शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. राष्ट्रीय
  4. Chandra Babu Naidu
Written By Author विभूति शर्मा

नायडू की नाराज़गी के गंभीर मायने?

नायडू की नाराज़गी के गंभीर मायने? - Chandra Babu Naidu
ऐसे में जबकि देश में 2019 के आम चुनाव की सुगबुगाहट प्रारम्भ हो चुकी है, भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार में शामिल दो बड़े दलों तेलुगू देशम और शिवसेना का उससे अलग होने के संकेत देना गंभीर मुद्दा माना जाना चाहिए। सफलता के रथ पर सवार भाजपा अगर सहयोगी दलों खासतौर से टीडीपी की नाराजगी की अनदेखी करेगी तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। शिवसेना तो पहले भी गीदड़ भभकियां देती रही है, लेकिन वह सत्ता सुख का मोह नहीं त्याग सकी और अब तक सरकार में बनी हुई है। शिवसेना यह भी जान चुकी है कि उसकी कलई खुल चुकी है और वह भाजपा के बिना अब कहीं की नहीं रहेगी। लेकिन तेलुगू देशम प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के बारे में ऐसा नहीं सोचा जा सकता। उनकी छवि एक साफ सुथरे नेता की है।
 
आगामी लोकसभा चुनाव की पूर्व बेला में सर्वाधिक हलचल दक्षिण के राज्य आंध्रप्रदेश में दिखाई दे रही है। 2014 के आमचुनाव के ठीक पहले इस राज्य ने विभाजन का सामना किया था। विभाजन के बाद की मुश्किलों से यह अभी पार नहीं पा सका है। सबसे बड़ी समस्या है अमरावती में नई राजधानी बसाना। वर्तमान राजधानी अलग हुए राज्य तेलंगाना के हिस्से में चली गई। इसके एवज में आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया गया था, जो बाद में बदले हालातों के मद्देनजर देने से इंकार कर दिया गया। हालांकि अमरावती के लिए केंद्र ढाई हजार करोड़ और वहां की पोलवरम परियोजना के लिए पांच हजार करोड़ रुपए दे चुका है।
 
समस्या यहीं से उत्पन्न हुई है। आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण हिस्सा तेलंगाना में चले जाने के बाद मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पूरी आस केंद्रीय सहायता पर टिक गई। केंद्र सरकार ने भी भरपूर आर्थिक मदद के लिए आश्वस्त तो किया, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं के बाद यह दर्जा नार्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों के अलावा किसी और को नहीं मिल सकता। 
 
विशेष राज्य का दर्जा संभव नहीं : आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा कई कारणों से संभव नहीं है। एक तो इसके लिए नियमों में बदलाव करने पड़ेंगे। अगर नियमों में बदलाव कर भी दिया गया तो बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे अन्य राज्य भी इसी तरह की मांग शुरू कर देंगे। इसलिए मोदी सरकार टीडीपी की मांग के आगे किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं है।
 
दरअसल, आंध्र में विशेष राज्य के दर्जे को लेकर राजनीति गहरा गई थी। जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर-कांग्रेस ने केंद्र को पांच अप्रैल तक विशेष राज्य की घोषणा का अल्टीमेटम दे रखा है। ऐसा नहीं होने पार्टी के सभी नौ सांसद और विधायक संबद्ध सदनों से इस्तीफा दे देंगे। इस अल्टीमेटम के बाद राज्य में कौन आगे की लड़ाई शुरू हो गई थी। सत्तारूढ़ टीडीपी को मजबूरी में इस लड़ाई में कूदना पड़ गया। यही मजबूरी उसके गले की फांस बनकर राजग से अलग होने का कारण बन गया।
 
आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर अड़े मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से पहले तो पीएम मोदी ने लम्बे समय तक बात नहीं की, बाद में बात करने पर भी कोई हल नहीं निकल सका है। नतीजतन टीडीपी कोटे से केंद्र सरकार में शामिल मंत्री अशोक गजपति राजू और वाईएस चौधरी ने पीएम मोदी से मिलने के बाद इस्तीफा दे दिया। टीडीपी के जवाब में आंध्रप्रदेश में नायडू सरकार में भाजपा के दो मंत्रियों के. श्रीनिवास राव और टी. माणिकयला राव ने भी इस्तीफा देने के अपने फैसले की घोषणा की। नायडू ने कहा, ‘जब उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा तो इसमें बने रहने में कोई तुक नहीं। मेरे लिए एकमात्र एजेंडा राज्य के हितों की सुरक्षा करना है।’
 
यह है नाराजगी : टीडीपी का कहना है कि केंद्र सरकार राज्यसभा में दिए आश्वासनों को पूरा करने में नाकाम रही। नायडू ने कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन इसलिए किया गया था, ताकि आंध्र को न्याय मिल सके, लेकिन ऐसा हो न सका। इस सिलसिले में मुख्यमंत्री नायडू दर्जनों बार दिल्ली में प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से मिले। फिर भी उनके अनुरोध पर गौर नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश को अवैज्ञानिक तरीके से बांटा गया था। इससे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। चार साल से राज्य के लोग अपने साथ इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन बजट में भी आंध्र को फंड नहीं दिए गए।
 
सवाल यह उठता है कि आखिर भाजपा और टीडीपी में अलगाव के कारण क्या हैं। जवाब भी स्पष्ट है कि दोनों की अपनी मजबूरियां हैं। भाजपा केवल आंध्र के लिए बाकी राज्यों की नाराजगी मोल नहीं ले सकती, तो दूसरी ओर नायडू राज्य में विपक्ष का मुकाबला करने के लिए अपनी मांग पर अड़े रहने को मजबूर हैं। देखना दिलचस्प होगा कि इन परिस्थितियों के चलते भाजपा आंध्र में क्या अकेले के दम पर चुनाव मैदान में उतरने का साहस रखती है। टीडीपी के राजग से हटने पर वाईएसआर-कांग्रेस के जुड़ने के आसार भी तो नगण्य ही होंगे, क्योंकि वह भी तो विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ने जा रही है।