्यत: कुत्तों में पाई जाती है। हालांकि कैनाइन फैमिली में शामिल रकून, भेड़िया और लोमड़ी में भी यह बीमारी पाई जाती है। कुत्तों के जरिए यह वायरस दूसरों जानवरों में भी फैल जाता है।

इसके अलावा यह वायरस हवा तथा सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर इस वायरस से ग्रसित किसी जानवर के संपर्क में आने से भी फैलता है। बीमारी के लक्षण इस वायरस से ग्रसित होने के करीब एक सप्ताह में सामने आते हैं। यह बीमारी खराब वैक्सीन से भी फैल सकती है। कैनाइन डिस्टेंपर वायरस का पता बॉयोकेमिकल टेस्ट और यूरिन की जांच से चलता है।