ऐसे वीर योद्धा थे शहीद कर्नल संतोष महाडिक : सलाम
भारत के सच्चे सपूत और देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व देने वाले 39 साल के कर्नल संतोष महाडिक की पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन हो जाएगी, लेकिन देशरक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले कर्नल संतोष महाडिक वीरगाथा को कोई नहीं भुल पाएगा। इस जांबाज सिपाही ने आतंकियों के खिलाफ लड़ते हुए अपनी टीम को लीड कर भारतीय सेना के नेतृत्व की सर्वोच्च परंपरा को कायम रखा। कर्नल महादिक अपने पीछे पत्नी, 5 साल का बेटा और 11 साल की बेटी छोड़ गए हैं।
शहादत की कहानी : 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नलघाटी में कुपवाड़ा के हाजी नाका जंगली क्षेत्र में एक अभियान के दौरान आतंकियों से लोहा लेते हुए घायल हो गए थे। कमांडिग अफसर होने के बावजूद कर्नल इस अभियान का नेतृत्व कर रहे थे। आतंकियों के घात लगाकर किए हमले का जवाब देते समय कर्नल महादिक को कई गोलियां लगी और उन्हें गंभीर रूप से घायलावस्था में एयरलिफ्ट कर श्रीनगर सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इस भारत के वीर की जान नहीं बच सकी। उल्लेखनीय है कि कर्नल संतोष ने कई आतंकरोधी अभियानों की अगुआई कर उनमें सफलता हासिल की थी। उन्हें वीरता के लिए सेना मेडल से भी नवाजा गया था।
अगले पन्ने पर, देश के लिए कुछ करने की चाह...
मुठभेड़ से एक दिन पहले घाटी में जवानों ने आतंकियो को घेर लिया था और करीब आधा घंटे की मुठभेड़ के बाद आतंकी अंधेरे का लाभ उठाते हुए भाग निकले थे। इसके बाद दूसरे दिन को जवानों ने आतंकियो को मनीगाह के बाहरी छोर पर घेर लिया। मुठभेड़ में एक सेना की 160 टीए बटालियन का जवान मजलूम अहमद गोली लगने से जख्मी हो गया। इसी दौरान दोपहर करीब 2 बजे 41 आरआर के कर्नल संतोष मदाहिक जवानों की एक टुकड़ी लेकर आतंकियों से लोहा लेने के लिए उनके ठिकाने की तरफ बढ़े, लेकिन आतंकियों की अंधाधुंध फायरिंग मे वे और एक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
संतोष महाडिक 13 नवंबर से कुपवाड़ा में आतंकियों के विरुद्ध चल रहे ऑपरेशन की अगुवाई कर रहे थे। कर्नल महाडिक को वर्ष 2003 में पूर्वोत्तर में ऑपरेशन राइनो के दौरान बहादुरी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। महाराष्ट्र के सतारा के पोगरवाड़ी गांव के रहने संतोष महाडिक के मन में शुरू से ही देश के बारे में कुछ करने का जज्बा था।
सतारा के पोगरवाडी गांव में जन्मे महादिक की सैन्यकर्मी बनने की यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने 1987 में छठी कक्षा में सैनिक स्कूल में प्रवेश लिया और बाद में वह सेना में भर्ती हो गए। उनके पिता दर्जी और भाई दूधिया थे । कर्नल महाडिक के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं जो अंतिम संस्कार के समय मौजूद थे। उनके करीबी मित्रों के अनुसार कर्नल महाडिक हमेशा सर्वोच्च बलिदान देने की बात करते थे।
उनके सहपाठियों में से एक जो सेना में है, ने कहा कि स्वभाव से शांत और व्यवहार में उदार महाडिक के दिल में तूफान भरा था। उनके मित्रों का कहना है कि महाडिक बेहतरीन फुटबॉल गोलकीपर, कुशल घुड़सवार, जुनूनी बॉक्सर और ऑलराउंडर थे। आतंकरोधी बल 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग अफसर महादिक के बारे में उनके सहकर्मियों का कहना है कि वे बहुत बहादुर थे और हमेशा आगे रहकर नेतृत्व करते थे। इस बहादुर अफसर को हमारा नमन....