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Last Modified: शुक्रवार, 23 जून 2017 (18:38 IST)

कार्टोसैट उपग्रह प्रक्षेपण : आसमान में मिली भारत को एक और नजर

कार्टोसैट उपग्रह प्रक्षेपण : आसमान में मिली भारत को एक और नजर - Cartosat Satellite Launch, Satellite Launch
श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश)। भारत ने शुक्रवार को एक ऐसे उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया है, जो इसकी सैन्य निरीक्षण क्षमताओं को बढ़ावा देगा। इसके साथ ही 30 अन्य छोटे उपग्रहों को भी कक्षा में स्थापित किया गया है। इन 30 छोटे उपग्रहों में से एक उपग्रह को छोड़कर बाकी सभी उपग्रह विदेशी हैं। 
 
शुक्रवार का प्रक्षेपण भारत के किफायती अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक और उपलब्धि है। अपनी 40वीं उड़ान में पीएसएलवी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लॉन्च पैड से सुबह 9 बजकर 29 मिनट पर उड़ा और इसके 27 मिनट बाद इसने उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित कर दिया। 
 
44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी-सी38 अपने साथ पृथ्वी के पर्यवेक्षेण वाले उपग्रह यानी कार्टोसैट-2 श्रृंखला के उपग्रह को प्राथमिक पेलोड के तौर पर साथ लेकर गया है। इसके अलावा वह अपने साथ 30 अन्य उपग्रहों को ले गया है। इन उपग्रहों का कुल वजन 955 किलो है। 
 
शुक्रवार के मिशन में इसरो द्वारा एक ही रॉकेट से प्रक्षेपित उपग्रहों की संख्या दूसरी सबसे बड़ी संख्या रही है। इस साल 15 फरवरी को पीएसएलवी-सी37 ने एक ही बार में 104 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करके इतिहास रच दिया था। इनमें से 101 उपग्रह विदेशी थे। 
 
कार्टोसैट-2 श्रृंखला के तीसरे उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ ही अंतरिक्ष में भारत की नजर और पैनी एवं व्यापक होनी तय है। इसरो के सूत्रों ने कहा कि इस श्रृंखला के पिछले उपग्रह की विभेदन क्षमता 0.8 मीटर की थी और इससे ली गई तस्वीरों ने पिछले साल नियंत्रण रेखा के पार 7 आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल हमले करने में भारत की मदद की थी। 
 
हालिया रिमोट सेंसिंग उपग्रह की विभेदन क्षमता 0.6 मीटर की है। इसका अर्थ यह है कि यह पहले से भी छोटी चीजों की तस्वीरें ले सकता है। इसरो के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह किसी चीज को 0.6 मीटर की लंबाई और 0.6 मीटर की चौड़ाई वाले वर्ग के बीच मौजूद चीजों को चिन्हित कर सकता है। 
 
अधिकारी ने कहा कि इससे रक्षा निरीक्षण को बढ़ावा मिलेगा। इसका इस्तेमाल आतंकी शिविरों और बंकरों आदि की पहचान के लिए किया जा सकता है। उपग्रह के सक्रिय हो जाने पर इसे रक्षा बलों को सौंप दिया जाएगा। रक्षाबलों का अपना पूरा तंत्र है जिसमें डेटा तक पहुंच बना सकने वाले जमीनी स्टेशन और प्रशिक्षित कर्मी शामिल हैं। 
 
इसरो ने कहा कि 16 मिनट की उड़ान के बाद कार्टोसैट-2 श्रृंखला का उपग्रह 505 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित ध्रुवीय सौर स्थैतिक कक्षा तक पहुंच गया। इसके बाद अन्य 30 उपग्रह सफलतापूर्वक पूर्व निर्धारित क्रम में पीएसएलवी से अलग हो गए। 
 
इसरो की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि उपग्रह के अलग होने के बाद कार्टोसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह के 2 सौर पैनल स्वत: ही तैनात हो गए और बेंगलुरु स्थित इसट्रैक ने उपग्रह का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। इसमें कहा गया कि आने वाले दिनों में उपग्रह अपने संचालन के अंतिम स्वरूप में आ जाएगा जिसके बाद वह रिमोट सेंसिंग की विभिन्न सेवाएं देना प्रारंभ कर देगा। 
 
पीएसएलवी के साथ गए उपग्रहों में एक नैनो उपग्रह तमिलनाडु स्थित कन्याकुमारी जिले की नूरउल इस्लाम यूनिवर्सिटी द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया है। यह एनआईयूसैट फसलों के निरीक्षण और आपदा प्रबंधन के सहयोगी अनुप्रयोगों के लिए तस्वीरें उपलब्ध करवाएगा। 
 
2 भारतीय उपग्रहों के अलावा पीएसएलवी के साथ गए 29 नैनो उपग्रह 14 देशों के हैं। ये देश हैं- ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चिली, चेक रिपब्लिक, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, लातविया, लिथुआनिया, स्लोवाकिया, ब्रिटेन और अमेरिका। 
 
जैसे ही उपग्रहों को 1-1 करके कक्षा में स्थापित किया गया, मिशन कंट्रोल सेंटर में मौजूद वैज्ञानिकों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सफल मिशन के लिए इसरो की सराहना की। 
 
मुखर्जी ने ट्वीट में कहा कि 31 उपग्रह लेकर गए पीएसएलवी-सी38 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो की टीम को बधाई। मोदी ने ट्वीट किया कि पोलर सैटेलाइट लॉन्च के 40वें सफल प्रक्षेपण के जरिए 15 देशों के 31 उपग्रहों को ले जाने के लिए इसरो को बधाई। आपने हमें गौरवान्वित किया। वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा कि मिशन सफल रहा। 
 
उन्होंने कहा कि मैं पूरी टीम, खासतौर पर कार्टोसैट टीम को कड़ी मेहनत के लिए बधाई देता हूं। इसने सभी उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर दिया है। पीएसएलवी-सी38 दरअसल पीएसएलवी एक्सएल स्वरूप की 17वीं उड़ान है। इसमें सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटरों का इस्तेमाल होता है। कार्टोसैट-2 रिमोट सेंसिंग उपग्रह है। 
 
इसरो ने 5 जून को अपने सबसे शक्तिशाली और भारी भूस्थैतिक रॉकेट का प्रक्षेपण किया था। वह रॉकेट अपने साथ आधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर गया था। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन वाले 3 चरणीय जीएसएलवी एमके-3 ने अच्छा प्रदर्शन किया था। 
 
कुमार ने कहा कि जीसैट-19 अपने निर्धारित स्थान पर पहुंच गया है और सभी पेलोडों को सक्रिय कर दिया गया है तथा उसने संचालन शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि 28 जून को एक संचार उपग्रह प्रक्षेपित किया जाएगा, जो हमारी क्षमता में ट्रांसपोंडरों की संख्या में एक अहम वृद्धि करेगा। 
 
उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर्यवेक्षण, दिशा संसूचन और संचार उपग्रहों की संख्या बढ़ाने के हमारे प्रयास जारी रहेंगे और आगामी दिनों में हम कई और कार्यों को अंजाम दे सकते हैं। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि विदेशी ग्राहकों के 29 नैनो उपग्रहों को इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के बीच के समझौतों के आधार पर प्रक्षेपित किया गया है। (भाषा)
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